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- महाभारतमीमांसा
आश्चर्य होता है कि भारती युद्ध-कालमें था। अब इसी विषयका विचार किया इस दयायुक्त नियमके अनुसार ही कार्य : जायगा। किया जाता था। कूटयुद्ध। . ____राजा धर्म-युद्धके नियमोंका कभी म्याग न करे । शान्ति पर्वके ५ वे अध्याय- धर्म-युद्ध में कपट, प्रजाका नाश और में बतलाया गया है कि यदि इन नियमों- अशक्त तथा पराजित लोगोंको कष्ट देना का पालन करनेमें गजाकी मृत्यु भी हो इत्यादि बातोंकी मनाही थी। परन्तु कट- जाय तो उत्तम है । परन्तु यह देख पड़ता युद्ध में इन सब बातोंका प्रवेश होने लगा। है कि महाभारत-कालपर्यन्त यह नियम : शान्ति पर्वके ६६ वें अध्यायमें निम्न- बदल गया था । भीमने- लिम्वित नियम इस बातके दिये गये हैं कि लड़ाईके समय गजाको क्या करना निक्षिप्तशस्त्रं पतिते विमुक्तकवचध्वज। चाहिए । राजाको पहले अपने मुख्य द्रयमाणे च भीते च तवचास्मीनिवादिनि ॥ दुर्गका आश्रय करना चाहिए। अपनी सब स्त्रियां स्त्रीनाम धंयंच विकल चकपुत्रिणि। गौत्राको जङ्गलम निकालकर रास्ते पर अप्रशस्ते नरे चैव न युद्धं गेचते मम ॥ ला रखना चाहिए और गांवोंको उजाड- यह कहकर, धर्मयुद्धका जो श्रेष्ठ ध्येय कर देशको उध्वस्त कर देना चाहिए। बतलाया है, वह महाभारत कालमें छूट गांवों में रहनेवाले लोगोंको मुख्य मुख्य गया था। कहा है कि उस मनुष्य पर शहगेमें ला रखना चाहिए । श्रीमान् शस्त्र न चलाया जाय जो सोया हो, लोगोंको किलोंमें स्थान देना चाहिए और तृषित हो, थका हो, अपना कवच छोड़ने- वहाँ फौजी पहग रखना चाहिए । जो की तैयारी में हो, पानी पी रहा हो या माल और सामान अपने साथ न लिया म्वा रहा हो या घास-दाना ला रहा हो। जा सकं उसे जला डालना चाहिए। प्राचीन कालमें धर्मयुद्धका यही नियम इसी प्रकार घास भी जला दी जाय। था । परन्तु महाभारत-कालमें ये नियम खेतोंका अनाज भी जला दिया जाय। बदल दिये गये थे और कृटयुद्धके नियमों- नदीके पुल और रास्तोंका विध्वंस कर के अनुसार कार्य किया जाता था। युना- डालना चाहिए । सब जलाशयोंको तोड़ नियोंने भयभीत आर्योंके धर्मयुद्धकं । देना चाहिए और जो तोड़े न जा सके सम्बन्धमें यह लिख रखा है कि, युद्ध- उन्हें विष श्रादिकी सहायतास दूषित के समय किसी जमीन जोतनेवालेका कर डालना चाहिए। किलेके चारों ओर- अथवा किसी फसलका नाश नहीं होता। के सब जङ्गलोको काट डालना चाहिए, युद्धके चलते रहने पर भी किसान लोग बड़े बड़े वृक्षोकी शाखाओंको तोड़ डालना अपना अपना काम मजेमें करते रहते हैं। चाहिए, परन्तु अश्वत्थ वृक्षका एक पत्ता इससे यह देख पड़ता है कि प्राचीन भी न तोड़ा जाय । मन्दिरके आसपासके कालके भारती प्रार्योके धर्मयुद्धसे प्रजा- वृक्षोंको भी न तोड़ना चाहिए । किले पर को कुछ भी तकलीफ नहीं होती थी। शत्रुओंको देखनेके लिए ऊँचे स्थान बनाये परन्तु महाभारत-कालमें कुछ प्रसङ्गों पर जायें और शत्रुओं पर निशाना मारनेके इनके विरुद्ध नियम भी बतलाये गये हैं, लिए. संरक्षित स्थान तथा छेद बनाये जायें। और उनके अनुसार कार्य भी किया जाता खाई में पानी भर देना चाहिए, उसके