® सेना और युद्ध । ३५६ किया जाता था। कुछ बाणोंके छोरमें नियमसे सङ्कल-युद्धका होना सम्भव विष लगा रहता था। यह नियम था कि नहीं। परन्तु स्पष्ट मालूम होता है कि धर्मयुद्धमें विषदग्ध बाणोका उपयोग द्वन्द्वयुद्ध का यह नियम होगा। जो लोग कभी न किया जाय । आजकलके युद्धोंमें घोड़ों पर बैठे हों वे रथारूढ़ मनुष्यों पर भी सभ्य राष्ट्रोंका यह नियम है कि हमला न करें और रथारूढ़ मनुष्योंको फैलनेवाली गोलियाँ (एक्सपान्डिग बुले- अश्वों पर हमला न करना चाहिए (शां० ट्स) उपयोगमें न लाई जायँ। अर्थात् । प०अ०६५)। यह भो नियम था कि आजकल तथा प्राचीन कालके धर्मयुद्धोंमें दोनों योद्धाओंके शस्त्र एकसे ही हो। इसी तत्त्वका अवलम्बन किया गया है दुर्योधनने गदायुद्ध के समय कहा था कि कि धर्मका अर्थ दया है। कई बाण कर्णी , मुझ पर रथसे हमला न करो, गदासे रहते थे अर्थात् उनमें सीधे छोरके स्थान युद्ध करो। यदि प्रतिपक्षी दुःखाकुल पर दो उलटे सिरे रहते थे। जब शरीरमें स्थितिमें हो तो उस पर प्रहार नहीं करना घुसा हुआ यह बाण बाहर निकाला चाहिए । भयभीत हो जानेवाले पर, परा- जाता था तब ये उलटे सिरे जखमको जित मनुष्य पर या भागनेवाले पर शस्त्र और भी अधिक बढ़ा देते थे। ये बाण । नहीं चलाना चाहिए । बाण विषलिप्त भी धर्मयुद्धमे प्रशस्त नहीं माने जाते थे। अथवा उलटे काँटेवाला न हो। भारती- महाभारतमें बाणोंकी भिन्न भिन्न प्रकार- युद्ध-कालमें धर्मयुद्धके ऐसे नियम थे। की, विशेषतः दस प्रकारकी, गनियोंका यह भी नियम था कि यदि किसी प्रति- वर्णन किया गया है । बाण सामने, तिरछे पक्षीके शस्त्रका भङ्ग हो जाय, उसकी या गोल जाते थे। यद्यपि धनुष्य-बाणको प्रत्यञ्चा हट जाय, उसका कवच निकल कला भारती यद्ध-कालमें बहुत उत्तम ' जाय या उसके वाहनका वध हो जाय, दशामें पहुंच गई थी, नथापि यह बात | तो उस पर प्रहार नहीं करना चाहिए सम्भवनीय नहीं मालूम होती कि वाण (शान्ति पर्व अ०६५)। युद्ध में जखमी गोल अर्थात् वर्तुलाकार चलता हो । होनेवाले शत्रुको अपने राणमें रखकर बाणके सम्बन्धमें इस बातका भी वर्णन उसे औषध देना चाहिए। अथवा, यह किया गया है कि वे अपना काम करके भी बतलाया गया है कि, उसे अपने घर फिरसे चलानेवालेके हाथमे श्रा जाते थे। पहुँचा देना चाहिए । जखमी शत्रुको, परन्तु यह भी अतिशयोक्ति है। सम्भव उसका जखम अच्छा कर देने पर, छोड़ है कि बाण कवचको भेदकर किसीके देना सनातनधर्म है। इन बातोंसे अच्छी शरीरमें घुस जाय । परन्तु यह भी देख , तरह देव पड़ता है कि धार्मिक युद्धकी पडता है कि यद्यपि बाण इस प्रकार । कल्पना प्राचीन समयमें किस दर्जेतक जोरसे चलाये जाते थे, तथापि योद्धाओं- पहुँच गई थी। आजकलके सभ्य पाश्चात्य की भिन्न भिन्न गतिके कारण बहुत ही राष्ट्रोंमें भी यही नियम पाला जाता है। नीचे गिरते होंगे और इसी लिए योद्धाओं- गत यूरोपीय युद्धोंमें, इसी नियमके को अनेक बाण छोड़ने पड़ते होंगे। अनुसार, दोनों पक्षोंके जखमी योद्धागण धर्मयुद्ध में यह नियम था कि रथी बड़े बड़े अस्पतालोंमें पहुँचा दिये जाते रथी पर, हाथी हाथी पर और घुड़- थे और वहाँ उनके जखमोका अच्छा सवार घुड़सवार पर हमला करे। इस इलाज किया जाना था । यह देखकर
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