- महाभारतके कर्ता
-- बतासे भूतलके रसिक और मानसम्पन्न वाला पूज्य भाव रत्ती भर भी घट नहीं लोगोंका अखण्डित निर्वाह होता चला सकता। अतएव हमारा दृढ़ विश्वास है जायगा और इस अलौकिक वक्षपर धर्म- कि विवेचक दृष्टिसे विचार करने में कोई रूप तथा मोक्षरूप मधुर फल-पुष्पोकी हानि नहीं है। यही समझकर अब हम बहार सदैव बनी रहेगी। सारांश, अनेक विस्तृत रूपसे इस घातकी चर्चा करेंगे कि कवि-कल्पना-तरङ्गोंके और नीति-शास्त्रकी सौतिने महाभारतका विस्तार क्यों और उत्तम शिक्षा देनेवाले चित्ताकर्षक प्रसङ्ग, ! कैसे किया। तथा असंख्य श्रात्माओको शान्ति और सुख देनेवाले तत्वज्ञानके उदात्त विचार भारत क्यों बढ़ाया गया ? इस ग्रन्थमे ग्रथित हैं । इसलिये सौतिकी हम पहले कह आये है कि जबसे इस गर्यौक्तिको यथार्थ हो कहना पड़ता सौतिने महाभारतको वर्तमान स्वरूप है कि "महाभारतमें सब कुछ है; जो इस दिया है, तबसे अबतक उसमें बहुत ही प्रन्थ में नहीं है, वह अन्य स्थानमें भी प्राप्त कम अन्तर पड़ा है। किंबहुना यह कहा न होगा।" जा सकता है कि सौतिका बनाया हुश्रा ऐसे ग्रन्थका विचार विवेचक दृष्टि से महाभारत इस समय ज्योंका त्यों हम करना कहाँतक उचित होगा, इस विषय- ' लोगोंके सामने मौजूद है। अब यदि यह की कुछ चर्चा करना यहाँ आवश्यक मालूम हो जाय कि उसने अपने बृहत् जान पड़ता है। इसमें कुछ शक नहीं कि महाभारतकी रचना कब की, तो इस जब यह प्रतिपादन किया जाता है कि विषयमें अनमान करनेके लिये सभीता महाभारतमें अमुक भाग सौतिका बढ़ाया हो जायगा कि उसने वैशम्पायनके भारत हुआ है, तब श्रद्धालु पाठकोंके मनकी को महाभारतका बृहत् स्वरूप क्यों दिया। प्रवृत्तिमें रसभङ्ग हो जानेका भय होता है। हमारा यह सिद्धान्त है कि शकके पहले परन्तु यदि यथार्थतः देखा जाय तो ऐसी तीसरी शताब्दीमें महाभारतको वर्तमान प्रवृत्ति होनेके लिये कोई कारण नहीं है। स्वरूप प्राप्त हुश्रा है। हमारा सिद्धान्त पहले तो ग्रन्थके वास्तविक स्वरूपको सर्वमान्य भी हो गया है। इसका विस्तृत आन लेनेसे पाठकोंको आनन्द हुप बिना विवेचन आगे किया जायगा। उस समय- कभी न रहेगा । दूसरी बात, प्रत्येक की परिस्थिति पर यदि ध्यान दिया जाय मनुष्यकी यह स्वाभाविक इच्छा होती है तो मालूम हो जायगा कि महाभारतका कि असम्भाव्य कथाओंका यथार्थ और निर्माण क्यों किया गया। उस समय मूल स्वरूप मालूम हो जाय। इस जिज्ञा- हिन्दुस्तानमें दो नये धर्म उत्पन्न हुए थे साकी पूर्ति करना ही विवेचक ग्रन्थ- और उनका प्रचार भी खूब हो रहा था। कारका प्रधान कर्त्तव्य है। तीसरी बात, शकके लगभग ६०० वर्ष पहले तीर्थकर महाभारत-प्रन्थ और महाभारत-कथा- महावीरने पहले बिहार प्रान्तमें जैन- की विवेचक दृष्टिसे जाँच करनेपर भी, धर्मका उपदेश किया और लगभग उसी उस ग्रन्थ और उस कथाका जो स्वरूप समयके अनन्तर गौतम बुद्धने अपने शेष रह जाता है, वह इतना मनोहर और बौद्धधर्मका प्रचार किया । इन दोनों उदात्त है कि व्यासजी तथा महाभारत धौकी वृद्धि उस समय हो रही थी। के सम्बन्धमें पाठकोंके हृदयमै रहने- विशेषतः बौद्ध-धर्मकी विजय-पताका चारों