- महाभारतमीमांसा
का सारांश कहलानेका प्रयत्न किया है। पीछेसे जोड़ा हुआ सिद्ध कर दिखायेंगे, श्लोक प्राचीन भाषाके समान बड़े वृत्तो- उसका भी वर्णन उक्त श्लोकों में पाया जाता में हैं और उनपर वैदिक रचनाको छाया है। यह वर्णन भी इन श्लोकों में पाया जाता देख.पड़ती है। परन्तु यह छाया बहुत ही है कि भीष्म पितामहने पांडवोको अपनी रुत्रिम है और श्लोकोंमें किये हुए वर्णनसे मृत्युका उपाय बतला दिया: परन्तु यह यह भी स्पष्ट है कि वे पीछेसे जोड़ दिये वर्णन पीछेसे जोड़ा हुआ है। सारांश, गये हैं। इसमें सन्देह नहीं कि इन 'यदाश्रौषम्' वाले श्लोक ग्रन्थके प्रारम्भमें श्लोकोंकी रचना सौतिने ही की है, क्योंकि पीछेसे जोड़े गये हैं, और यद्यपि वे ये सब पहिले अध्यायमें ही हैं और यह कथाके सारांशकी दृष्टि से बहुत ठीक मालूम पूरा अध्याय सौतिका ही जोड़ा हुआ है। होते हैं, तथापि उनमें शोकका वर्णन यदि कोई 'यदाश्रौषम् श्रादि ६६ श्लोकोंको किया गया है इसलिये उनका उचित स्थान ध्यानपूर्वक पढ़ेगा तो उसको विश्वास युद्धके अनन्तर ही हो सकता है। यह भाग हो जायगा कि ये सब सौतिके ही हैं। व्यास-रचित नहीं है । सौतिने इसकी इलमें सन्देह नहीं कि ग्रन्थ के एक प्रधान रचना करके इसे अपने उपोद्घातमें पीछेसे पात्रके मुखसे ग्रन्थका सारांश कहलानेकी जोड़ दिया है । इस प्रकार किसी किसी वह एक अच्छी युक्ति है; परन्तु यह बात स्थानमें सौतिके कुछ दोष देख पड़ने हैं: असम्भव सी जान पड़ती है कि समस्त तो भी महाभारतको वर्तमान बृहत् स्वरूप भारतके सारांशका वर्णन करते हुए इस देनेमें उसकी विलक्षण बुद्धिमत्ता और प्रकार शोक किया गया हो। इसकी सृष्टि कुशलता देख पड़ती है। सौति कुछ व्यासके समान महाकविकी बुद्धिसे कभी साधारण कथा बाँचनेवाला पुरोहित नहीं हो ही नहीं सकती । इस शोक-वर्णनमें था। आजकल जिस प्रकार कथा कहने- लौतिक पर्वके भी बादके पेषीक पर्वका वाला कोई प्रसिद्ध पण्डित, रामायणके भाग आ गया है। सच पूछा जाय तो जब किसी एक श्लोकपर, तीन तीन चार उत्तराके पेट में स्थित गर्भ पर अश्वत्थामाने चार घण्टोंतक, अपने श्रोताओंको अच्छी अल-प्रहार किया, तब धृतराष्ट्रको अपने वक्तृता-सहित और भक्ति-रस-प्रधान कथा खभावके अनुसार प्रसन्न हो जाना सुना सकता है, उसी प्रकार सौतिमें भी चाहिये था, परन्तु ऐसा वर्णन उक्त कथा कहनेकी अद्भुत शक्ति थी। निस्सन्देह कोकोंमें नहीं पाया जाता। इसके सिवा, वह बहुत ऊँचे दर्जेका पण्डित था और महाभारतके जिन भागोके सम्बन्धमे यह उसे कुल पौराणिक बातों की जानकारी भी निश्चय हो चुका है कि वे सौतिके जोड़े बहत थी । व्यवहार, राजधर्म और तत्त्व- हुए हैं, उनका भी उल्लेख उक्त श्लोकोंमें ज्ञानके सम्बन्धमें महाभारतकी कथाका पाया जाता है। यह बात आगे चलकर जो उदात्त स्वरूप महर्षि व्यास द्वारा सिद्ध की आयगी कि यक्षप्रश्नका आख्यान प्रकट हुआ है, वह सौतिके अत्यन्त सौतिका जोड़ा हुआ है। इस आख्यानकी विस्तृत ग्रन्थमें भी ज्योका त्यों बना है। बातोंका भी उल्लेख उक्त श्लोकोंमें पाया इसी लिये सौतिने इस ग्रन्थकी जो प्रशंसा जाता है। इसी प्रकार उद्योग-पर्व में की है वह यशार्थी सच है। यह भारत- श्रीकणके मध्यस्थ होनेके समय विश्वरूप- वृक्ष समस्त कविजनोंके लिये एक वर्शनका जो भाग है, और जिसे हम अाधार-स्तम्भ है। इस दिव्य वृक्षकी सहा-