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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा अपनी सेनाके भिन्न भिन्न विभागोंको भी अन्य राजा थे। विराट, शैव्य और कैसे चलाया और समग्र रणभूमि पर काशिराज पीछेकी ओर थे। इस तरहसे युद्ध कैसे शुरू हुा । परन्तु एक बार क्रौंचारुण-महाव्यूहका जो वर्णन है उसका व्यूह-रचना हो जाने पर सेनाके भिन्न भिन्न : तात्पर्य यही है कि सेनाके वही विभाग विभागोंसे सेनापतिका कोई सम्बन्ध नहीं किये गये थे जो हमेशा रहते हैं; जैसे अग्र, रह जाता था । व्यूह-रचना बहुधा प्रातः- मध्य दो पक्ष, और पिछवाड़ा। कौरवोंकी काल युद्ध के प्रारम्भमें हुआ करती थी। सेनाका भी विभाग, इसके सन्मुख, इसी यह नहीं कहा जा सकता कि फिर यह तरहसे किया गया था । भीष्म और द्रोण प्यूह आगे कायम रहता था या नहीं। अग्र भागमें थे । दुर्योधन और शकुनि अक्षौहिणीके परिमाणको देखकर कहना मध्यमें थे। भगदत्त, विंद, अनुविंद, शल्य पड़ता है कि सेनाका फैलाव कई कोसों- और भूरिश्रवा बाई ओर थे । सोमदत्ती, तक रहता होगा। यह वर्णन कहीं नहीं सुशर्मा और कांबोज दाहिनी ओर थे। पाया जाता कितनीदर फैली हुई सेनाके अश्वत्थामा.कप और कतवर्मा सीयर, अधिपतियोंसे सेनापतितक खवर देने में रखवालीमें थे। प्रत्येक दिनके युद्धके वाले लोगोंकी श्रेणियाँ थीं। महाभारतमें प्रारम्भमें ऐसा ही वर्णन मिलेगा। परन्तु वर्णित व्यूहोंका आकार बहुधा पक्षीका यह नहीं कहा जा सकता कि युद्ध के शुरू सा देख पड़ता है। यह कल्पना सहजही हो जाने पर भिन्न भिन्न पक्षों में सामने- सूझ सकती थी और सभी समयोंमें सब वालोंका सामनेवालोंसे और मध्यवालोंका देशोंमें यही प्रचलित थी। क्योंकि सभी मध्यवालोंसे ही युद्ध होता था। युद्धके जगह “सेनाकी दोनों भुजाओंको पक्ष" या प्रायः रथियोंके द्वंद्वयुद्धका ही अधिक "विंग्स" (पंख) कहते हैं । सेनाके ये वर्णन किया गया है। उनका व्यूह-रचनासे भाग हमेशा रहते है-एक रहता है मध्य- विशेष सम्बन्ध नहीं मालम होता । इसी भाग और दोनों ओर दो पक्ष रहते हैं। प्रकारके व्यूह प्रति दिन नये नये नामोंसे उनमें थोड़ा थोड़ा अन्तर रहता है और बनते थे । उदाहरणार्थ, दूसरे दिन उनको परस्पर एक दूसरेसे सहाग रहता कौरवोंने गरुड़-व्यूह बनाया था और है। भारतीयद्धक समयके भिश भिन्न सब पाण्डवोंने उसके उत्तरमें अर्धचन्द्र व्यह व्यूहोंमें इसी तरहका सैन्यविभाग था। रचा था । अब यह बतला सकना कठिन उदाहरणार्थ, पाण्डवोंने पहलेही दिन जो है कि क्रौंचव्यूहमें और गरुडन्यूहमें क्या क्रौंचव्यूह बनाया था उसका भी मुख्य फर्क था। इन भिन्न भिन्न व्यूहोंका वर्णन भाग ऐसा ही था। पक्षीके शिरस्थानमें दण्डनीतिशास्त्रमें है । परन्तु वर्तमान दुपद था। नेत्रस्थानमें कुंतिभोज और चैद्य | समयकी स्थितिकी भिन्नताके कारण उनका थे । अर्थात् ये तीनों मिलकर सेनाके यथार्थ ज्ञान नहीं होता और उनके युद्धकी अन भागमें थे । अन्य लोगोंके साथ युधि- रीति भी समझमें नहीं आती। ष्ठिर पृष्ठस्थानमें यानी मध्य भागमें था। चक्रव्यूहकी कल्पना तो अब बिलकुल धृष्टयन और भीमसेन पङ्खोंके स्थान पर हो ही नहीं सकती। पहला प्रश्न यही अर्थात् दाहिनी और बाईं ओर थे। द्रौपदीके होता है कि द्रोणने जो चक्रव्यूह बनाया पत्र तथा अन्य राजा लोग दाहिने पक्षकी था. वह स्वसंरक्षणके लिए था या शत्रका सहायतामें थे । बांई ओरकी सहायतामें नाश करनेके लिए था। यदि वह शत्रुके