पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३९१

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B सेना और युद्ध । है ३६५ नाश अथवा पराभवके लिए बनाया गया। व्यूहमें अकेले अभिमन्युके ही जानेका क्या था, तो यह बात निर्विवाद है कि यह काम प्रयोजन था। चक्रव्यूहके द्वारा नहीं हो सकता । श्राज हाँ, महाभारतमें पाये जानेवाले संकुल- कल चक्रव्यूहके सम्बन्धमें जो कल्पना युद्धके वर्णनमें और आजकलके युद्ध- प्रचलित है वह भी गलत मालम होती वर्णनों में बहुत कुछ मेल है। संकुल-युद्ध है। आजकल यह धारणा है कि भ्रममें का प्रायः यह क्रम था कि रथदलसे रथ- डाल देनेवाली एक गोल आकृतिका नाम दलका, अश्वसे अश्वका,गजसे गजका और चक्रव्यह है । अंग्रेजीमें इसे लेबरिंथ कहते पैदलसे पैदलका युद्ध हो। इसके सिवा हैं जिसका अर्थ 'भूल-भुलैयां है। इस रथ भी हाथीवाले पर और हाथीवाले प्रकारके लेबरिथ बागीचोंमें बनाये जाते रथ पर टूटकर उसको चूर कर देते थे। हैं। उनमें एक बार प्रवेश करने पर बाहर । रथी गजारोहियों पर बाण चलाते थे और निकलना कठिन हो जाता है। यह नहीं पैदलोंको भी तीक्ष्ण शरोसे मारते थे। माना जा सकता कि द्रोणने इस तरहकी पैदल लोग पैदलोंको गोफन और फरसे. ब्यूहरचना की होगी । चक्रका अर्थ रथका ! से मारते थे और रथ पर भी प्राक्रमण पहिया है और उसी तरहके व्यूहके बनाये करते थे। हाथी पैदलोको पीस देते थे जानेका वर्णन है। “पहियेके श्रारोंकी और पैदल गजारोहियोंको गिरा देते थे। जगह पर तेजस्वी राजकुमार खड़े किये यह स्पष्ट है कि हाथी और घोड़े पैदलो- गये । म्वयं दुर्योधन व्युहके मध्य भागमें की हानि करते थे । तथापि पैदल भी थे और उनके चारों ओर कर्ण, दुःशा- उन पर आक्रमण करते थे। इस तरहके सन, कृपाचार्य श्रादि महारथी वीर थे। (भीष्म अ०५७) संकुल-युद्धोंके वर्णन सेनाके मुखके पास खुद द्रोणाचार्य थे महाभारतमें अनेक हैं । परन्तु अन्तिम और इनके पास सिन्धुपति जयद्रथ था। दिनके युद्ध का वर्णन बहुत ही उत्तम है। उनकी बगल में अश्वत्थामा खडा था। वह यह बहुत कुछ पानीपनके आखिरी दूसरी तरफ गांधारराज, शकुनी, शल्य युद्धके समान है। बल्कि शल्यने प्रारम्भ- आदि थे।" अर्थात् यह रचना नित्यके से ही सब लोगोंको द्वंद्वयुद्ध न कर सहश थी। यह कहा जा सकता है कि संकुलयुद्ध करनेकी सूचना दे दी थी। इस चक्रव्यूहकी रचना दुर्योधनकी रक्षाके अनन्तर भिन्न भिन्न पाचौंका युद्ध मध्योंका लिए की गई थी। मध्यमें द्रोण, बाई और युद्ध और पिछवाडीका युद्ध हुमा । द्रोणपुत्र और जयद्रथ तथा दाहिनी ओर विश्वास रावकी तरह शल्य भी बारह बजेके शकुनी और शल्य थे। इस समूहके पीछे लगभग गिरा, परन्तु लड़ाई बन्द नहीं हुई। चक्रव्यूह था । परन्तु इस बाती कल्पना शकुनीने घुड़सवारोंके साथ पांडवोंके नहीं हो सकती कि इस चक्रके परिघ पर पीछेकी ओर आक्रमण किया । तब फौज किस तरह और किसकी खड़ी युधिष्टिरने भी उसकी अोर सहदेवको थी । यहाँ यह भी नहीं बतलाया गया है घड़सवारोंके साथ भेजा । दोनों घुड़. कि ये मुख खुले थे। हम पहले कह चुके सवारोंके युद्धका वर्णन अत्यन्त सुन्दर हैं कि चक्रब्यूहकी ठीक ठीक कल्पना है। अन्तमें कौरवोंकी हार होने लगी और करनेके लिए इससे अधिक साधन नहीं । उनका दल दो तीन बजेके लगभग तितर- है। यह भी मालूम नहीं होता कि इस बितर होने लगा। भाउके समान दुर्योधन