पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३९७

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ॐ व्यवहार और उद्योग-धन्धं । * स्थानमें अत्यन्त प्राचीन कालसे थी । मणिरत्नानि भावन्ति कार्पाससूक्ष्मवल। हमारे 'तुरी' और 'वेम' (स्पिन्डल और ' चोलपाण्ड्यावपिद्वारं न लेभाते खुपखितो॥ लूम ) इन पुराने यन्त्रोंके अनुकरण पर इस तरहसे हमें महाभारतमें चोल अाजकल विलायत श्रादि देशोंमें सुधरे और पाण्ड्य देशोंके सूक्ष्म वस्त्रोंकी ख्याति- हुए यन्त्र बनाये गये हैं। भारतीय तत्त्व- का वर्णन मिलता है। दक्षिणके बन्दर- ज्ञानमें आनेवाले तन्तु और पट शब्द गाह और देश (जैसे सूक्ष्म कार्यास-वलो- बहुत पुराने हैं और कपड़े बुननेवाला के लिए प्रसिद्ध थे, उसी तरह उत्तरके कोष्टी या जुलाहा पुगना शिल्पी है। देश) ऊनी और रेशमके सूक्ष्म वस्त्र बनाने. महाभारत-कालमें अतिशय सूक्ष्म वस्त्र के काममें विख्यात थे । ये वस्त्र कई रोके, बनानेकी कला पूर्णताको पहुँच गई थी। बड़े नरम और कलाबत्तू मिलाकर बनाये इसका प्रमाण यूनानी ग्रन्थोसे मिलता जाते थे। सभापर्वमें राजसूय यज्ञके समय है। ये महीन कपड़े पर्शिया, ग्रीस, रोम, एम वस्त्रोंके नज़रानेके तौर पर पानेका आदि स्थानोम भेजे जाते थे। इतिहाससे वर्णन है। मालूम होता है कि गेमन स्त्रियोंको हिन्दु स्थानके बने हुए महीन कपड़ोंसे बड़ा प्रमाणरागस्पर्शान्यं याहीचीनसमुद्भवम् । प्रेम था। महाभारतमें भी कपासकं सक्षम . आणचरांकवं चैव कीटज पद तथा॥ वस्त्रोंका वर्णन है । गजसूय यज्ञमें युधि- कुटीकृतं तथैवात्र कमलाभं सहस्रशः। ष्ठिरको जो अनेक प्रकारके कर दिये गये श्लन्णं वस्त्रमकासमाविकंमृदु चाजिनम्॥ थे, उनके वर्णनमें कहा गया है कि- इसमें और्ण अर्थात् ऊनसे बनाये हुए शतं दासीसहस्राणां कार्यासिनिवासिनां। कपड़ोंका, राकयं अर्थात् रंकु मृगके रोएँ. बलिं च कृत्स्नमादाय भरुकच्छनिवासिनः॥ सपना CARE से बनाये हुए कपड़ोंका और कीटजं । अर्थात् रेशमके कपड़ोंका स्पष्ट वर्णन है। (सभा पर्व ५१) परन्तु पदजंका अर्थ समझ नहीं पड़ता। भरुकच्छ (भडोच) में रहनेवाले लोग ये वस्त्र पाब और अफगानिस्तानकी सूक्ष्म कार्पास-वस्त्र पहने हुई एक लाख और बनते रहे होंगे । चीनसे रेशमी दासियोको कर-स्वरूपमें लेकर आये थे। कपड़े पाते रहे होंगे। शालके लिए पाब भडौच शहर अब भी कपासके लिए और काश्मीर आज भी प्रसिद्ध हैं। इसमें प्रसिद्ध है। बल्कि वहाँकी कपास हिन्दु- । जो कुटीकृतका वर्णन है, उससे आजकलके स्तानकी कपासोमें सर्वश्रेष्ठ मानी जाती पञ्जाबमें ऊनसे तन्तु निकाले बिना बनाये है। अतएव कपासके सम्बन्धमें भडोच- जानेवाले वस्त्रोंका ध्यान होता है। कपास, का प्राचीन कालमें वर्णन पाया जाना रेशम और उनके मिश्रित धागोंसे वल आश्चर्यकी बात नहीं है। भडोच नर्मदा बनानेकी कला महाभारत-कालमें भी नदीका प्राचीन बन्दरगाह भी था। महा-प्रचलित थी। इस रीतिसे वलोकी कीमत भारत-कालमें भडौचकी तरहके कपासके कम होती है। अतएव ऊपरके लोकमें सूक्ष्म वस्त्रोके सम्बन्धमै पाण्ड्य और अकार्पास विशेषण रखा गया है । चोल देशोकी भी ख्याति थी और मठास- भेडाके ऊनके सिवा अन्य जानवरोके के पूर्वी किनारका नाम सूक्ष्म वस्त्रोंके । मुलायम रोएंसे भी वस्त्र बनानकी कला सम्बन्ध आज भी है। मालम थी।