सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३७२
महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा ® और्णान् बैलान्धार्षदन्तान् जातरूप 'हे युधिष्ठिर, तू सब कारीगर लोगोंको परिष्कृतान। प्रावाराजिनमुख्यांश्च कांबोजः द्रव्य और उपकरण अर्थात् सामान चार प्रददौ बहून् ॥ महीनोंतक चलनेके योग्य नित्य देता है ___"ौर्णान् अर्थात् बकरके ऊनके, बैलान् न ?' नारदके इस प्रश्नमें दिखलाया गया यानी बिलों में रहनेवाले अन्तओंके ऊनके. है कि सरकारको अपनी प्रजाकी उद्योग बिल्लियोंके ऊनके और कलाबत्तके द्वारा धन्धे-सम्बन्धी वृद्धिकेलिए कितनी खबर सुन्दर बने हुए कपड़े कांबोज राजाने । दारी रखनी पड़ती थी। अहिल्याबाई दिये।" महाभारत-कालमें कलाबत्तू बनाने- महाभारत आदि पुराणोंका जो श्रवण की कला जारी रही होगी और इसी कारण करती थी, वह कुछ व्यर्थ नहीं जाता था: परदेश तथा स्वदेशके श्रीमान् लोग हिन्दु- । क्योंकि ऐसा मालूम होता है कि राजनीति- स्थानमें बने हुए पतले, रेशमी, ऊनी और का नारदका यह महत्वपूर्ण उपदेश उसके कपासके वस्त्र पहनते थे। ये कपड़े परः । मनमें पूरा पूरा जम गया था। महेश्वरमें देशमें समुद्रसे और खुश्कीकी राहसे जाते सरकारी दुकान खोलकर उसने चीनसे थे। विशेषतः स्त्रियोंको इन कपड़ोंकी रेशम मँगाकर कारीगरोंको दिलानेकी अधिक चाह थी । धनवान स्त्रियोंके लिए व्यवस्था की थी। इससे महेश्वरकी कारी- महाभारतमें सूक्ष्मकम्बलवासिनी गरीकी दशाका सुधर जाना और वहाँ विशेषण प्रायः रखा गया है । इसमें साड़ियों और धोतियोंका बहुत बारीक कम्बल शब्दका अर्थ मामूली कम्बल नहीं और सफ़ाई के साथ बनना जगत्प्रसिद्ध लेना चाहिए-उससे केवल ऊनी वस्त्र इस सरकारी दुकान ही रेशमवाले समझना चाहिए। इस विशेषणकी तरह अधिकारी थे। कश्चित् अध्यायमें कहा सूचमकौषयवासिनी विशेषण भी प्रायः है। गया है कि लोगोंके उद्योगधन्धोंके प्रयुक्त हुआ है। इससे मालूम होता है कि । सम्बन्धमें निगरानी रखकर समय समय स्त्रियोंको बारीक रेशमके पीले कपड़े अति- पर उन्हें सहायता देनेके लिए सरकार शय प्रिय थे। अधिकारी नियुक्त करं । सारांश यह है कि महाभारत-कालमें वार्ता अर्थात् उद्योग- कारीगरोंकी सहायता। धन्धोंके उत्कर्षकी ओर राजाका पूरा इस तरहक मूल्यवान् कपड़े तैयार पूरा ध्यान रहता था। करनेका मुख्य साधन बहुत बड़ी पूंजी है। यह कारीगरोंको मिल नहीं सकती। उन्हें सरकार अथवा साहकारके द्रव्यकी सहा- यह स्पष्ट है कि कपासके, विशेषतः यताकी जरूरत रहा ही करती है। मालम' ऊन और रेशमके कपड़े बनानेके लिए होता है कि प्राचीन कालमें सरकारसे ऐसी रङ्गकी कलाका शान अत्यन्त आवश्यक सहायता मिलनेकी पद्धति प्रचलित थी। था। महाभारत-कालमें हिन्दुस्थानमें रज- मारदकी बतलाई हुई अतिशय महत्वपूर्ण की कला पूर्णताकी अवस्थाको पहुँच चुकी और मनोरञ्जक राजनीतिमें इस बातका थी। ये रङ्ग बहुधा वनस्पतियोंसे बनाये मी उल्लेख है। जाते थे और उनके योगसे कपड़ों में दिया द्रव्योपकरणं कश्चित्सर्वदा सर्वशिल्पिनाम्। हुअा रङ्ग स्थिर तथा टिकाऊ होता था। चातुर्मास्यवरं सम्यक नियतं संप्रयच्छसि ॥ प्राचीन कालमे रंगकी कला कितमी उत्कृष्ट