- व्यवहार और उद्योग-धन्धे । ॐ
मालूम होता है कि, जीते जाने पर आर्य भी, वे धीरे धीरे बन्द होते गये। तात्पर्य, लोग भी दास होते थे। चाहे यह जीतना पाश्चात्य देशोंकी तरह, परदेश अथवा युद्ध में हो अथवा घृतमें। धूतमें जीतना स्वदेशके भी लोगोंको जीतकर, दास इस प्रकार होता था कि जब कोई श्रादमी अथवा गुलाम बनानेकी प्रथा महाभारत- स्वयं अपनेको दाँव पर लगाकर हार जाता कालमें हिन्दुस्थानमें नहीं थी। तो दास बन जाता था। जब पाण्डव स्वयं ___उस जमाने में यह प्रथा प्रीस, रोम, अपनेको दाँव पर लगाकर हार गये तब वे ईजिप्ट श्रादि देशोंमें प्रचलित थी । उन दुर्योधनके दास हो गये । इस तरहके देशोंके इतिहासको पढ़नेसे हमें खेदके दाँव लगानेकी प्रथा महाभारत-कालमें भी साथ साथ आश्चर्य भी होता है कि आज रही होगी । क्योंकि मृच्छकटिकमें भी | उत्तम दशामें रहनेवाले हजारों स्त्री-पुरुष, ऐसा होनेका वर्णन है । युद्धमें जीतकर पराजित होनेके कारण, कल भयङ्कर शत्रुको मार डालनेकी अपेक्षा उसे दास दासत्व अथवा गुलामीमें कैसे पड़ जाते बना लेनेकी प्रथा बहुत कम रही होगी। थे। किसी शहर पर आक्रमण होने पर वन पर्वमें कथा है कि भीम जयद्रथको यह नियम था कि जब शहर पराजित जीतकर और बाँधकर लाया और यह और हस्तगत हो जाय तब वहाँके लड़मे- संदेशा भेजा-"द्रौपदीको खबर दे दो वाले पुरुष कत्ल कर दिये जायें और कि इसे पाण्डवोंने दास बना लिया है" उनकी सुन्दर स्त्रियाँ गुलामीमें रखी (वन पर्व अ० २७२) अर्थात् इस तरहसे जायें । होमरमें बार बार ऐसा ही वर्णन दास बनानेका उदाहरण कभी कभी होता है और ग्रीक लोग अपने पीरोंको यह था। 'कभी कभी' कहनेका कारण यह है कहकर प्रोत्साहन देते हैं कि तुम्हारे उप- कि आर्य लोगोमें अपने ही भाई-बन्धुओं- भोग करनेके लिए दायमें सुन्दर स्त्रियाँ को इस तरह दास बनानेकी चाह मिलेगी। यह बात महाभारत कालमें अथवा इच्छा न रही होगी। दास होने हिन्दुस्थानमें बिलकुल न थी । पाश्चास्य पर सब प्रकारके सेवा-कर्म तो करने ही देशोंकी तरह, हिन्दुस्थानमें गुलामीको पड़ते थे, परन्तु उसकी स्वतन्त्रता भी प्रथा न पाकर यूनानियोंको बड़ा आश्चर्य चली जाती थी । बल्कि उसका वर्ण और हश्रा और उन्होंने इस बातको अपने जाति भी भ्रष्ट हो जाती थी । द्रौपदीका ग्रन्थों में लिख भी डाला है । "हिन्दुस्थान- दासी हो चुकना मान लेने पर यह समझा के लोग अपने देशके अथवा परदेशके गया कि उसके साथ मनमाना, लोडीकी लोगोंको दास या गुलाम नहीं बनाते।" तरह भी, व्यवहार करनेका हक प्राप्त हो यूनानी इतिहासकारोंने लिखा है कि गया है । अर्थात् क्षत्रिय लोगोंको तथा हिन्दुस्थानी स्वयं स्वतन्त्र थे; अतएव दूसरों समस्त आर्य लोगोंको दास बनानेकी की स्वतन्त्रताका हरण करनेकी इच्छा प्रथा भारती-युद्ध-कालमै भी नहीं दिखाई उनमें बिलकुल न थी। इस दुहरे प्रमाण- देती। क्योंकि दोनों प्रसङ्गोंमें ये परा-से भी सिद्ध होता है कि महाभारत काल- जित आर्य क्षत्रिय दासत्वसे मुक्त कर मैं दास अथवा गुलाम नहीं थे। छोड़ दिये गये हैं। इससे मालूम होता है कि भारती युद्ध-कालमें, युद्धके कड़े नाच भोकमें दाग अथवा गलामका उल्लेख नियमोके कहीं कही प्रचलित रहने पर मालुम होना है:-