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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४०४

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महाभारतमीमांसा

8 महाभारतमीमांसा * - राहकी तरह मालका लाना-ले जाना नदी व्यापार होता था। इससे यह मान लेने- और समुद्र के द्वारा भी होता था। इसका । मैं कोई हर्ज नहीं कि प्राचीन कालमें भी बहुत वर्णन नहीं है, परन्तु महाभारतके इन वस्तुओका व्यापार होता था । अनाज अनन्तरकीमनुस्मृतिमें समुद्रके द्वारा माल विदेशोंको नहीं भेजा जाता होगा, क्योंकि खाने-ले जानेके सम्बन्ध विस्तारपूर्वक पहले तो उसके सस्ते होनेके कारण वर्लन है। समुद्र के द्वारा माल भेजनेमे उसको ले जानेके लायक प्राचीन कालमें बड़ा धोखारहता है। अतएव ऐसी स्थिति- बड़े बड़े जहाज न थे: और फिर अन्य में समुद्र के पार-देशोंमें माल भेजते समय देशोंमें उसकी आवश्यकता भी न थी। उसके सम्बन्धमें दिये हुए कर्जके व्याजके सभी जगहोंमें लोक-संख्या कम होनेके बारेमें मनुस्मृतिकी आशा है कि सदैवको कारण प्रत्येक देशमें आवश्यकताके अनु- अपेक्षा अधिक ब्याज लेना चाहिए क्योंकि रूप अनाजकी उपज होती ही थी । ऐसे व्यापारोंमें डर भी अधिक है और इसके सिवा हिन्दुस्थानमें भी जङ्गल बहुत लाभ भी। यह पहले बतलाया जा चुका थे: अतएव केवल आवश्यकताके अनुसार है कि सदैवके व्याजको दर प्रतिमास फी अनाज उत्पन्न होता होगा । यहाँसे आज सैंकड़े एक रुपया थी। इस वर्णनसे : कलकी तरह अनाज अथवा अन्य कच्चा सिद्ध होता है कि महाभारत कालमें समुद्र- माल नहीं भेजा जाता था। प्राचीन हिन्दु- पारके देशोसे व्यापार होता था। स्थान कच्चे मालका निर्गत न कर पक्का महाभारतकालीन देनलेनका विचार माल ही बाहर भेजता रहा होगा। बल्कि करनेसे अनुमान होता है कि इस सम्बन्धमें यह स्थिति सभी देशोंकी थी। लिखापढ़ी भी की जाती थी। यूनानियोंने लिखा है कि हिन्दुस्थानके लोग दस्तावेजों हिन्दुस्थानमें दास अथवा पर साक्षी अथवामुहर नहीं कराते। अतएव गुलाम नहीं थे। लिखापढ़ी तो अवश्य होती रही होगी। अब खेतीके सम्बन्धमें कुछ और ब्याज-बट्टेका काम करना ब्राह्मणोंके लिए विचार किया जायगा। यह एक महत्व- निन्ध समझा जाता था। क्योंकि यह स्पष्ट का प्रश्न है कि पूर्व कालमें दास थे या है कि ऐसे मनुष्योको निर्दय होना पड़ता नहीं। प्राचीन कालमें शारीरिक परिश्रम- है। व्यापारकी वस्तुओंमें बारीक सूती के काम बहुधा दासोंसे करानेकी प्रथा और रेशमी कपड़े, रत्न, हीरे, पुखराज, सभी देशोंमें थी। उसी तरह कदाचिन् माणिक और मोती थे । परन्तु इसका वैदिक कालमें हिन्दुस्थानमें भी थी। वर्णन नहीं है कि इनके सिवा सुगन्धित लड़ाई में जीते हुए लोग ही दास होते मसालोंके पदार्थ भी व्यापारमें आते थे थे। वैदिक कालमें यहाँके मूल निवासियों- और विदेशोंमें जाते थे अथवा नहीं । को दास कहा है: और ये लोग जीते ही आजकल पाश्चात्य देशों में इन्हीं पदार्थोके गये थे। अन्त में इसी वर्गका शुद्र वर्ण बारेमें हिन्दुस्थानकी बड़ी ख्याति है, बना और शूद्रोंका विशिष्ट धन्धा जेता परन्तु महाभारतमें उनके उल्लेख होनेका पार्यों अर्थात् त्रिवर्णकी सेवा करना प्रसङ्ग नहीं पाया । इतिहाससे मालूम निश्चित हुआ। भगवद्गीतामें "परिचर्या- होता है कि महाभारत-कालमें भी पश्चिमी त्मकं कर्म शूद्रस्यापि खभावजम् ।” कहा किनारेले ग्रीक और अरब लोगोंका गया है। इसके सिवा, भारती-युद्ध कालमें