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- महाभारतमीमांसा 8
पड़ता है कि उत्तर कुरु, भद्राश्व, केतु- इस शशाकृति द्वीपके दूसरे आधे भागमें माल और जाम्बुनद देशोंके पुण्यवान्, | दिखाई पड़ता है।” इन श्लोकोंमें वर्णित सुखी और दीघार्यु लोगोंका जो अति- शशाकृति कौनसी है, और शराकृति कौन शयोक्तियुक्त वर्णन है, उस वर्णनके लिए सी है, यह बिलकुल ही समझमें नहीं कुछ न कुछ दन्तकथा अथवा पूर्व आता । इसका भी उल्लेख नहीं कि, मलय. स्मृतिका आधार अवश्य होगा। यह माना पर्वत कौनसा है । शशाकृति-द्वीप कौन जा सकता है कि 'पार्योंके पूर्वज उत्तर सा है, और उसका दूसरा अर्धभाग ध्रुवके प्रदेशमें थे'-इस सिद्धान्तको पुष्ट कौनसा है, इसका भी बोध नहीं होता । करनेवाला उत्तरकुरु शब्द भी है। इससे पिछले अध्यायके अन्तिम श्लोकमें लिखा यह स्पष्ट मालूम होता है कि प्रायोंके है कि सुदर्शनद्वीप चन्द्रमण्डलकी जगह मुख्य कुरु लोगोंकी, उत्तर ओरकी मूल सूक्ष्म-रूपसे प्रतिबिम्बित दिखाई देता भूमि उत्तरकुरु है; और उसका स्थान है: उसके एक भाग पर संसाररूपी महाभारतकालमें लोगोंकी कल्पनासे मेक पीपल दिखाई देता है; और दूसरे पर्वतके पास अर्थात् उत्तर ध्रुवके पास था। आधे भाग पर शीघ्रगामी-शशकरूप- से परमात्मा दिखाई देता है। ये श्लोक अन्य द्वीप। भी कृट ही हैं । जो हो, इन दोनों हम लोग जिस द्वीपमें रहते हैं उस अध्यायोंसे प्रकट होता है कि तीन द्वीपों- जम्बूद्वीपका, महाभारत-कालमें प्रचलित के नाम ऐरावतद्वीप, नागद्वीप, और मतके अनुसार, यहाँतक वर्णन किया काश्यपद्वीप थे । उनमें नागद्वीप और गया। शेष छः द्वीपोंका वर्णन महाभारत- काश्यपद्वीप शशकके कानोंकी जगह के भिन्न भिन्न अध्यायोंमें किया गया है। दिखलाये गये हैं । इससे हमने नागद्वीप तथापि “सप्तद्वीपा वसुन्धरा" यह वाक्य और काश्यपढीपको गोल चक्राकार न संस्कृत साहित्यमें प्रसिद्ध है । ये छः द्वीप मानते हुए शशकके कानोंके समान लम्बे जम्बूद्वीपके किस ओर और कैसे थे, आकारमें जम्बूद्वीपके दोनों ओर नकशेमें इसका वर्णन महाभारतमें विस्तृत रीतिसे दिखलाया है । इसके बाद हमने मलयद्वीप- कहीं नहीं पाया जाता । इस विषयमें कुछ को, एक मलयपर्वतके नामसे मानकर, गूढार्थके श्लोक महाभारत, भीष्म पर्व, पृथ्वीके दूसरे आधे भागमें अर्थात् जम्बू- अध्याय ६ के अन्तमें हैं। उनका अनुवाद : द्वीपके दक्षिण दिखलाया है। पर यह यह है:- "हे राजा, तूने मुझसे जिस कल्पना महाभारत-कालमें थी कि जैसे दिव्य शशाकृति भागका वर्णन पूछा था पृथ्वी पर सात द्वीप हैं वैसे ही सात समुद्र वह मैंने तुझसे यहाँतक बतलाया। इस भी हैं। आजकल भी हम "सात समुद्र शशाकृतिके दक्षिण और उत्तर ओर पार" कहा करते हैं। पीत समुद्र, लाल भारत और ऐरावत, ये दो वर्ष मैंने तुझको समुद्र, काला समुद्र, सफेद समुद्र-ये बतलाये ही हैं । अब यह समझ कि चार समुद्र आजकल नकशेमें हैं । सूर्यकी नाग और काश्यप, ये दो द्वीप, इस किरणें भी सात रङ्गोंकी हैं; परन्तु पूर्व शशकके दोनों कर्णौके स्थानमें हैं : और कालमें समुद्रोकी कल्पना रङ्गो पर न थी। हे राजा, वह रमणीय मलय-पर्वत, किन्तु लवण समुद्र, क्षीर समुद्र, दधि जिसकी शिलाएँ ताम्रपत्रके समान हैं, । समुद्र इत्यादि प्रकारकी थी। अब महा-