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- महाभारतमीमांसा *
दिखलाया है, वह भी इसी देशके लिए जायगा, तो यह स्पष्ट है कि श्रीकृष्णको उपयुक्त होता है । निषधसे दक्षिणकी नर्मदा नदी पार करके जाना पड़ेगा। मोर जो मार्ग दिखलाया है, वह अवन्ती परन्तु वैसा करनेका वर्णन नहीं है। जो और ऋक्षवान् पर्वतको पार करके विन्ध्य हो, यह विषय संशयित है, क्योंकि महाशैल और पयोष्णी नदीको ओर रुक्मिणोके विषयमें दोनों स्थानों में अबतक दिखलाया है । ऋक्षवान् पर्वत राजपूताने- दन्तकथाएँ प्रचलित हैं । बरार प्रान्तके में है। परन्तु निषध देशके दक्षिणकी अमरावती नगरमें देवीका वह मन्दिर ओर उसको अनेक शाखाएँ गई है । उन दिखलाया जाता है, जहाँसे श्रीकृष्णने शास्त्राओको पार करनेके बाद अवन्ती रुक्मिणीको, जब वह देवीके दर्शनोंको आई देश मिलता है । अवन्ती देश अाजकलका थी, हरण किया था। इसी प्रकार अवन्ती- मालवा है। अवन्ती देशको पार करने के पश्चिम ओर विन्ध्याचलसे मिला हुआ पर विन्ध्य पर्वत है; और विन्ध्यके आगे अंबभरा नामक एक प्रान्त है। वहाँ भी नर्मदा नदी है। पर यहाँ नर्मदा नदीका देवीका एक मन्दिर है, जहाँ यह प्रसिद्ध नाम नहीं दिया है, किन्तु पयोष्णीका है कि श्रीकृष्णने यहींसे रुक्मिणीका हरण बतलाया है ; सो शायद इसलिए बत- किया था। इसके सिवा एक तीसरा भी लाया होगा कि वह विदर्भके पासकी है। विदर्भ गोदावरीके दक्षिण ओर किसी अवन्ती तो मालवा और उजयिनी है, समय प्रसिद्ध होगा। मुसलमानोंके समय इसमें कुछ भी सन्देह नहीं । परन्तु विदर्भ यह विदर्भ प्रसिद्ध था। फरिश्ताने अपने देश कौनसा है, इस विषयमें शङ्का अथवा इतिहासमें लिख रखा है कि बेदर नाम मतभेद है। कितने ही लोग मानते हैं कि उसी शब्दसे निकला है। यही नहीं, वर्तमान बरार ही विदर्भ है । इस विदर्भकी किन्तु उसने नल-दमयन्ती और रुक्मिणी- राजधानी भोजकट कही गई है और की कथाका भी वहीं उल्लेख किया है। इसकी नदी पयोष्णी मानी गई है। भोज-शङ्करदिग्विजयमें भी सायणाचार्यने कट, पयोप्णी और विदर्भ, तीनों बाते इसी विदर्भका उल्लेख इसी ठिकानेका विन्ध्य पश्चिम ओर नर्मदाके उत्तर भी किया है। महाभारतके अस्पष्ट वचनोका मानी जाती हैं। यह भी ध्यान रखना विचार करते हुए हमारे मतसे यही जान चाहिए कि उन्हीं देशों और नदियोंके पडता है कि महाभारत-कालमें बरार- नाम दो दो बार और तीन तीन बार भी विदर्भ अवश्य प्रसिद्ध होगा। इस विदर्भ- पाये हैं। इससे यह भी अनुमान निकल के पास पूर्व और प्राक्कोसल नामका देश सकता है कि आर्य लोग जहाँ जहाँ गये, महाभारत और हरिवंशमें भी बतलाया वहाँ यहाँ वे अपने पहलेके कुछ कुछ नाम गया है। विदर्भ देश साधारणतः दाक्षि- अपने साथ ले गये। विदर्भका सम्बन्ध णात्य देशोंमें गिना जाता था। यह बात जैसे दमयन्तीसे मिलता है, वैसे ही महाभारतमें उस समय कही गई है, जब रुक्मिणीसे भी मिलता है। हरिवंशमें यह कि रुक्मी अपनी सेना लेकर पाण्डव- वर्णन है कि श्रीकृष्ण जय रुक्मिणीको पक्षमें मिलने गया । उद्योग पर्वके १५वें हरण करके लिये जाते थे, तब नर्मदा अध्यायके प्रारम्भमें ही यह कहा है कि नदी पर ही रुक्मीसे उनकी भेंट हुई भोज वंशोद्भवदक्षिण देशाधिपति भीष्मक- थी। आजकलका बरार यदि विदर्म माना का विश्रुत पुत्र रुक्मी पाण्डवोकी ओर