पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४४९

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  • ज्योतिर्विषयक ज्ञान । #

४२६ उत्पन्न न हुआ था। परन्तु इस समय प्रकार है-मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन, यह गणित मालूम हो गया है और सभी ! चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ,प्राषाढ़,श्रावण, भाद्र- जानते हैं कि तेरह दिनोंका पखवाडा कई पद. आश्विन और कार्तिक । इनका बार होता है। इससे कुछ यह नहीं कहा प्रारम्भ मागे-शीसे होता है। ध्यान देने- जा सकता कि हम व्यासकी अपेक्षा की बात यह है कि आजकलकी तरह चतुर हैं। वेदाङ्ग-ज्योतिषमें तिथियोंका चैत्रसे प्रारम्भ नहीं होता। मार्गशीर्ष । गणित है । अर्थात् भारतीय युद्धका महीनेको अाग्रहायण कहा है। अनुशा- समय-व्यासका समय-वेदाङ्ग ज्योतिष- सन पर्वके १०६ठे और १०६वें अध्यायमें के पहले ही निश्चयपूर्वक निश्चित होता प्रत्येक महीनेमें उपवास करनेका फल है। यानी यह निश्चित हुआ कि सन् लिखा है। उसमें भी प्रारम्भ मार्गशीर्षसे ईसवीसे १४०० वर्ष पूर्व भारतीय युद्ध ही है । इसके अतिरिक्त गीतामें भी हुआ था । अस्तु: यह पहले ही कहा जा "मासानां मार्गशीर्षोहम" कहा है। इससे चुका है कि महाभारत, वर्तमान स्वरूपमें, जान पड़ता है कि भारतीकालमें महीनोंके वेदान-ज्योतिपके अनन्तर आया। महा- प्रारम्भमें मार्गशीर्ष होना चाहिण । यह भारतके समय यह बात मालूम होगी एक महत्वका प्रश्न है कि पहले महीनोंके कि सूर्य और चन्द्रका योग २८ दिनोंमें प्रारम्भमें मार्गशीर्ष क्यों था। परन्तु यहाँ होता है और नीचेवाले लोकसे यही देख पर हमें इस कठिन प्रश्नका विचार नहीं पड़ता है- करना है । समूचे भारती-कालमें महीनों- अष्टाविंशतिरात्रं च चंक्रम्य सह भानुना। का क्रम मार्गशीर्षादि है और अब लगभग निप्पतन्ति पुनः सूर्यान्सोमसंयोगयोगतः ॥ ईसवी सनके प्रारम्भसे चैत्रादि हो गया सूर्य के साथ नक्षत्र २८ रात्रियाँ घूम- है। इसी तरह नक्षत्र-गणना भी महा. कर, चन्द्र के संयोगके पश्चात, फिर सूर्य- भारतमें कृत्तिकादि थी और लगभग से बाहर होते हैं । इस शलोकका पेसा ईसवी सन्के प्रारम्भमेही वह अश्विन्यादि ही अर्थ जान पड़ता है। अस्तु: यह बात हो गई है। तो प्रदर्शित की गई है कि सूर्य-चन्द्रका ग्राह्मण ग्रन्थोंमें और यजुःसंहितामें संयोग २८ रात्रियोंके पश्चात होता है महीनोंके जो अन्य नाम हैं वे महाभारत- (उ०प्र०११०)। में कहीं देख नहीं पड़ते । परन्तु अगले ____ कुल महीने बारह है और महाभारत- श्लोकमें श्रीकृष्णका समझौतेके लिए. जाने- के समय उनके वही नाम थे जो श्राज- का समय बतलाया गया है। कल प्रचलित हैं। अर्थात् मार्गशीर्ष आदि कौमुदे मासि रेवत्यां शरदंते किमागमे । नामोका चलन था। इनके सिवा दूसरे इसमें टीकाकारने कौमुद नाम कार्तिक- माम, जो कि आजकल भी प्रचलित हैं, का बतलाया है: परन्तु किसी फेह- शुनि, शुक्र श्रादि वे भी प्रचलित थे। जिस रिस्तमें यह नाम नहीं पाया जाता । अर्थात् नक्षत्र पर पूर्णिमाको चन्द्रमा आता है न तो मार्गशीर्षादि फेहरिस्तमें है, न शुचि, उस नक्षत्रका नाम महीनेको देकर प्राचीन शुक्र आदि फेहरिस्तमें है और न उस कालमें पहले नाम रखे गये थे; अर्थात् तीसरी फेहरिस्तमें ही है जो कि यजुर्वेद- यह प्रकट ही है कि ये नाम पौर्णिमान्त में है। यह अचरजकी बात है। एक महीनोंके समयके हैं। महीनोंके नाम इस बात और लिखने लायक यह है कि