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महाभारतमीमांसा
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पूर्व वर्णित गो-ग्रहणकी तिथियों के साथ नहीं पड़ा। सूर्यको गति पर ऋतुएँ अब- किसी महीनेका नाम नहीं बतलाया लम्बित हैं और अयनविन्दुके पीछे जानेके गया । बिना महीनेके तिथि बतलाना कारण वसन्तारम्भ धीरे धीरे पीछे हटता असम्भव है, इसलिए यह मानने में कोई जाता है; इससे ऋतुका पीछे हटना पति नहीं कि भारती-यद्धके समय प्रसिद्ध ही है। यह ऊपरवाला वर्णन प्राचीन यजुर्वेदके महीनोंके नाम अरुण महाभारत-कालका अर्थात् सन् ईसवीसे अरुणरजः आदि प्रचलित थे और भारती. लगभग २५० वर्ष पूर्वका है-यह मान कालमें मार्गशीर्ष श्रादि नामोका प्रचार लेने पर देख पड़ेगा कि एक महीनेके हो जानेके कारण लोगोंको वे पुराने नाम लगभग ऋतुचक्र पीछे घसिट गया है। दुर्योध हो गये । इस कारण यह माना जा क्योंकि आजकल बहुधा अन्न और घास सकता है कि महाभाग्न-कालमें वे नाम कुत्रारमें पककर तैयार होती है और उस सौतिके ग्रन्थसे निकाल दिये गये हों। इस ज़माने में कार्तिकमें तैयार होनेका वर्णन विषयका विचार अन्यत्र हुआ ही है। है। फिर भी हम लोग अबतक चैत्रा. अब ऋतुओकी ओर चलें। रम्भले ही वसन्तका प्रारम्भ मानते हैं। ___ ऋतुएँ वैदिक हैं और गिनतीमें छ यह गणना महाभारतके पश्चात्की है। थी । महाभारतके समय वही प्रचलित, और वह लगभग ईसवी सनके प्रारम्भको थी । ये ऋतुएँ वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, है। इसमें आश्विन और कार्तिक शरदके शरद, हेमन्त और शिशिर थी। भगद्गीतामे महीने हैं: ज्येष्ट और आषाढ़ ग्रीष्मके कहा है 'मासानां' मार्गशीर्णेऽहमृतृनां महीने हैं: और श्रावण, भाद्रपद बर. कुसुमाकरः' अर्थात् ऋतुओके श्रारम्भमें सातके। श्राजकलके हिसाबसे बरसात वसन्त था और महीनोंके प्रारम्भमें मार्ग- बहुधा आषाढ़से प्रारम्भ हो जाती है। शीर्ष । इन दोनोंका मेल नहीं मिलता। सभापर्वमें कहा है 'शुचि शुक्रागमे काले यह एक छोटीसी पहेली ही है। ये छहों शुप्येत्तोयमिवाल्पकम् । यह उल्लेख ऐसी ऋतुएँ हिन्दुस्थानसे बाहरकी और वेद- स्थितिका बोधक है कि ज्येष्ठ और भाषाढ़ कालीन हैं । ऋतुओंकी वही गणना महा- महीने ही ग्रीष्म ऋतुके हैं । शुचि और भारत-काल पर्यन्त रही और अब भी शुक्र, ज्येष्ठ और आषाढ़ के नाम हैं । चैत्रादि गणनाके साथ चल रही है। अर्थात् महाभारत-कालसे लेकर अबतक मार्गशीर्ष आदि गणना और नाम भारती- · सरसरी तौर पर ऋतुएँ एक महीने पीछे कालमें उत्पन्न हुए, पर उनका मेल हट गई हैं। हिन्दुस्थानमें वास्तविक बर- ऋतुओंके साथ नहीं किया गया।श्रीकृष्ण- सात चार महीनेकी है । विशेषतःऋतुओं- के उपर्युक्त वर्णनमें 'शरदन्ते हिमागमे का यह भेद दक्षिणमें अधिक देख पड़ता कहा है और महीना बतलाया है कार्तिक । है। प्राचीन ऋतु-चक्रमें वर्षा ऋतुके दो इसके सिवा यह वर्णन है कि सर्वसस्य- ही महीने माने गये हैं । रामायणके सुखे काले-सब प्रकारका अन्न और किष्किन्धा काण्डमें यह श्लोक है- घास तैयार हो जानेसे लोग सुखी हो पूर्वोयं वार्षिको मासः श्रावणः सलि. गये हैं । इससे जान पड़ता है कि वर्त- लागमः। प्रवृत्ताः सौम्य चत्वारो मासा मान समयमै और महाभारतके समयमें, वार्षिकसंशिताः॥ तुओंके सम्बन्धमें, कुछ ज्यादा अन्तर इससे रामायण-कालमें भी वर्षा