8 ज्योतिर्विषयक शान | * है। इसमें युग सहस्रान्तेका अर्थ वर्ष- श्लोकार्धमें आया है । अाधुनिक ज्योतिष- सहस्रान्ते नहीं है, किन्तु 'चतुर्युगसह- शास्त्रके मतानुसार एक कल्पमें चौदह सान्ते' है। अर्थात् कल्पके अन्तमें जिस मनु रहते हैं । नहीं कह सकते कि इन समय सृष्टिका लय होगा, उस समयका | चौदह मनुओंकी कल्पना महाभारत कालमें यह वर्णन है; और यहाँ युगका अर्थ चतु- थी या नहीं। इस ओरके ज्योतिषियोंकी युगहीस मझना चाहिए । क्योंकि युग- कल्पना है कि प्रत्येक मन्वन्तरमें सन्धि- सहस्त्रान्तमें अर्थात् एक वर्षसहस्रके काल रहता है । भिन्न भिन्न युगोंके सन्धि- कलियुगके अन्तम-ऐसा अर्थ करने पर कालकी भाँति यह कल्पना की गई है । चार मानना पड़ेगा कि प्रत्येक कलियुगके युगोंके समाप्त होते ही फिर दूसरे चार अन्तमें सृष्टिका नाश होता है। अस्तु: युग मन्वन्तरमें आते हैं। आजकल जो महाभारतमें कहीं युग शब्द एक वर्षके कलियुग वर्तमान है, इसके समाप्त होतेही अर्थमें नहीं आया: फिर यह कल्पना ही फिर कृतयुग आवेगा । वर्तमानकालीन ग़लत है कि कृत, त्रेता, द्वापर और कलि । कलियुग भारती युद्ध-कालमें शुरू हुना याँके नाम हैं। है । महाभारत-कालमें यह कल्पना ____ कल्पकी कल्पना बहुत पुरानी है। पूर्ण प्रचलित थी । हनुमानके पूर्वोक्त 'धाता यथापूर्वमकल्पयत्' इस वैदिक वचनके सिवा, गदा-युद्धके अनन्तर बचनसे कल्प शब्द निकला है और इसका श्रीकृष्णनं बलरामको समझाते हुए कहा अर्थ ब्रह्मदेवकी उत्पन्न की हुई मृटिका है-"प्राप्तं कलियुगं विद्धि प्रतिज्ञा पाण्ड. काल (समय) है। भगवद्गीता-कालमें भी वस्य च" भारती-युद्धके अनंतरही पाने. मान लिया गया था कि यह काल एक वाली चैत्र शुक्ल प्रतिपदाको कलियुगका हजार चतर्यगोंका है। 'कल्पादो विस. श्रारम्भ हश्रा। अब, जब यह कलियुग जाम्यहम्' इस श्लोकमें जैसा वर्णन किया समाप्त होगा और कृतयुग प्रारम्भ होगा गया है, तदनुसार कल्पके प्रारम्भमें पर- तब चन्द्र, सूर्य, पुष्य नक्षत्र और बृहस्पति मेश्वर सृष्टि उत्पन्न करता है और कल्प एक स्थान पर आवेंगे। यह कल्पना है। समाप्त होने पर सृष्टिका लय होता है। यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिप्यबृहस्पती। इस कल्पकी समग्र मर्यादा ४३२००० एकराशौ समेष्यन्ति प्रवर्त्यति तदाकतम् ॥ (चतुर्युग) x १००० होती है, अर्थात् (वनपर्व अभ्याय १८८) ४३२०००००० होती है। पाठकोंको ज्ञात गणितसे नहीं मालूम किया जा सकता हो जायगा कि यह कल्पना इस समयके कि यह योग कब आवेगा। क्योंकि इन । वर्ष-संख्याकी कल्पनासे सबका एक राशि पर आना असम्भव बहुत कुछ मिलती-जुलती है। इस कल्प- है।राशि शब्दका अर्थ यहाँसाधारण मेषादि की बृहत् अवधिमे भिन्न भिन्न मन्वन्तर राशि नहीं है, किन्तु यहाँ पर युति अर्थ महाभारत-कालमें भी माने गये थे। मनु-: है। हम देख चुके हैं कि महाभारत कालमें की कल्पना भी बहुत पुरानी, वैदिक काल- ' मेषादि राशियाँ ज्ञात नहीं थीं । चन्द्र, सूर्य, से है। और यह माना गया था कि कल्प- बृहस्पति और पुष्य नक्षत्रकी युति अस- की अवधिमे भिन्न भिन्न मनु होते हैं। म्भव देख पड़ती है । तथापि यह एक शुभ भगवद्गीतामें चार मनुओका उल्लेख 'मह- योग माना गया होगा। र्षयः सप्त पूर्वे चस्वारो मनधस्तथा इस हम बिलकुल निमेष अर्थात् प्राँखोकी
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