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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा *

सौरवेद बनाया है ( प्रतिष्ठां चापि वेदस्य परन्तु आजकल उनका अन्तर्भाव पुराणों- सौरस्य द्विजसत्तमः ) । यह जान पड़ता में अथवा ब्राह्मणोंमें वर्णित कथाओंमें है कि सौरवेद सूक्तवेदमें है। काठक होता है। ब्राह्मणमें नीलकण्ठ द्वारा वर्णित एक (१) वेदाङ्ग व्याकरण । आदित्यका अष्टाक्षरी मन्त्र यहाँ उहिष्ट है। इस विषय पर वैदिक लोग अधिक वदोंके जो अङ्ग कह गये हैं, उन पर लिख सकते हैं। हम तो यहाँ इसका अब विचार किया जाता है। महाभारतमें उल्लेख ही कर सकते हैं। ' पडङ्गका नाम बारम्बार आता है । नारद- घेद कहते है मन्त्र और ब्राह्मणकोः को 'न्यायविद्धर्मतत्त्वशः षडङ्गविदनुत्तमः' ब्राह्मणोंमें ही उपनिषदोंका भी अन्तर्भाव भी कहा गया है। महाभारतमें ये षडङ्ग होता है । तथापि कहीं कहीं उनका निर्देश बतलाये गये हैं। अगले श्लोकमें इन अलग किया गया है। सभापर्षके ५ वें पडङ्गोका वर्णन है। अध्यायके प्रारम्भमें नारदकी स्तुति इस ऋक् सामांगांश्च यजूंषि चापि प्रकार की गई है- ' छन्दांसि नक्षत्रगति निरुक्तम् । वेदोपनिषदां वेत्ता ऋषिः सुरगणार्चितः। अधीत्य च व्याकरणं सकल्पं __महीं कह सकते कि महाभारतकेसमय शिक्षां च भूतप्रकृतिं न वेनि ॥ कौन कौनसे उपनिषद् प्रसिद्ध थे। दशा- (आदि-पर्व अ० १७०) पनिषद् बहुत करके महाभारतसे पहलेके इस श्लोकमें कहे हुए पड़ङ्ग छन्द, ही होंगे । वेदोंके दशोपनिषदोंके अति- निरुक्त, शिक्षा, कल्प, व्याकरण और रिक्त आजकल अनेक उपनिषद् प्रसिद्ध : ज्योतिष है । इन सव शास्त्रोंका अभ्यास है।शान्तिपर्वके ३४२वें अध्यायम ग्वंद द- ' महाभारतके समय प्राय तसे हो में २१००० शाखाएँ हानका वर्णन किया गया था और उन विषयोम भारतीार्यो- गया है : और सामवेदमं १००० शाग्वागं की प्रगति हो गई थी । विशेषतया व्याक- तथा यजुर्वेदकी ५६,८,३७ = 20 शाखाएँ रणका अभ्यास पूर्ण रीतिसे होकर होनेका वर्णन है। परन्तु आजकल वेदों- पाणिनिका महाव्याकरण भारत-कालमें की इतनी शाखाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इस ही बना था । पाणिनिका व्याकरण कारण, भिन्न भिन्न उपनिषदोंको चाहे संसारके समस्त व्याकरणोंमें श्रेष्ठ है। जिस वेदका उपनिषद् कहा जाने लगा है। पाणिनिने व्याकरणके जो नियम बनाये हैं मारदके वर्णनमें आगे 'इतिहास- वही नियम पाजकल भिन्न भिन्न भाषाओं- पुराणज्ञः पुरा कल्पविशेषवित्' कहा गया के उस तुलनात्मक व्याकरणमें गृहीत हुए है। इन पुरा-कल्पोका सम्बन्ध वेदोंसे ही हैं जिसे कि पाश्चात्य पण्डितोंमे तैयार है। ये पुरा-कल्प और कुछ नहीं, वेदोंमें किया है । यथार्थमें आजकलके तुलनात्मक बतलाई दुई भिन्न भिन्न बाते ही हैं। आज- व्याकरणकी मींव पाणिनिके व्याकरणने ही कल हम लोगोंको इन पुरा-कल्पोंका कहीं जमाई है। यह व्याकरण संसार भरके पता भी नहीं लगता; तथापि प्राचीन समस्त भाषा-पण्डितोके लिए आदरणीय कालमें पुरा-कल्प नामक भिन्न भिन्न छोटे हो गया है। यह स्पष्ट है कि पाणिनि कुछ ग्रन्थ रहे होंगे। उपनिषदोंकी ही भाँति ! श्राद्य-व्याकरण-कार न थे। क्योंकि उनका घे वेदोंके भाग समझे जाते रहे होंगे। बनाया हुआ अद्वितीय व्याकरण कुछ