पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • साहित्य और शास्त्र । ॐ

४३७ उनके अकेलेके ही बुद्धि-बलका परिणाम किसी और ही शास्त्रका । निदान यह नहीं माना जा सकता। उनसे पहले भी मानने में कोई हानि नहीं कि पतञ्जलिका व्याकरण-शास्त्रका अभ्यास बहुत कुछ महाभाष्य यहाँ उद्दिष्ट नहीं है क्योंकि होता था; और उनसे प्रथम इस विषय यहाँ निरा भाग्य शब्द है । इसके सिवा, पर कितने ही ग्रन्थ भी बन गये होंगे और अनुशासन पर्वके १४ वें अध्यायमें दो शास्त्रकार भी हो चुके होंगे। मतलब यह ग्रन्थकर्ताओंका उल्लेख है। कि व्याकरण था वेदाङ्ग, इसलिए उसका। शाकल्यः सङ्गितात्मा वै नववर्ष अभ्यास भारती-युद्ध-कालसे लेकर महा- शतान्यपि । श्राराधयामास भवं मनी- भारतकालतक अवश्य होता रहा होगा। यज्ञेन केशव ॥ भविष्यति द्विजश्रेष्ठः सूत्र- परन्तु महाभारतमें किसी व्याकरण- कर्ता सुतस्तव । सावर्णिश्चापि विख्यात शास्त्र-कारका नाम नहीं आया । यहाँ- ऋषिरासीत्कृते युगे ॥ ग्रन्थकृल्लोक- तक कि महाभारतमें पाणिनिका भी नाम विख्यातो भविता हजरामरः ॥ नहीं है। परन्तु इससे यह न माना जा । (अनु. १४, श्लोक. १००-१०४) सकेगा कि पाणिनि महाभारत-कालके इन श्लोकोंमें एक शाकल्य सूत्रकार पश्चात् हुए हैं। इस बातको हम अनक और दुसरं सावर्णि, दो ग्रन्थकारोका बार कह चुके हैं कि उल्लेखका अभाव उल्लेख है । शाकल्यने किस शास्त्र पर लङ्गड़ा प्रमाण है। महाभारत-कालके . सूत्र बनाये, यह बात यहाँ पर नहीं बतलाई पूर्व ही पाणिनिका अस्तित्व मानने के लिए गई, और न यही लिखा है कि सावर्णिन कारण है। महाभारतमें भाष्यका नाम है। अमुक शास्त्र पर ग्रन्थ लिखा । परन्तु पाणिनिका व्याकरण वेदाङ्ग समझा जाता शाकल्यका नाम पाणिनिके सूत्रों ( लोपः है और वैदिक लोग उसे पढ़ा करते हैं। शाकलस्य आदि ) में आता है, इससे इस व्याकरण पर कात्यायनके वार्तिक है जान पड़ता है कि यह शाकल्य-सूत्रकार और पतञ्जलिका महाभाप्य है। अनुशा- पाणिनिसे पुराना सूत्रकर्ता होगा। यह सन पर्वके ८० वैश्रध्यायमें यह श्लोक है- अनुमान करने लायक है। ये च भाष्यविदः केचित् ये च व्या- (२) ज्योतिष ग्रन्थ । करणे रताः । अधीयन्ते पुराणश्च धर्मशा- त्राएयथापि ते॥ व्याकरणके बाद ही ज्योतिषका ____ इसमें भाष्य शब्द व्याकरण के उदंशसं महत्त्व है । नहीं कहा जा सकता कि यह है और पहलेपहल ऐसा जान पड़ता है ज्योतिष ग्रन्थ कौनसा था। आजकल कि यह पतअलिकृत भाष्यके लिए प्रयक्त लगधका ग्रन्थ वेदाङ्ग-ज्योतिष प्रसिद्ध है। परन्तु हमारी रायमें ऐसा नहीं माना है और वैदिक लोग इसीको पढ़ते हैं। जा सकता । क्योंकि हम निश्चित कर चुके पाणिनिकी भाँति ही लगधका भी नाम हैं कि पतञ्जलि, महाभारत-कालके पश्चात् महाभारतमें उल्लिखित नहीं है: तथापि हुए हैं। तब, उनके महाभाष्यका महा- इसमें सन्देह नहीं कि वे महाभारतसे भारतमें उल्लेख होना सम्भव नहीं । स्पष्ट पुराने हैं। दूसरे ज्योतिष-ग्रन्थकार गर्ग देख पड़ता है कि यहाँ पर भाष्य शब्दका है। ज्योतिष में गर्ग-पगशरका नाम प्रसिद्ध ध्याकरणके साथ विरोध है. और इस है। ऐसा वर्णन है कि ये गर्गजी सरस्वती- कारण यह भाष्य या तो बंदका होगा या तट पर तपश्चर्या करके ज्योतिष-शास्त्रज्ञ