पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४६७

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  • साहित्य और शास्त्र ।

४३६ नहीं पाया जाता। हाँ, निरे सूत्र शब्दका लिखा है कि राजाओंका स्तुति-पाठ करना उल्लेख महाभारतमें है। अनुमान होता | सूतोका पेशा है। महाभारत भी सौतिने है कि इस सूत्र शब्दसे श्रौतसूत्रोंका उल्लेख ही शौनकको सुनाया है। इतिहास स्वतन्त्र ग्रहण करना चाहिए । शान्ति पर्वके २६६ ग्रन्थ-समुदाय होगा। परन्तु महाभारतके वें अध्यायमें यह श्लोक है- अनन्तर, यह समस्त ग्रन्थ-समुदाय, महा- अशक्नुवन्तश्चरितुं किञ्चिद्धषु सूत्रितम्। भारतमें ही मिल जानेके कारण, लुप्त हो पाणिनिमें अनेक सूत्रोंका उल्लेख है। गया। परन्तु अब यह प्रश्न होता है कि ये सूत्र भिन्न भिन्न विषयों पर रहे होंगे। उपनिषदोंमें जो इतिहास वर्णित है, वह अस्तु : यहाँतक वैदिक साहित्यका उल्लेख कौनसा है। रामायण और महाभारत हुआ। इसके अतिरिक्त, प्रथम भागमें भी दोनों ग्रन्थ इतिहास हैं-यह बात उन अधिक उल्लेख किया जा चुका है। महा- ग्रन्थों में स्पष्ट रूपसे कही गई है। इनके भारतमें उपनिषद् शब्दके लिए रहस्य, मूल ग्रन्थ उपनिषद्-कालमें भी रहे होंगे, ब्राह्मवेद और वेदान्त, ये भिन्न भिन्न : यह मान लेनेमें कोई हानि नहीं; और संशाएँ दी हुई मिलती हैं: और क्वचित् इनके सिवा अन्य इतिहास छोटे छोटे महोपनिषत् शब्द भी प्रयुक्त है। द्रोण ' रहे होंगे। महाभारतके लम्बे चौड़े चक्कर- पर्वके १४३ व अध्यायमें भूरिश्रवा अपनी में उनके ना जानेसे, उनका अस्तित्व लुप्त देह, प्रायोपवेशन करके, छोड़नेका विचार · हो गया और महाभारतके पश्चाद्वर्ती कर रहा है। इस उपनिषद् ॐ प्रणव ग्रन्थों में यही समझा गया कि इतिहासके पर ध्यान करना पड़ता है। मानी 'भारत' है। परन्तु महाभारतमें ही इतिहाम-पुराण । कुछ स्थलों पर इतिहास शब्द मिलता है, वहाँ पर महाभारत कैसे ग्रहण किया अब हमें इनिहास और पुराणों पर जा सकता है ? उदाहरणार्थ, द्रोणके विचार करना है। वैदिक साहित्य समाप्त सम्बन्धमें यह वर्णन है- होने पर, दुसरा साहित्य इतिहास और योऽधीत्य चतुरी वेदा- पुराणोंका है। इतिहास और पुराणोंमें सालानाख्यानपञ्चमान् । थोडासा अन्तर है। इतिहासमें प्रत्यक्ष . यहाँ पर टीकाकारने आख्यान शब्द- घटित बातें होती होंगी और पुराण होंगे का अर्थ पुराण भारतादि किया है। किन्तु पुरानी दन्तकथाएँ तथा राजवंश। उप- भारती-युद्ध में वर्तमान द्रोण उस 'भारत' निषदोंसे ज्ञात होता है कि ये पुराण, का अध्ययन कैसे कर सकेंगे जो कि महाभारतसे पहले, उपनिषत्कालमें भी भारत-युद्धके पश्चात् बना है। अर्थात् थे। किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि महाभारत कालमें 'भारत' एक अलग वे अनेक थे या एक । वेदों और उपनि- ग्रन्थ था और वह बहुन पुगना था। षदोंका अध्ययन करना जिस तरह वेदोंके साथ भारत पढ़नेकी रीति बहुत ब्राह्मणोका काम था, उसी तरह इतिहास प्राचीन थी। इस कारण, वेदोंके साथ और पुराणोंको पढ़ना सूतोका काम था। भारतका उल्लेख करनेकी परिपाटी पड़ अन्यत्र लिखा जा चुका है कि सूतोंका गई है। अब पुराणों के विषयमें कुछ अधिक यह व्यवसाय महाभारतमें भी कहा गया लिखना है । हम अन्यत्र लिख ही चुके हैं है। अनुशासन-पर्वके ४८ वें अध्यायमें कि वायुपुगणका उल्लेख महाभारतमें है।