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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा * तब, अठारह पुराण भी महाभारत-कालमें आख्यान एक ही वृत्तके सम्बन्ध रहता रहे होंगे। वन पर्व के १६ अध्यायका । है और इतिहास शब्द, इति+ह+आस यह श्लोक है-

इस अर्थसे, बहुत कुछ प्राचीन वृत्तके

एवन्ते सर्वमाख्यातं अतीतानागतं तथा । अर्थमें देख पड़ता है। वायुमोक्तमनुस्मृत्य पुराणमृषिसंस्तुतम् ॥ । असलमें पुराणों में, पुराण अर्थात् न्यायशास्त्र। जो प्रतीत होगा वही बतलानेका उद्देश सभा पर्ववाली नारदकी स्तुतिमें यह रहा होगा । परन्तु आगे आनेवाला अना- और श्लोक है- गत भी भविष्य रूपसे पुराणमें कहनेकी । ऐक्यसंयोग्यनानात्वसमवायविशारदः। परिपाटी महाभारत कालमें रही होगी। पञ्चावयवयुक्तस्य वाक्यस्य गुणदोषवित्॥ शान्ति पर्वके ३१८ वें अध्यायमें कहा गया उत्तरोत्तरवक्ता च वदतोपि बृहस्पतेः॥ है कि लोमहर्षण सृत ही समस्त पुराणों- इसमें जो ऐक्य, संयोग्य, नानास्व के कथनकर्ता है। इन्हीं लोमहर्षणके पुत्र आदिका वर्णन है, वह किस शास्त्रका है, सौतिने महाभारतकी कथा कही है। इसका उत्तर देना कठिन है । टीकाकारने अर्थात् अठारहों पुराण महाभारतसे पहले- लिखा है कि यह वर्णन सभी शास्त्रोंके के हैं। महाभारतमें एक स्थान (स्वर्गारोहण लिए एकसा उपयोगी हो जाता है। पर्व अध्याय ५) में कहा गया है कि परन्तु हमारे मतसे यह वर्णन और विशे- व्यासने पुराणोंका पाठ किया। इससे पतः 'समवाय' शब्द न्यायशास्त्रका दर्शक मालूम होता है व्यामजीका एक आदि होगा । यह मानने में कोई हानि नहीं कि पुराण था। उनके भागे लोमहर्षणने भिन्न गौतमका न्यायशास्त्र महाभारत-कालमें भिन्न अठारह प्रन्थ बनाये । परन्तु ये प्रचलित रहा होगा । 'पंञ्चावयवयुक्त' श्रारम्भिक पराण और आजकलके पराण । वाका.गौतम-कृत न्यायशास्त्रके सिद्धान्तों- एक नहीं हैं। क्योंकि वन पर्वमें वायप्रोक्त के ही लिए उपयुक्त जान पड़ता है। महा- कहकर कलियुगका जो वर्णन किया है, भारतमें गौतमका उल्लेख नहीं है: और उसमें और आजकल के वायुपुगरणमें अन्तर अबतक यह भी निश्चित नहीं देख पड़ता देख पड़ता है। वायुपुराणमें-जैसा कि किगौतमका न्यायशास्त्र कब उत्पन्न हुआ। हापकिन्स साहबने दिखाया है-वर्णन है आजकल जोन्यायसूत्र प्रसिद्ध हैं वे महा- कि कलियुगमें सोलह वर्षसे भी छोटी भारतके पश्चात्के हैं । परन्तु शान्ति पर्वके लड़कियाँ बच्चे जनेंगी और महाभारतमें २१० वें अध्यायमें लिखा है कि न्यायशास्त्र वर्णन है कि पाँच छः वर्षकी अवस्थावाली महाभारतसे पहलेका है । वह श्लोक लड़कियोंके सन्तान होगी। इसमें आश्चर्य यह है- नहीं कि महाभारतवाला वर्णन वायु-. न्यायतन्त्राण्यनेकानि- पुराणसे भी दस कदम आगे है। परन्तु तेस्तैरुक्तानि वादिभिः । महाभारतवाला वर्णन प्राचीन वायुपुराण स्पष्ट देख पड़ता है कि इस न्यायका से लेकर बढ़ाया गया है। महाभारतमें उपयोग वाद-विवादमें हुआ करता था: पुराण, आख्यान, उपाख्यान, गाथा और क्योंकि इसमें वादी शब्द मुख्य रूपसे इतिहास भिन्न भिन्न शब्द पाते हैं। उनके प्रयुक्त है। भिन्न भिन्न भेद यो देख पड़ते हैं कि नाग्दको बृहस्पतिसे भी उत्तरोत्तर.