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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा.

- प्रणेता मनु, भरद्वाज और गौरशिरस् राजनीति। बतलाये गये हैं। इन ग्रन्थोका अथवा सन्धिविग्रहतत्त्वज्ञस्त्वनुमानविभागवित् । बृहस्पति-प्रणीत नीतिशास्त्रका आजकल कहीं पता भी नहीं लगता। परन्तु शुक्र- ऐसा वर्णन नारदका और भी है। नीति ग्रन्थ अब भी अस्तित्व में है। इस इसमें वर्णित सन्धि, विग्रह और षाड़- मीतिमें सन्धि, विग्रह आदि राजकीय गुण्य-विधियुक्तशास्त्र, पूर्वोक्त नीतिशास्त्र- विषयोंकी बहुत कुछ जानकारी है। का स्पष्टीकरण है । इसमें अन्य शास्त्र उल्लिखित नहीं हैं। यह बृहस्पतिकी नीति- तथा भुवनकोषस्य सर्वस्यास्य महामतिः। का ही भाग है-"राजनीतिमें सन्धि, ____ इस वाक्यमें कथित शास्त्र भुवनशास्त्र यान. परिगृह्यासन, द्वैधीभाव, अन्यनृपा- होना चाहिए । इस शास्त्रमें कदाचित् ये श्रय और विगृह्यासन, इन षड्गुणोंके बातें होगी कि समग्र पृथ्वी कितनी बड़ी गण-दोष बतलाये गये हैं ।" इसी प्रकार है, उसके कितने विभाग हैं, और सारा 'अनमानविभागवित्' वाक्य न्यायशास्त्रक विश्व कैसा है। अँग्रेज़ीम जिसे कॉस- उशस है। अस्तु : नारदका अन्तिम मॉलोजी कहते हैं, वह शास्त्र महाभारत- वर्णन है कि- कालमें अलग रहा होगा। महाभारतमें- युद्धगान्धर्वसेवीच सर्वत्राप्रतिघस्तथा । का भू-वर्णन आदि वहींसे लिया गया होगा । इस प्रकार, विद्वान् मनुप्यके इसमें कहा गया है कि नारदको युद्ध- अध्ययनके समस्त विषय नारदके वर्णनमै शास्त्र और गान्धर्वशास्त्रका भी शान था। आ गये। उन्हें भिन्न भिन्न मोक्षशास्त्री.. महाभारतमें अनेक स्थानों पर युद्धशास्त्र का भी शान था। ये शास्त्र सांख्य, योग उल्लिखित है और इस युद्ध शास्त्रके अनेक सूत्र भी थे। अश्वसूत्र, गजसूत्र, रथसूत्र और ओर वेदान्त श्रादि हैं। नारदका और भी नागरमत्र जिसमें इस बातका वर्णन था वर्णन किया गया है कि- कि शहरों और किलोकी रचना कैसी की सांख्ययोगविभागक्षः निर्विवित्सुः जानी चाहिए। पूरा युद्ध-शास्त्र धनुवदके सुरासुरान् । नामसे प्रसिद्ध था। इस धनुर्वेद अथवा यह बात निर्विवाद है कि महाभारत- सूत्रोंके प्रणेता भरद्वाज थे और, गान्धर्व कालमें सांख्य, योग, वेदान्त आदि तत्त्व- यानी गायनशास्त्रके कर्ता नारद ही थे। शानके अनेक ग्रन्थ थे। परन्तु अब उनमें गान्धर्व नारदो वेद, भरद्वाजो धनुर्घ- से एक भी ग्रन्थ शेष नहीं । उनके बहुससे हम् । देवर्षिचरितं गार्ग्यः कृष्णात्रेयः तत्त्व महाभारतमें आ ही गये हैं। महा- चिकित्सितम् ॥ भारतके अनन्तर इस तत्त्वज्ञान पर भिन्न (शान्तिपर्व २१०) भिन्न सूत्र बने और वही मान्य हो गये। इससे सिद्ध है कि नारद ही गान्धर्व इस कारण, कह सकते हैं कि महाभारत अथवा गान इत्यादि शास्त्रोंके मुख्य प्रव- भी पीछे रह गया। तथापि, यदि इन तक हैं। महाभारत-कालमें इस शासकी तत्त्वज्ञानोंका ऐतिहासिक दृष्टिसे विचार उन्नति बहुत कुछ हो गई थी। देवर्षि- करना हो तो वह महाभारतसे ही हो चरित (ज्योतिष) के प्रवर्तक गार्य और सकता है: और तदनुसार हम अन्य स्थल : वैद्यशास्त्रके प्रवर्तक कृष्णायके ग्रन्थ पर इस ग्रन्थमें विचार कांग। आजकल प्रचलित नहीं हैं। तथापि उन