- माहित्य और शास्त्र । *
ग्रन्थोंका कुछ थोड़ासा झान कञ्चित् । कुमारने नारदसे पूछा कि तुमने अबतक अध्यायमें भा गया है। क्या क्या अध्ययन किया है ? तब नारदने स्मृतियाँ और अन्य विषय । उत्तर दिया--"मैंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, साम- वेद, इतिहास-पुराण, व्याकरण, पित्र्य, नारदकी उल्लिखित स्तुतिमें उन सब राशि, देवनिधी, वाको वाक्यमेकायनम् , शालोका उल्लेख है जो कि महाभारत- देवविद्या, ब्रह्मविद्या, भूतविद्या, क्षत्र- कालमें बात थे। अर्थात्, महाभारतका विद्या, नक्षत्रविद्या और सर्पदेवजन- हेतु नारदको सर्व-विद्या-पारङ्गत दिख- विद्या पढ़ी है।" नारदने यहाँ पर १६ लानेका जान पड़ता है। इससे यह मानने- विद्याएँ गिनाई ही हैं। इनमेंसे कुछ में कोई हानि नहीं कि यह सूची बहुत विषयोंके सम्बन्धमें निर्णय करना कठिन कुछ सम्पूर्ण हो गई है। इस सूचीमे है कि ये कौनसी हैं। उदाहरणार्थ, यहाँ स्मृतियोंका नाम बिलकुल ही न देखकर पर व्याकरणको 'वेदानां वेदम्' कहा है। पहलेपहल कुछ अचरज होता है । परन्तु टीकाकारने नक्षत्र-विद्याका अर्थ ज्योतिष हमारा तो यह मत है कि महाभारत- और ब्रह्मविद्याका अर्थ छन्दःशास्त्र बत. कालमें किसी स्मृतिका अस्तित्व न था। लाया है और पित्र्य शब्दमे कल्पसूत्रको मनुस्मृति भी पीछकी है और अन्य ग्रहण किया है। राशिका अर्थ गणितशास्त्र स्मृतियाँ तो पीछेको देख ही पड़ती है । है पर निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता मनुका धर्मशास्त्र कदाचित् महाभारतसे . कि 'वाकोवाक्यमेकायनम् ' क्या था । पूर्वका हो, क्योंकि मनुके वचनोंका उल्लेख श्राचार्योने देवविद्याका अर्थ शिक्षा किया अथवा मनुकी आशाओंका उल्लेख महा- है। सर्पदवजन-विद्यासे सपौके विष पर भारतमें बार बार पाता है। यहाँ स्मृतियो- . देनेकी ओषधियाँ मालम होती हैं; एवं का उल्लेख नहीं है । कदाचित् यह प्रमाण नृत्य, गीत, शिल्पशास्त्र और कला इत्यादि स्मृतियोंके अस्तित्यके सम्बन्धम मान्य होने इसमें श्रा जाती हैं। प्राचार्योंने ऐसा ही योग्य नहीं है। क्योंकि यह माना जासकता है : वर्णन किया है। उपनिषत्कालमें राशि कि केवल नारदके अधीत विषयोंकी ऊपर- अर्थात गणितशास्त्र प्रसिद्ध था और वाली सूची सम्पूर्ण न हो। इसी जगह मानना चाहिए कि महाभारत-कालतक छान्दोग्य उपनिषद्का एक अवतरण देने । उसका अभ्यास बहुत कुछ हो चुका था। योग्य है। कयोंकि उसमें नारदने अपने ही राशि शब्द त्रैराषिकमें आता है। इस मुखसे सनन्कुमारको बतलाया है कि मैंने · गणितशास्त्रका उल्लेख यद्यपि महाभारत- कौन कौन विषय पढ़े हैं। जब नारद में नहीं है तथापि अनेक प्रमाणोसे यह शिष्य बनकर सनत्कुमारके पास अध्यात्म- बात अब मान्य हो गई है कि गणितशास्त्र शान सीखने के लिए गये, उस समय सन-असलमें भरतखण्डमें ही उत्पन्न हुआ। • महास्मृति पठेयस्तु तथैवानुस्मृति शुभाम् । विशेषतः दस अङ्ककागणितयहीसे सर्वत्र साव येतेन विधिना गच्छेतान्मसलोकताम ॥३०॥ फैला । उल्लिखित सूचीमै भिन्न भिन्न यह लोक शान्तिपर्वके २०० वे अध्यायमे आया है। शापोका उल्लेख है। उसमें महाभारतकी टीकाकारका कथन है कि यहा महास्मृतिसे मनुस्मृति अर्थ । अपेक्षा गणित और वैद्यक दो विषय लेना चाहिए। परन्तु अनुस्मृति क्या है ? और, यहाँ जपका प्रश्न है। हमारी रायमे यहा पर गगवदगीता और अनगीनामे अभिप्राय रहा होगा। यद्यपि स्मृतियोंका उल्लेख नहीं है. तथापि Y.