ॐ महाभारतमीमांसा * देना। यह बात निश्चयपूर्वक सिद्ध है कहने में भी शङ्का ही है कि ब्राह्मणों में कि प्रत्येक आर्य वर्णवाला मनुष्य अपने उसका सोलहवाँ अंश कदाचित् रह घरमें अग्नि स्थापित रखता था। द्रोण पर्व- गया होगा। के वें अध्यायमें युधिष्ठिरका जो वर्णन | लिखा है कि श्रीकृष्ण और युधिष्ठिरने. किया गया है, उसे हम पहले दिखला ही सन्ध्या एवं होम करके ब्राह्मणोंको दान चुके हैं। युधिष्ठिर तड़के उठकर स्नान दिया और कुछ मङ्गल पदार्थोंका अव. करके सन्ध्या कर और फिर यज्ञशालामें लोकन करके उन्हें छूनेका भी वर्णन है। जाकर अग्निमें प्राज्याहुतिके साथ समिधा, मङ्गल पदार्थों में गायकी पूँछ छूनेका उल्लेख वैदिक मन्त्र पढ़कर, वश करनेको है। इससे देख पड़ता है कि यह सम्प्र- नहीं भूले। दाय प्राचीन कालसे है। यह नहीं कहा समिद्भिश्च पवित्राभिरग्निमाहुतिभिस्तदा। जा सकता कि यह वर्णन महाभारत- मन्त्रपूताभिरर्चित्वा निश्चक्राम ततो गृहात्॥ कालका ही होगा। इस वर्णसे देख पड़ता है कि स्वयं नित्यके होमके अतिरिक्त नैमित्तिक होम करनेकी आवश्यकता थी और यह अथवा अधिक पुण्यप्रद समझकर क्षत्रिय होम सादी समिधा तथा प्राज्याहुतिका और ब्राह्मण लोग प्राचीन कालमें अनेक होता था। इस काममें बहुत समय न वैदिक यक्ष करते थे। इन यज्ञोंमें खर्च लगता होगा। इसी तरह उद्योग पर्वके और झंझटें बहुत अधिक रहती थी और ८३ वें अध्यायमें जब श्रीकृष्ण हस्तिना- इनके करने में समय भी बहुत लगता था। पुरको जाने के लिए चले, तब वर्णन है। महाभारतमें इनके अनेक नाम आये हैं। कृत्वापौर्वारिहकं कृत्यं स्नातःशुचिरलंकृतः। अश्वमेधके सिवा पुण्डरीक, गवामयन, उपतस्थे विवस्वन्तं पावकं च जनार्दनः ॥ अतिरात्र, वाजपेय, अग्निजित्, और वृह- ___ अर्थात् सूर्य और अग्निकी उपासना- स्पतिसव आदि नाम पाये जाते हैं । यानी उपस्थान एवं आहुति दोनों काम उनका वर्णन करने की आवश्यकता नहीं। भारती युद्ध-कालमें प्रत्येक आर्यको करने मूर्तिपूजा। पड़ते थे। सायंकालमें, सूर्यके अस्त होते समय, सन्ध्या-वन्दन और होम करना यह बात निर्विवाद है कि इस वर्णन- पड़ता था। वाल्मीकिने रामायणमें राम- मैं कहीं मूर्तिपूजाका वर्णन नहीं है। के सम्बन्धमें ऐसा ही वर्णन किया है। यद्यपि श्रीकृष्ण अथवा युधिष्ठिरकी विश्वामित्रके साथ जाते हुए अथवा वन- अाहिक क्रियाओका वर्णन विस्तारपूर्वक पासमें जाने पर जहाँ जहाँ प्रभात और किया गया है, तथापि उसमें किसी सन्ध्या हुई, वहाँ वहाँ राम और लक्ष्मणके देवताकी धातुमयी अथवा पापाण- सन्ध्या करनेका वर्णन छूटने नहीं पाया। मयी मूर्तिके पूजे जानेका वर्णन नहीं ब्राह्मणों और क्षत्रियोंकी भाँति वैश्य भी है। उस समय यदि लोगोंकी आहिक प्रातः और सायंकाल सन्ध्या एवं होम | क्रियामें देवताओंकी पूजाका समावेश किया करते थे। भारती धर्मका यही हुआ रहता, तो उस विषयका उझेल मुख्य पाया है। ऐसा देख पड़ता कि वह इस वर्णनमें अवश्य प्राया होता । इससे महाभारत कालमें ब्राह्मणों के बीच प्राधा- निश्चयपूर्वक अनुमान होता है कि भारती- तीहा रह गया होगा और अब तो यह युद्धकालमें और महाभारतकाल पर्यन्त
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