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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४७७

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धर्म। * आर्योंके आहिक-धर्ममें किसी प्रकारके पूजाका अटूट सम्बन्ध हो गया। परन्तु देवताकी पूजा समाविष्ट न हुई थी। शुरू शुरूम बौद्ध-धर्ममें मूर्ति न रही होगी किसी घरमें देवताकी मूर्ति रखकर क्योंकि देवता तो सभी नष्टप्राय हो गये उसकी पूजा शुरून हुई थी। भिन्न भिन्न थे और अबतक बुद्धको मूर्ति न थी। गृह्यसूत्रोंमें भी देवताओंकी पूजाकी विधि बुद्धकी देहके अवशिष्ट केश, नख, हड़ियाँ मही बतलाई गई है। इससे यह बात आदि जो जिस मिला, उसने वही लेकर निर्विवाद है कि देवपूजाकी प्राह्निक विधि उसपर पत्थरोंकी ढेरी बनाई और उसकी महाभारतकालके पश्चात् अनेक वर्षों में पूजा प्रारम्भमें शुरू हुई। महाभारतमें ऐसे उत्पन्न हुई है। मूर्ति-पूजाका उद्गम भरत- स्थानोंको 'एडूक' संज्ञा दी है। एडूक शब्द खण्डमें कबसे हुआ, यह प्रश्न अत्यन्त अस्थिके अपभ्रंशसे निकला हुआ मालूम महत्वका और गूढ़ है। कुछ लोगोंकी पड़ता है। एडूकका अर्थ टीकाकारने अलि. धारणा है कि बौद्ध धर्मका प्रचार होनेके गर्भ-रचना विशेष किया है । महाभारतके पश्चात् मूर्तिपूजा चल पड़ी । देखना वनपर्वमें जो यह वर्णन है कि कलियुगमें चाहिए कि बुद्धका मरण हो जाने पर लोग एडूक पूजने लगेंगे यह इन बौद्धोंके उनकी मूर्तियाँ कितनी जल्दी बनने लगीं। : ही पूजावर्णनके उद्देश्यसे है। सारांश, यह बौद्ध धर्ममें अन्य देवता नष्ट हो गये थे अनुमान नहीं किया जा सकता कि महा- और सभी देवताओंका सफाया हो चुका भारत-कालमें अर्थात् सौतिके समय हिन्दु. था। आगे अज्ञानी लोगोंने बुद्धको ही स्थानमें बुद्धकी मूर्तियोंके मन्दिर बहुतसे देवता मानकर उनकी छोटी बड़ी प्रतिमाएँ हो गये होंगे। परन्तु महाभारतमें मन्दिरों. गढ़ना शुरू कर दिया। इस कारण एक का और मन्दिरों में स्थित मूर्तियोंका समय हिन्दुस्थानमें बुद्ध की इतनी अधिक वर्णन बहुत मिलता है। यह बात सच है मूर्तियाँ प्रचलित हुई कि जहाँ देखो, वहीं कि मूल वैदिक धर्ममें मन्दिरों अथवा बुद्धकी मूर्तियाँ और मन्दिर देख पड़ते थे। मूर्तियोंका माहात्म्य न था और न लोगोंके बुद्ध धर्म बाहरी देशोंमें भी फैला था, इस नित्यके धार्मिक कृत्यमें मूर्तिका समावेश कारण वहाँ भी बौद्धोंके अनेक मन्दिर था । महाभारतमें सौतिने जो नवीन और बुद्धकी हजारों प्रतिमाएँ हो गई थी। अध्याय जोड़े हैं उनमें मूर्तियों और जिस समय मुसलमानी मजहब फैला, मन्दिरोंका वर्णन है। उदाहरणार्थ, भीष्म उस समय मुसलमानोंने मूर्तियाँ तोड़ना पर्वके प्रारम्भमें दुश्चिह्न-कथनके अभ्यायमें शुरू कर दिया। उनके इस हमलेमें पहले मन्दिरों और देव-प्रतिमाओंका वर्णन है। सहज ही हिन्दुस्थानके बाहरी देशोंमें बने देवताप्रतिमाश्चैव, कम्पन्तिच हसन्तिच। हुए हजारों बौद्ध मन्दिरोंकी मूर्तियाँ तहस- वमन्ति रुधिरंचास्यैः विद्यन्ति प्रपतन्तिच ।। नहस की गई। इसी तरह मुसलमानी "देवताओंकी प्रतिमाएँ काँपती हैं, हँसती भाषा यानी अरबी-फारसीमें बुध (बुत) है, मुखसे रुधिर वमन करती हैं, देहसे शब्द मूर्तिके अर्थमें प्रचलित हो गया। पसीना डाल रही हैं अथवा गिरती हैं।" मुसलमानोंने बुध (बुत) शिकन और बुध पत्थरकी प्रतिमाका ऐसे ऐसे काम करना (बुत) परस्त, ये दो भेद कर दिये-अर्थात् बुरा लक्षण समझा जाता था । द्वारकामें मूर्ति तोड़नेवाले और मूर्ति पूजनेवाले। भी यादवोंके नाशके समय ऐसे दुश्चित इस साहचर्यसे बौद्धधर्म और मूर्ति- होनेका वर्णन है । अर्थात् यह बात निर्वि- ५७