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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा *

लिङ्ग-पूजाका प्रारम्भ किम तरह हुआ। कग्नेका स्तुत्य प्रयत्न किया है। यह बात एक बार ब्रह्मदेवने शङ्करका दर्शन करके पहले भी लिम्बी जा चुकी है। कहना उनसे कहा कि आप प्रजा उत्पन्न करें। चाहिए कि महाभारतका यह एक अत्यन्त परन्तु भूतमात्रको दोषोंसे परिपूर्ण देख प्रशस्त कार्य है और सब मतों के बीच शहर पानीमें डुबकी लगाकर तप करने अविरोध स्थापित करनेका श्रेय महाभारत- लगे। उस समय ब्रह्मदेवने दूसरे प्रजापति को ही है। महाभारतमें शिव और विष्णु दक्ष इत्यादिको उत्पन्न करके मृष्टिका दोनोंकी स्तुति एकसी की गई है। सौति- उपजाना प्रारम्भ कर दिया । शङ्करने जब ने विशेषतया इस युक्तिसे काम लिया है पानीके ऊपर आकर सृष्टि देखी, तो किशङ्करकीस्तुति विष्णु अथवा श्रीकृष्ण- उन्होंने क्रोधसे अपना लिङ्ग काट डाला। के मुखसे कराई है और विष्णुकी स्तुति वह धरतीमें जम गया। इस प्रकार शङ्करके शङ्करके मुखसे करा दी गई है। द्रोण-पर्व- पृथ्वीमें पड़े हुए लिङ्गकी पूजा सब लोग में वर्णन है कि जब अश्वत्थामाने द्रोण- करने लगे। ऐसा माननेके लिए गुंजाइश वधके अनन्तर अग्न्यस्त्रका उपयोग किया, है कि लिङ्ग-पूजा बहुधा अनार्य लोगोंमें तब पांडवोंकी एक अक्षौहिणी सेना जल बहुत दिनसे प्रचलित थी, और पार्योने गई । परन्तु अर्जुन और श्रीकृष्ण उस पूजाका शङ्करके स्वरूपमें अपने धर्ममें दोनों ही अछूते और सुरक्षित बाहर समावेश कर लिया। तथापि, शङ्करका निकल आये । उस समय अश्वत्थामाको माहात्म्य और उनका भयङ्कर स्वरूप आदि अतीव आश्चर्य हुश्रा । इस विषयमें व्यास- समस्त कल्पनाएँ वैदिक हैं। दोनों कल्प- जीसे प्रश्न किया। तब, व्यासने शङ्करकी माओका मेल एक स्थान पर उत्तम रीतिसे स्तुति करके कहा कि श्रीकृष्णने शङ्करकी मिलाया गया है और पार्यों तथा अनायौं- । अाराधना करके ऐसा वरदान प्राप्त कर का एकत्र मेल किया गया है । शिवकी लिया है कि, 'हमारी मृत्यु किसो असे लिङ्गपूजा महाभारत-कालके पहलेसे ही न हो।' इसी तरह द्रोणपर्व में यह भी वर्णन प्रचलित है और वेदान्तिक तत्वज्ञानकी है कि जिस दिन अर्जुनने जयद्रथका वध भाँति शिव एवं विष्णुका परब्रह्मके साथ किया, उस दिन अर्जुनके आगे स्वयं शिव मेल मिला दिया गया है। भारती प्रायोंके दौड़ते थे और अर्जुनके शत्रुओंका निपात धर्मका यह उदात्त तत्व बहुत प्राचीन कर रहे थे। यह बात व्यासजीने अर्जुनसे समयसे है कि सभी देवता एक परमेश्वर-कही है। नारायणीय आख्यानमें तो नारा- के स्वरूप हैं और तदनुसार शिव एवं यणने स्पष्ट कह दिया है कि शिव और विष्णु दोनोंका मिलाप परब्रह्मके साथ विष्णु एक ही हैं, उन्हें जो भिन्नतासे किया गया है। देखे वह दोनों से किसीका भक्त शिव-विष्णु-मक्ति-विरोध नहीं है। इससे प्रकट है कि शिव और परिहार। विष्णुका झगड़ा बहुत पुराना है और उसे हटा देनेका प्रशंसनीय प्रयत्न महा- फिर भी यह स्वीकार करना पड़ेगा भारत-कारने किया है। कि शिव और विष्णुको भक्तिका विरोध . रक्षा करनेपाली परमेश्वरकी शक्तिके बहुत प्राचीन कालसे है: और महाभारत-। अधिष्ठाता देव विष्णु है और शिव हैं ने, सान स्थान पर, इस विरोधके परिहार परमेश्वरकी संहार-शक्तिके अधिष्ठाना