पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४८२

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महाभारतमीमांसा

४५४ 8 महाभारतमीमांसा ® भिन्न भिन्न समयोंमें, धारण कर अग्निकी जाता है कि ये गण छोटे बच्चोंका संहार काम-शान्ति कर दी। इस कारण स्वाहाके करते हैं। इस कारण स्कन्दकी पूजा नीची यह पुत्र हुआ और उसका नाम 'पाण्मा- श्रेणीके लोगोंमें और अझ खी-पुरुषों में तुर'--छःमाताओंवाला-हुआ । यह अग्नि- अधिक होती होगी। का पुत्र होने पर भी रुद्रका माना गया है, क्योंकि अग्नि का अर्थ रुद्र ही है। स्वाहाने यह महाभारतमें स्कन्दके पश्चात् पूज्य पुत्र, पालनके लिए, कृत्तिकाओंको सौंप दुर्गा देवी है। यह भी मारक शक्ति ही दिया । कृत्तिकाओंने इसका पालन किया है। शक्ति अथवा दुर्गाकी भक्ति महा- था, अतएव इसका नाम कार्तिकेय हो भारतकालमें खूब की जाती थी। महा- गया । इन्द्रने इसे अपनी सेनाका नायक : भारतमें दुर्गाकी भक्तिका समावेश करने- बनाया और इसने इन्द्रके शत्रु तारका- : के लिए सौतिने, भारती युद्ध शुरू होनेके सुरका नाश किया। स्कन्दकी इस उत्पत्ति- पहले, दुर्गाकी भक्तिका उल्लेख किया कथाका स्वरूप वैदिक है और इसी कथा- है। हम लिख चुके हैं कि वह उल्लेख ज़रा का रूपान्तर अनुशासन पर्ववाली कथामें अप्रासङ्गिक है। यहाँ पर दुर्गाका स्मरण हुआ है। स्कन्दकी सेनामें हजारों रोग करके उसके स्तोत्रका पाठ करनेकी आशा भी थे । विशेषतया मातृ नामक उन श्रीकृष्णने अर्जुनको दी है। तदनुसार देवताओका अधिक महत्त्व है जो छोटे दुर्गाका स्तोत्र (भीष्म० अ० ३३) दिया बच्चोंको १६ वर्षकी अवस्था होनेके पहले गया है। दुर्गाका सम्बन्ध शङ्करसे है ही खा लेती हैं । इस कारण, स्कन्द तथापि दुर्गा संहारकी स्वतन्त्र देवी है। और मातृदेवताओंकी पूजा करना प्रत्येक इस स्तोत्रमें दुर्गाके पराक्रमका दिग्दर्शन माताका साहजिक, महत्त्वपूर्ण और बहुत कुछ कराया है, जैसा कि स्कन्द- चिन्ताका कर्तव्य हो गया । भारतमें। पुराणमें वर्णित है । इसी प्रकार यहाँ पर स्कन्दके नामोंकी तालिका है, और इन : विन्ध्यवासिनी देवीका भी उल्लेख है: नामोसे उसकी स्तुति करनेकी फलश्रुति और श्री तथा सरस्वतीका दुर्गाके साथ भी बतलाई गई है । स्कन्दको प्रत्येक एकताका भाव दिखलाया गया है। महीनेके शुक्ल पक्षकी पञ्चमी और षष्ठी विराटपर्वके प्रारम्भमें भी दुर्गाका तिथि अधिक प्रिय और पवित्र है: क्योंकि स्तोत्र है। उसमें दुर्गाको विन्ध्यवासिनी शुक्ल पक्षको पञ्चमीको उसे देवताओंके और महिषासुर मर्दिनी भी कहा गया सेनापतिका अधिकार मिला था। और है। उसके लिए काली, महाकाली और शुक्ल पक्षकी षष्ठीको उसने असुरोका परा- सुरा-मांस-प्रिया भी सम्बोधन हैं। इसे भव किया था। स्कन्दको भक्ति करना यशोदाके पेटसे जन्म लेकर कंसको मानों भिन्न भिन्न भयप्रद देवताओंकी मारनेवाली और पत्थर पर पछाड़ते हुए भक्ति करना है। क्योंकि स्कन्द सभी कंसके हाथसे निकली हुई श्रीकृष्णकी मारक शक्तियोंका अधिपति माना गया बहन भी कहा गया है। अर्थात् हरिवंश- है । माता, ग्रह, परिषद् आदि शङ्करके की कथा और अन्य पुराणों में वर्णित भूतगण ही स्कन्दकी सेनामें हैं। महा- महिषासुर आदिकी कथाका यहाँ पर भारतमें इन ग्रहोंके भिन्न भिन्न भयङ्कर उल्लेख है। इससे स्पष्ट देख पड़ता है कि कप भी वर्णित हैं । विशेषतया यह समझा ये कथाएँ महाभारत कालीन है।