® धर्म । यहाँतक जो विवेचन किया गया है, उल्लेख महाभारतमें अनेक स्थलों पर शुभा उसका सारांश यह है कि भारती युद्ध- है। विशेषतया अनुशासन पर्वमें श्राद्ध कालमें भारती पार्योका धर्म केवल वेदः विधिका वर्णन विस्तारके साथ है। इसमें विहित था, तो महाभारत-कालमें इस वर्णन करनेकी.मुख्य बात यह है कि श्राद्ध- धर्ममें वैदिक देवताओंके सिवा और भी में पितरोंके बदले जिन ब्राह्मणोंको भोजन कुछ देवता समाविष्ट हो गये; और वैदिक कराया जाय वे वेदमें विद्वान हों, इस बात देवताओंमें भी इन्द्र पीछे पड़ गये और पर बहुत ज़ोर दिया गया है। वेद-विद्या- शिव और विष्णुकी भक्ति पूर्णतया स्थापित को स्थिर रखनेके लिए भारती आर्योंने जो हो गई । भारती-युद्धसे लेकर महाभारत- नियम बनाये, उनमें यह नियम बहुत ही काल पर्यन्त जो दाई तीन हजार वर्ष महत्व-पूर्ण है और इसका पालन लोग बीते, उतनी अवधिमें भारती-धर्मका रूपा- अबतक करते हैं। इससे वेद-विद्याको न्तर हो जाना अपरिहार्य था। वैदिक उत्तेजन मिला और निदान कुछ ब्राह्मणों- कालमें ईश-भक्तिकी विशेष क्रिया सन्ध्या · में वह अबतक स्थिर है । श्राद्ध में जो और यश थे । वेदाध्ययन और यजन तीनों ब्राह्मण न्यौते जाते थे वे चाहे जैसे न वोंमें जीवित और जागृत थे, परन्तु ' होते थे। देवताओंकी पूजाके सम्बन्धमें भारती-कालमें आयौं और अनार्योंके चाहे जैसा ब्राह्मण न्यौता जा सकता था। समाजमें एवं धर्ममें पूर्णतया मिश्रण होकर परन्तु श्राद्धमें विद्वान् ब्राह्मणको, और जोधर्म स्थिर हुआ उसमें यद्यपि ब्राह्मणोंमें उसमें भी शुद्ध आचरणवाले ब्राह्मणको, वेदाध्ययन और अग्निहोत्र बने रहे थे तथापि : जाँच करके, न्योता देनेका नियम था। अन्य वर्गों में शिव, विष्णु, स्कन्द और इस नियमका तात्पर्य यह देख पड़ता है दुर्गाकी पूजा एवं भक्ति विशेष रूपसे कि भारती पायौंको अपने पूर्वजोंका भली प्रचलित हो गई। इसके अतिरिक्त, इसी भाँति स्मरण था। भारती आर्योंके पूर्वज समय इन देवताओंकी प्रतिमाएँ और अथवा पितर वेद-विद्याके शाता थे और इनके लिए. मन्दिर बने। अक्ष लोगोंमें उनका आचरण शुद्ध था; इसलिए उनके निरे भूत-पिशाचोंकी ही भक्ति, स्कन्दके स्थान पर अज्ञान, दुवृत्त अथवा बुरा पेशा साथ अस्तित्व में आ गई थी। और यह या कार्य करनेवाले ब्राह्मणोंको भोजन भी प्रकट है कि बौद्धोंके एड्डूकोंकी पूजा- कराना निन्द्य समझा जाता था ।स्मृतियों- का निषेध किया गया है। अब हम सना- में एक सूची है कि श्राद्धमें ऐसे ऐसे ब्राह्मण तन धर्मको अन्य बातोंके सम्बन्धमें वर्ण्य है । ऐसी ही सूची महाभारतमें भी विचार करेंगे। है। वह सूची देखने लायक है । उसके दो-एक श्लोक ये हैं:- श्राद्ध। राजपौरुषिके विप्रे घांटिके परिचारिके। सनातन धर्मकी एक महत्वपूर्ण बात गोरक्षके वाणिजके तथा कारुकुशीलवे ॥ श्राख है। समस्त आर्य शाखाओंके इति- मित्रदुह्यनधीयाने यश्च स्यात् वृषलीपतिः। हासमें पितरोंकी पूजा पाई जाती है। एतेषु दैवं पैञ्यं वा न देयं स्यात्कदाचन ॥ प्राचीन कालमें यूनानियों और रोमन __(अनुशासन पर्व १२६) लोगों में भी पितरोंका श्राद्ध करनेकी रीति जो ब्राह्मण सरकारी नौकरी करते हैं, थी। भारती आर्योको श्राद्ध-विधिका तीर्थोके घाटों पर बैठते हैं, परि.
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