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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४९६

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

प्राप्त होनेवाले इन्द्र-लोक अथवा स्वर्गका अनेक लोक हैं: और पातालमें सबसे दर्जा कम हो गया । तब यह स्पष्ट है कि अन्तका रसातल है। रसातलके विषयमें वर्गमें जो सुख मिलता है वह भी निम्न आजकल दूषित कल्पना है, परन्तु वह श्रेणीका यानी ऐहिक प्रकारका है: ब्रह्म- ठीक नहीं है। महाभारत-कालमें रसातल लोकमें प्राप्त होनेवाला सुख अवश्य उच्च अत्यन्त सुखी लोक समझा जाता था। कोटिका होना चाहिए । इस प्रकार उप-न नागलोके न खर्गे न विमाने त्रिविष्टप। निषत्-कालमें ही स्वर्गका मूल्य घट गया परिवासःसुखः ताटकसातलतले यथा। था। भगवद्गीतामें भी स्वर्गकी इच्छाको कल्पना यह है कि पृथ्वीके नीचे सात हीन बतलाकर कहा गया है कि यह अल्प पाताल हैं और उनमें सबसे अन्तिम फलदायी है, और कामनिक यज्ञ करने- रसातल है । इसीसे आजकलकी रसातल- वालोंको मिलता है। 'कामात्मानः स्वर्ग- सम्बन्धिनी दूषित धारणा उपजी होगी। परः' इत्यादि श्लोकोंसे प्रकट है कि स्वर्ग- रसातलमें सुरभि धेनु है; उसके मधुर की इच्छा करना बिलकुल निम्न श्रेणीका दुग्धसे क्षीर सागर उत्पन्न हो गया है। माना गया था। इसी तरह 'ते तं भुक्त्वा और उसके ऊपर आनेवाला फेन पीकर स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुराये मर्त्यलोकं रहनेवाले फेनप नामक ऋषि वहाँरहते हैं। विशंति' इस श्लोकमें कहा गया है कि यह निश्चित है कि इन भिन्न भिन्न लोको- पुण्य चुक जाने पर प्राणी स्वर्गसे लौट की गति शाश्वत नहीं है, और जो लोग आता है। सबसे श्रेष्ठ पद 'यद्गन्वान निव- जिन देवताओंकी भक्ति करते हैं वे उन्हीं- तते तद्धाम परमं मम' इसमें कहा गया के लोकको जाते हैं। है। यह पद ही ब्रह्मलोक है और गीतामें वर्णन किया गया है कि पाप करनेवाले इसीको ब्रह्म-निर्वाण कहा गया है। लोग यमलोकको जाते हैं और वहाँ नाना- सारांश यह कि परमेश्वरके साथ तादात्म्य प्रकारकी यातनाएँ भोगकर फिर भिन्न होकर ब्रह्मरूप हो जाना ही सबसे उत्तम भिन्न पाप-योनियों में जनमते हैं । यह यम- गति, तथा स्वर्ग:प्राप्ति कनिष्ट गति निश्चित लोक दक्षिणमें माना गया है और स्वर्गके हुई। भारती कालमें इन दोनोंके दर-। सम्बन्धमें यह कल्पना है कि वह उत्तरमें मियान भिन्न भिन्न लोगोंकी कल्पना मेरुके शिखर पर है। भारती आर्य धर्मका प्रचलित हो गई थी। महाभारत-कालमें । एक महत्त्वका सिद्धान्त यह है कि भिन्न इन दोनोंकी गतियों के बीच कल्पित किये भिन्न योनियों में पापी मनुष्यका मात्मा हुए वरुणलोक, विष्णुलोक और ब्रह्म- जन्म लेता है। इसका वर्णन अन्यत्र लोक इत्यादि अनेक भिन्न भिन्न लोक विस्तारके साथ किया गया है। परन्तु थे। इसी तरह पातालमें भी अर्थात् यहाँ पर यह कहना है कि स्मृतिशास्त्र में पृथ्वीके नीचे अनेक लोकोंकी कल्पना की ऐसी कल्पनाएँ हैं कि कौनसा पाप करने गई थी। सभापर्व में वरुणसभा, कुबेर- पर यमलोकमें कितने समयतक यातनाएँ सभा और ब्रह्मसमा इन तीन सभाओंका भोगनी पड़ती हैं, और कितने वर्ष पर्यन्त भिन्न भिन्न वर्णन है: और उनमें भिन्न : किस योनिमें जन्म लेकर रहना पड़ता है। भिन्न ऋषियों तथा राजाओंके बैठे रहने- वैसी ही बातें महाभारतके अनुशासन का भी वर्णन किया गया है। इसी तरह पर्वमें भी हैं। उनका विस्तार करनेकी यहाँ उद्योग पर्वमें वर्णन है कि पातालमें भी आवश्यकता नहीं। परन्तु जिस समय ये