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महाभारतमीमांसा

महाभारतमीमांसा # - - प्रचलित हो गई थीं, उन्हें भी इस प्रन्थमें विवाहकी कथा भी ऐसी ही है। उसका स्थान देना आवश्यकथा।इन सब कथाओं समर्थन करनेके लिये प्राचीन समयमें का वर्णन सौतिने स्थान स्थान पर किया है भिन्न भिन्न कथाएँ प्रचलित हो गई होगी और इन्हींके आधार पर उसने अपने ओर इन सब कथाओंको अपने प्रन्थमें अन्य में भारती कथाकी रचना की है। अब शामिल करना सौतिको आवश्यक प्रतीत इसका विचार किया जायगा कि ऐसी हुआ होगा । इन सब दन्तकथाओंके कधाएँ कौन सी हैं । (२) आस्तिककी कथा लिये यह कल्पना मूल आधार है कि इसी प्रकारकी है। यह बात हर एक द्रौपदी स्वर्गलक्ष्मीका अंशावतार है। (४) विवेचकके ध्यानमें आ सकती है कि दुर्योधनके विषयमें कुछ चमत्कारिक यथार्थमें नाग मनुष्य-जातिके ही होंगे: कथाओका प्रचलित हो जाना असम्भव परन्तु समयके हेर फरसे लोगोंकी न था । चित्ररथ दुर्योधनको पकड़कर करप्रनामें यह अर्थ हो गया कि वे प्रत्यक्ष ले गया, यह कथा इसी प्रकारको है। यह नाग यानी सर्प थे । परीक्षितकी हत्या कल्पना कुछ विलक्षण सी जान पड़ती है करनेवाला तक्षक कोई मनुष्य रहा होगा कि जब दुर्योधन छूटकर आया तब वह और जनमेजयने जो सर्पसत्र किया वह प्रायोपवेशन करने लगा और कृत्या उसको कुछ सचमुच सौंका सत्र नहीं था, पाताल लोकमें ले गई (वन पर्व, अध्याय किन्तु नाग जानिके मनुष्योंका संहार २४१ और २५०)। (५) दुर्वासा ऋषि करनेका प्रयन था। परन्तु जब एक बार द्वारा पांडवोंके सताये जानेको कथा सर्प-सम्बन्धी कल्पना प्रचलित हो गई, तब भी पीछेसे बनी है और उसे सौतिने उसका त्याग कर देना संभव नहीं था: महाभारतमें स्थान दे दिया है ( अध्याय इसी लिये वर्तमान उपाख्यानसे यह बात | २६१)। (६) युद्ध के समय सेनापतिका देख पड़ती है कि तक्षक तथा अन्य बचे पहिलेसे ही यह कह देना आश्चर्यकारक हुए नागोंको रक्षा प्रास्तिक ने किस प्रतीत होता है कि-"मैं अमुक अमुक काम प्रकार की । (२) अंशावतार-वर्णन की करूँगा" और "मैं अमुक रीति से मरूँगा"। कथा भी इसी प्रकारकी है । इतिहाससे इसी प्रकार युद्ध-सम्बन्धी पराक्रमका पता लगता है कि प्रायः सब प्राचीन लोगों- वर्णन अतिशयोक्तिसे किया गया है । मैं यह कल्पना प्रचलित हो गई थी कि उदाहरणार्थ, यह कल्पना पीछेसे की हुई प्रत्यक ऐतिहासिक व्यक्ति किसी न किसी जान पड़ती है कि भीमने द्रोणके रथको देवताका अवतार या पुत्र है। इसी सात बार उठाकर फेंक दिया। अर्जुनके कल्पनाके अनुसार महाभारतमें भी रथके सम्बन्धमें जो कल्पना है वह भी भारती वीर पुरुषों की उत्पत्ति बतलाई इसी प्रकार पीछेसे की गई होगी। यह दन्त- गई है। प्रादिपर्वके अध्याय ५६और ६६ (कथासयमच चमत्कारिक है कि ज्योहो मे सौतिने प्रचलिल विचारके अनुसार श्रीकृष्ण अर्जुनके दिव्य रथसे नीचे उतरे अंशावतारका वर्णन किया है। मूलग्रन्थ-त्योंही वह जलकर भस्म होगया. क्योकि में.कहीं कहीं इसके विरुद्ध भी कुछ विधान श्रीकृष्ण तो प्रति दिन रथसे नीचे उतरा पाये जाते हैं । इससे जान पड़ता है कि ही करते थे। चमत्कारयुक्त ऐसी कथाएँ अंशावतारकी यह कल्पना नूतन है। महाभारतमें बहुत हैं। इस बानका निर्णय (३) पाँच पतिके साथ द्रौपदी के करना कठिन है कि इन सब कथानों में