पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५१

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ॐ महाभारतके कर्ता २५ से मूल कौनसी है और सौतिके समय किये जैसे-"तुम अपने सैनिकोंको समय कौनसी नयी कथाएँ प्रचलित हुई थीं। पर वेतन देते हो न : प्रतिदिन सबेरे उठकर राज्यके आय-व्ययकी जाँच करते ____ (३) ज्ञान-संग्रह। हो या नहीं ?" इन सब प्रभोसे जान महाभारत में दन्तकथाओंके संग्रहका पड़ता है कि मानों नारद युधिष्ठिरकी सौतिका उद्देश जैसे स्पष्ट देख पडता है. परीक्षा ही ले रहे हैं। इस अध्यायमें उत्तम वैसेही उसने सब प्रकारके शानका भी राज्य-प्रबन्धके सब नियम बड़ी मार्मि- संग्रह इस ग्रन्थमें किया है। इसमें भी कताके साथ एक स्थानमें प्रथित किये गये संदेह नहीं कि राजनीति. धर्मशास्त्र है। इसी प्रकार ज्योतिष-सम्बन्धी बातें तत्वज्ञान, भगोल, ज्योतिष श्रादि शास्त्र- वनपर्व और शान्तिपर्वमें दी गई है। यह विषयोंकी बातें एकत्र ग्रथित करनेका नहीं कहा जा सकता कि वहाँ इन सब उसका उद्देश था। उदाहरणार्थ, भूगोल- बातोंकी कोई विशेष आवश्यकता थी। सम्बन्धी जानकारी और भारतवर्ष के जब भीम और हनुमानकी भेंट हुई तब भिन्न भिन्न देशों तथा नदियोंकी जानकारी भीमने चतुर्युग सम्बन्धी बाते पूछी और भीष्म पर्वके प्रारम्भमें दी गई है। धृतराष्ट्र हनुमानने उनका वर्णन किया। सांख्य ने सञ्जयसे पूछा कि जब कि कौरव और और योग तत्त्वज्ञानोंके मतोंका वर्णन स्थान पांडव भूमिके लिये युद्ध करनेवाले हैं, स्थान पर, विशेषतः शान्ति पर्वमें, विस्तार- तब में जानना चाहता हूँ कि यह भूमि सहित और बार बार दिया गया है। कितनी बड़ी है और समस्त भूलोक किस वक्तृत्वशास्त्र (Rhetoric) सम्बन्धी कुछ तरहका है। सचमुच यह प्रश्न ही चमत्का- तत्त्व सुलभा और जनकके सम्बादमें बत- रिक है। क्या यह आश्चर्य नहीं है कि युद्ध लाये गये हैं । वे सचमुच मनोरञ्जक हैं। सम्बन्धी बातोंकी चर्चा न कर धृतराष्ट्र कुछ न्यायशास्त्रके भी कुछ नियम इसी सम्बादसे और ही बातें जानना चाहते हैं ? भूगोल निष्पन्न होते हैं। सारांश, सौतिने अपने सम्बन्धी जानकारीका कहीं न कहीं दिया ग्रन्थमें अनेक शास्त्र-विषयक बातोंको एकत्र जाना आवश्यक था, इसलिये सौतिने करनेका प्रयत्न किया है। उसको यहीं शामिल कर दिया है । यहाँ (१) धर्म और नीतिकी शिक्षा। पूर्वापार-सम्बन्धका विच्छेद भी होगया है। ०१ बारहवें अध्यायके अन्तमें धृतराष्ट्र और सौतिने महाभारतमें सनातन-धर्मका सञ्जय परस्पर सम्भाषण कर रहे हैं; पूर्ण रीतिसे उद्घाटन करनेका यन किया परन्तु अगले अध्यायके प्रारम्भमें ही है। जैसा कि हमने पूर्व में कहा है, इसी समय युद्ध-भूमिसे घबराता हुआ लौट सबबसे, यही माना जाता है कि महाभारत माता है और भीमके मारे जानेका हाल एक धर्मशास्त्र अथवा स्मृति है। इसमें सुनाता है। परन्तु इस बातका पता भी स्थान स्थानपर सनातन-धर्मके मुख्य तस्व नहीं कि सजय युद्ध भूमिपर कब गया बतलाये गये हैं। इन तत्त्वोंका विस्तार था। दूसरा उदाहरण सभापर्वके “कश्चित् । मुख्यतः अनुशासन और शान्तिपर्वमें पाया अध्यायका है। युधिष्ठिर सभामें बैठे हैं: बाता है। अन्य स्थानों में भी इसी विषयकी यहाँ नारद ऋषि आये और उन्होंने राज्य- बार्चा की गई है। उदाहरणार्थ, प्रादि पर्ष में प्रबन्धक सम्बन्धी युधिष्ठिरसे की जो जैतर-ययाति आख्यान है ( अपार