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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५०२

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा,

यही उनकी गति और उत्तरक्रिया देख | कि जब युधिष्ठिरके समक्ष विदुरका देहान्त पड़ती है। इससे यह भी नहीं देख हुआ तब उसको अन्तिम गतिकी व्यवस्था पड़ता कि तमाम मुर्दै जलाये ही जाते युधिष्ठिर करने लगे; परन्तु आकाशवाणी- थे। यूनानी इतिहासकारोंने लिखा है कि ने उन्हें इस कामसे रोक दिया । अर्थात्, पजाबमें कुछ लोगोंमें एक प्रकारकी यह विदुरकी मृत देह जलाई नहीं गई: परन्तु अन्स्यविधि है कि गृध्र आदिके खानेके देख पड़ता है कि वह गाड़ी भी नहीं लिए मुर्दा जङ्गलमें रख दिया जाता है। गई। तब कहना चाहिए कि मुर्दा वहीं पहले यह बतलाया ही गया है कि पजाब- पड़ा रहा और जङ्गलके हिंस्र पशुधोने केक लोगोंकी रीतियाँ प्रासुरों अर्थात उसे खा लिया। तात्पर्य यह है कि संन्या- पारसी लोगोंकी ऐसी थीं। युद्ध में काम सियोंकी प्रेतविधिका ठीक ठीक पता माये हुए वीरोंके मुदीकी यही क्रिया है। नहीं लगता । इस सम्बन्धके नीचे लिखे चीनी परिव्राजक हुएनसांगने भी लिखा है हुए श्लोक ध्यान देने योग्य हैं:- कि हिन्दुस्थानियोंमें तीन प्रकारको अन्त्य- धर्मराजश्च तत्रैनं संचस्कारयिषुस्तदा । विधि होती है। अग्नि-संस्कार, पानी में डाल दग्धुकामोऽभवद्विद्वानथ वागभ्यभाषत। देना और मुर्देको जङ्गलमें रखकर हिंस्र भो भो राजन्न दग्धव्यमेतद्विदुरसंज्ञकम् । पशु-पक्षियोंसे खिलवा देना। महाभारत- कलेवरमिहवं ते धर्म एष सनातनः । में इन तीनों भेदोका उल्लेख है। योगी लोको वैकर्तनो नामभविष्यन्यस्य भारत। लोग जीवितावस्थामें ही नदीमें डूबकर या यतिधर्ममवाप्नोसौ नैष शोच्यः परंतप पर्वतकी चोटीसे कूदकर प्राण देते अथवा (आश्रमवासिकपर्व अ. २८, ३१-३३) अग्निमें देहको जला देते थे। पहले लिम्वा अस्तु; यहाँतक विस्तारके साथ इल ही जा चुका है कि प्रायश्चित्तके लिए भी बातका विवेचन किया गया है कि भारती- इस रीतिसे देह त्याग करना कहा गया कालके श्रारम्भसे लेकर महाभारत-काल है। इस प्रकार यथा-विधि की हुई आत्म- पर्यन्त भारती लोगोंकी धर्म-विषयक कल्प- हत्या भी निन्ध नहीं, वह तो एक धार्मिक नाएँ क्या क्या थी और प्राचार क्या क्या कर्म मानी जाती थी । योगी अथवा थे और उनमें थोड़ा बहुत परिवर्तन किस संन्यासी मर जायें तो उनको समाधि तरह हो गया । अब, धर्मसे संलग्न जो देनेकी रीति आजकल है । नहीं कह तत्वज्ञानका विषय है उस पर ध्यान देना सकते कि महाभारत-कालमें ऐसा चाहिए और सोचना चाहिए कि महा- होता था या नहीं । इस विषय भारत-काल पर्यन्त भिन्न भिन्न मोक्ष- का कुछ अधिक खुलासा कर देना आव- मार्ग भारतवर्ष में किस प्रकार स्थापित श्यक है। आश्रमवासि पर्वमें वर्णन है हुए थे।