8 तत्वज्ञान। . सोलहवाँ प्रकरण । विचार महाभारतमें प्रत्यक्ष नहीं पाया है, तथापि अप्रत्यक्ष रीतिसे उनके भी मतोका विचार उसमें पाया जाता है। तत्वज्ञान। अच्छा, अब हम महाभारतके तत्वज्ञान- विषयक भिन्न भिन्न आख्यानों परसे अन्य लोगोंकी अपेक्षा भारती आयौंकी यहाँ यह विचार करते हैं कि, महाभारत- - यदि कोई विशेषता है, तो वह कालतक तन्वज्ञानकी उन्नति भरतखण्ड- उनका तत्त्वज्ञान है । सब लोगोंमें भारती में कैसी हुई थी। आर्य तत्वज्ञानके विषयमें अग्रणी थे; और यह बात सबको मालूम ही है कि, भारती प्रार्योंके सब तत्वज्ञानमें वेदान्त- तत्वज्ञान-सम्बन्धी विचार भारतवर्ष में झान अग्रणी था। महाभारतमें आर्योंके बहुत प्राचीन कालसे होरहे हैं और उनकी सब तत्वज्ञानका समावेश और उल्लेख : चर्चा ऋग्वेदमें भी है। जब मनुष्य प्राणि- किया गया है। महाभारतका सबसे बड़ा जगत्के रहस्यका विचार करने लगता गुण यही है कि, वह तत्वज्ञानकी भिन्न है, उस समय उसका मन अत्यन्त बुद्धि भिन्न चर्चासे पाठकोंका मनोरञ्जन और मत्ताकी जो छलाँगे भर सकता है, और ज्ञानवृद्धि किया करता है। यह चर्चा अपने बुद्धिबलसेजो भिन्न भिन्न सिद्धान्त इस सम्पूर्ण बृहत् ग्रन्थ भरमें फैली हुई बाँध सकता है, वे सारे सिद्धान्त ऋग्वेद- है। तत्वज्ञान विषयक अनेक प्रकरणोंमें के कितने ही सूक्तों में हमें दिखाई दे रहे भगवद्गीता सबकी शिरोमणि है, सो हैं। वेदके अन्तिम भाग उपनिषद् हैं। स्पष्ट ही है। भगवद्गीताका प्रामाण्य उनमें मनुष्य और सृष्टिके सम्बन्धका उपनिषदोंके समान माना जाता है । अनु- जो अत्यन्त परिणत सिद्धान्त तत्वज्ञानके मौता, शान्तिपर्वका मोक्षधर्म, उद्योगपर्व- नामसे भारतवर्षमें प्रस्थापित हुश्रा, उसका का सनत्सुजातीय, वन पर्वका युधिष्ठिर- विवेचन बहुत ही वक्तृत्वपूर्ण वाणीसे भ्याध-सम्बाद और इसी प्रकारके अन्य किया गया है । वेदमतसे मान्य होनेवाले छोटे छोटे सम्पाद और आख्यान मिल- इन तत्वज्ञान-सिद्धान्तोंके साथ ही दूसरे कर भारतीय तत्वज्ञानका, प्राचीन काल- ! वेदबाह्य सिद्धान्त भी भारतवर्ष में अवश्य का, बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण ग्रन्थ- प्रचलित हुए होंगे। कारण यह है कि समुदाय ही बन जाता है। रामायणमें जब एक बार मनुष्यका मन, खोजके तत्वज्ञान-विषयक चर्चा बहुत थोड़ी है। साथ, तत्वज्ञानका विचार करने लगता अर्थात् , उपनिषदोंके बाद तत्वज्ञानका है, तब उसकी मर्यादा अन्ततक, अर्थात् सबसे प्राचीन ग्रन्थ महाभारत हो है। यह भी कहनेतक कि ईश्वर नहीं है, पहुँच पशास्त्रोके भिन्न भिन्न सूत्र, जो कि इस जाया करती है। इस प्रकारके विचार समय पाये जाते हैं, महाभारतके बादके उपनिषत्कालमें प्रचलित थे अथवा नहीं, हैं। प्राचीन कालसे महाभारतके समय- यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। तक इन भिन्न भिन्न तन्वक्षानोंके विचार इन मतोंके मुख्य प्रवर्तक कपिल और कैसे कैसे बढ़ते गये, इस बातको ऐति- चार्वाक थे। उनका नाम उपनिषदोंमें, हासिक रीतिसे देखनेका साधन महा- अर्थात् प्राचीन दस उपनिषदोंमें, बिल- भारत ही है। जैन और बौद्ध शासनोंका कुल ही नहीं पाया है। तथापि, ये वेद.
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