® महाभारतमीमांसा बाह्य तत्वज्ञानके सिद्धान्त बहुत प्राचीन करते हुए यही चार महाभूत माने हैं; होंगे, क्योंकि महाभारतमें उनकी अत्यन्त और जब कि उसके नामका एक बार प्राचीनताका उल्लेख किया गया है । महा-आधार मिल गया, तब उन चार महा- भारतमें यह लिखा हुआ है कि, कपिल भूतोंके विषयमें किसीने सन्देह नहीं एक प्राचीन ऋषि थे: और चार्वाक किया । आज कितनी ही शताब्दियोंसे थे नामक एक ब्राह्मण दुर्योधनका सखा था। ज्योंके त्यों जारी हैं। यहाँ पर यह बत- उसने राज्यारोहणके अवसर पर युधि- लानेकी आवश्यकता नहीं कि, आधुनिक ष्ठिरकी निन्दा की थी, इसलिए ब्राह्मणों- पाश्चात्य तत्वज्ञानसे चार मूलभूतोका तो ने उसे केवल हुंकारसे दग्ध कर डाला। सिद्धान्त उड़ गया; और इसीको ध्यानमें इस वर्णनसे जान पड़ता है कि, चार्वाक- | रखकर उपर्युक्त जर्मन पण्डितने ऐसा का मत बहुत प्राचीन कालका है: और कहा है। आजकलके समयमें अनेक तत्व वह वेदबाह्य भी माना जाता था। स्थापित हुए हैं । परन्तु जान पड़ता है कि पंचमहाभूत। ये भी स्थिर न रहेंगे; आगे चलकर इनका समावेश एकमें ही हो जायगा । जो हो। इस प्रकार, भारती-कालकं प्रारम्भमें जगत्का विचार करने पर, अवश्य ही, तीन तत्वज्ञान, अर्थात् भिन्न भिन्न रीति-: सूक्ष्म रीतिसे थोड़ा निरीक्षण करनेवाले से जगत्के रहस्यका उद्घाटन करनेवाले को चार मूलभूत दिखाई देने चाहिएँ । सिद्धान्त प्रचलित थे। वेदान्त मत और संसारके तीन प्रकारके पदार्थ हमारी दृष्टि- कपिल तथा चार्वाकके मत प्रारम्भके में आते हैं । पृथ्वीके समान दृढ़, पानीके तत्वज्ञान थे। यह स्वाभाविक ही है कि. समान द्रव और वायके समान अवश्य । इन तत्वज्ञानीका कुछ भाग समान होना| इनके सिवा चौथा पदार्थ अग्नि भी ऐसा चाहिए। कुछ कल्पना और कुछ बातें है जो मनुष्यकी कल्पनामें शीघ्र आ सब तत्वज्ञानोंके मूलमें एकही सी होनी सकता है। क्योंकि इस बातका खुलासा चाहिएँ । पञ्चन्द्रियों और पञ्चमहाभूतों- करनेके लिए, कि ज्वलनकी क्रिया कैसे की कल्पना स्वाभाविक ही भारतवर्षमें होती है, अग्निको एक भिन्न तत्व मानना उसी समय निश्चित हुई होगी जब कि पड़ता है। मतलब यह है कि, पृथ्वी, जल, यहाँ तत्वज्ञानका विचार होने लगा था। वायु और अग्नि-ये दृश्य अथवा जड़ यह भी कहा जा सकता है कि पञ्चेन्द्रिय सृष्टिके चार मूलभूततत्व प्रत्येक विचार- और पञ्चमहाभूत भारतीय तत्वज्ञानोंके शील मनुष्यको सूझने योग्य हैं; और तद- मूलाक्षर हैं। यहाँ यह बात बतलानी नुसार पाश्चात्य तत्ववेत्ताओंने चार ही चाहिए कि, भारती आर्य पाँच महाभूत महातत्व माने भी हैं । परन्तु यह एक बड़े मानते हैं, परन्तु पश्चिमी तत्वज्ञानका आश्चर्यकी बात है कि, भारती-मार्योंने विचार करनेवाले उन्हीके भाई ग्रीक लोग पाँचवाँ महातत्व आकाश कहाँसे मान चार ही महाभूत मानते हैं । एक जर्मन लिया। अधिक क्या कहा जाय, सचमुच यह प्रन्थकारने कहा है-"इस सृष्टिके सब एक बड़े आश्चर्यकी बात है कि, प्राचीन पदार्थ जिन चार भूतोंसे उत्पन्न हुए हैं, भारती-आर्योंने केवल अपनी बुद्धिमत्तासे उन महाभूतोंका इतिहास बहुत पुराना आकाश-तन्य हुँढ निकाला । बड़े बड़े है। अरिस्टाटलने सृष्टिरचनाका विचार आधुनिक रसायन-शास्त्रवेता भी अब यही
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