पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५१३

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% 3D कारण मिट्टी है. उस प्रकार जगतका अक्षरसे आकाश उत्पन्न हुश्रा, प्राकाशसे निमित्त कारण और उपादान कारण भिन्न वायु, वायुसे अग्नि, अग्निसे जल, जलसे नहीं है, किन्तु एक ही है । सृष्टि और पृथ्वी, पृथ्वीसे ओषधि, ओषधियोसे आज स्रष्टा, जगत् और ईश्वर, प्रकृति और और अनसे जीव । यही क्रम उपनिषदों- पुरुष, भिन्न भिन्न नहीं हैं: किन्तु एक ही में भी बतलाया गया है। इसके विरूद्ध है-अर्थात् जगत में द्वैत नहीं है, अद्वैत क्रमसे सारी सृष्टिका लय होनेवाला है। है । यही उपनिषदोंका परम सिद्धान्त है। अर्थात् वेदान्तका यह सिद्धान्त महा- और, महाभारतमें भी यही प्रतिपादित भारतमें स्वीकार किया गया है कि सम्पूर्ण किया गया है। यह पहले बतलाया ही जा जगत्में एक ही तत्व भरा है, सारे जगत्- धुका है कि जगत्का विकास किस क्रम- : में एक परमेश्वर ही अन्दर-बाहर व्याप्त से होता है । शान्ति पर्व (अध्याय २७५) है: और जान पड़ता है कि यही सिद्धान्त में, जैसा कि देवलने नारदसे बतलाया है, प्रायः पाश्चात्य तत्वज्ञानियोंको भी यह क्रमोत्पत्ति बतलाई गई है,* कि स्वीकार होगा। सांख्योंके चौबीस तत्त्व। , शान्ति पर्व (अध्याय १८३) मे भृगु-भारद्वाज कपिलका सांख्य मत इस प्रकार संवादमे सृष्टि-उत्पत्तिका क्रम भिन्न बतलाया है । उसके । विषयमें यहा कुछ लिखना आवश्यक है। यह क्रम यद्यपिहता था; और आस्तिक अथवा वैटिक अन्य स्थानोसे भिन्न है, मथापि जिम प्रकार भिन्न भिन्न मतके तत्त्वज्ञानको मान्य न था। तथापि उपनिषदोंके भिन्न भिन्न स्थानोके भिन्न भिन्न क्रम एक ही इस विषयके सांख्य-विचार अन्योको व्यवस्थासे वेदान्त-मत्रों में लगाये गये है, उसी प्रकार यहाँ- स्वीकार होने योग्य थे कि सम्पूर्ण सृष्टि का भी क्रम पूवोक्त क्रमानुसार ही समझना चाहिए। किस कमसे उत्पन्न हुई। किंबहुना, भृग कहते हैं, कि ब्रह्माजीने पहले जल उत्पन्न किया। सधिकी उत्पत्तिका क्रम पहले सांख्योंने "भाप एव समर्जादी" ऐमा वचन भी अनेक जगह पाया ही निशित किया होगा: और उन पदाथों- जाता है । तुरन्त हो फिर भाग मृगु कहते है-"पहल आकाश उत्पन्न किया । उस समय मयं इत्यादि कुछ नहीं ! की संख्या उन्होंने ही नियत की होगी। का था । उभ शन्य आकाशमें जमे "क अन्धकार में दूसरा : इसी कारण उन्हें 'सांख्य' नाम प्राप्त हुश्रा अन्धकार उत्पन्न हो, उसी प्रकार जल उत्पन्न हुआ, और है। कपिलका सांख्य मत यद्यपि इस उस जलकी वादसे वायु उत्पन्न हुा । जब घा पानीसे ! प्रकार निरीश्वरवादी था और द्वैती भी भरने लगता है, उप्त समय जैसा शब्द होता है, उसी था, तथापि सांख्य मतका आदर भारत- प्रकार प्रकाश जब पानीसे भरने लगा, तब वायु शब्द कालमें बहुत ही अधिक था। भगवद्गीता करने लगा। यह सशब्द उत्पन्न होनेवाला वायु ही अब और महाभारतमें उनके मतका उल्लेख भी आकाशमें संचार करता रहता है। वायु और जलके घर्षणसे अग्नि उत्पन्न हुआ: और आकाशमें अन्धकार नष्ट बारम्बार प्रशंसापूर्वक आता है। यह हो गया । वायुकी सहायतासे यह अग्नि आकाशमें जलको उड़ा देता है । वायुसे पनत्व पाया हुआ अमिका भाग मूल तत्त्व सिद्धान्त-रूपसे उनकीकारिका- फिर पृथ्वी बनकर नीचे गिरा।" यह उत्पत्ति कहाँसे ली में महाभारत कालके बाद प्रथित हुए। गई है, सो बतलाया नहीं जा सकता । तथापि यह कल्पना महाभारत-काल और भगवद्गीताकेसमय- सृष्टिक भिन्न भिन्न प्रत्यक्ष अनुभवको लेकर की गई में भी सांख्य और योगके मत अस्पष्ट है। अनेक सिद्धान्तोंमेंसे यह एक सिद्धान्त है। परन्तु अन्तमें यह एक ओर रह गया, और पूर्वोक्त तैत्तिरीय अथवा अस्थिर दशामें थे। यही कारण है उपनिषदका मष्टि उत्पत्ति-कम ही मनमान्य हो गया। कि महाभारतकार सांख्य और योग,