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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा कपिल मुनि थे । अर्थात् सय मानवी नाम था। इस समय सांख्यके जो अन्य तत्व-शानोंमें कपिलका मत प्राचीन है। उपलब्ध हैं वे सब महाभारतके पीछेके महाभारतका कदम इससे भी आगे है। हैं । सांख्यका पुराना ग्रन्थ महाभारत ही उसमें (शान्ति पर्व प्र० ३५० में) स्पष्ट है। उसमें पुराना भाग भगवदगीता है: ही कहा है कि कपिलका तत्व-शान सब- अर्थात् भगवद्गीता ही सांख्योंका मूल से पुराना है। इतना ही नहीं, किन्तु उसमें सिद्धान्त देखनेके लिये साधन है। गीता- कपिलको विष्णु या ईश अथवा ब्रह्माका में सांख्य ही नाम है, अतः यह स्पष्ट है ही अवतार एवं विभूति माना है। इससे कि यह नाम प्राचीन कालसे चला आता है। यह स्पष्ट है कि महाभारत-कालमें कपिल- विदित होता है कि सांख्यका नाम संख्या के प्रति अत्यन्त पूज्य-बुद्धि थी । इसका शब्दसे पड़ा है। उपनिषद् सिद्धान्तोंमें कारण यह है, कि हर जगह सांख्य और एक तत्वका प्रतिपादन किया गया है। योगका प्रास्तिक तत्व-शानके विचारमें ' परन्तु कपिलने दांका किया है। इस प्रकार समावेश किया गया है। कहीं कपिल- सांख्य और वेदान्तका प्रारम्भसे ही के विरुद्ध मत नहीं दिया गया । केवल विरोध पैदा हुआ। उसका पहला और एक स्थान पर उसका उल्लेख विरुद्ध मुख्य मत यह था कि जगतमे प्रकृति मतकी दृष्टि से किया गया है । शान्ति पुरुष दो पदार्थ है। सांख्योंका स्पष्ट मत पर्वके २६८ व अध्यायम गाय और है कि प्रकृति और पुरुष एक नहीं हो कपिलका संवाद कल्पित है । प्राचीन सकते । शान्ति पर्वके ३१चे अभ्यायमें वंदविहित-यज्ञाम गघालम्भ होता था: , स्पष्ट कहा है कि जानकार लोग ऐसा उस समय उस ब्रह्मनिष्ठा सम्पादित करने- कभी न समझे कि प्रकृति और श्राम्मा वाले तथा सम्य-युक्त बुद्धिका लाभ प्राप्त , एक ही हैं । अर्थात्, सांख्योंकी द्वैतकी करनेवाले कपिलने रुष्ट होकर कहा- यह पहली सीढ़ी है। सांख्योंने यह बत. "वाहरं वेद !" और अपना स्पष्ट मत लाया कि पुरुष प्रकृतिसं भिन्न है, वह दिया कि हिंसायुक्त धर्मके लिए कहीं केवल द्रष्टा है, प्रकृतिकी प्रत्येक क्रिया प्रमाण नहीं है । अर्थात् यह स्पष्ट दिखाई या गुणमे वह परे है । परन्तु उन्होंने यह देता है कि पहलेसे ही किसी न किसी निश्चित नहीं किया कि सांख्य-मतके बातमें कपिलका मत वेदके विरुद्ध था। अनुसार यह पुरुष ईश्वर है। सांख्य वास्तवमै यह बात आश्चर्यजनक है, कि निरीश्वरवादी हैं: परन्तु प्रश्न उपस्थित कपिलका मत वेदके विरुद्ध होते हुए भी, होता है, कि क्या वे प्रारम्भसे ही निरी- महाभारत-कालमें उसके मतका इतना श्वरवादी हैं ? महाभारतके कई वचनोंसे आदर था। इससे यह निर्विवाद है कि यह विदित होता है कि सांख्य प्रारम्भसे भारती-कालमें तत्व-ज्ञानके विषयमें सम-ही निरीश्वरवादी होगे । शान्ति पर्वके तोल दृष्टि थी। ३००वें अध्यायके प्रारम्भमें योग और यह कहना कठिन है कि कपिलका सांख्यका मतभेद बतलाते समय कहा मुलतः सांख्य मत क्या था । महाभारतमें है कि-"योग मतवादी अपने पक्षके संकरी जगह उसके सांख्य-शासका। ' यहा मूलभूत शौक ये है :- उल्लेख है। इससे यह निर्विवाद सिद्ध । उल्लख ह। इसस यह नाववाद सिन गांख्याः सांख्य प्रशंमस्ति गोगा योग द्विजातयः । होता है कि कपिलके मनका 'सांख्यः अनीश्वरः कशगुरुगदिन्येय रायकर्णन ॥