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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५४७

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  • भिन्न मतोंका इतिहास । *

५१६ सम्बन्धमे यह कारण उपस्थित करते हैं, कर्म योगेन योगिनाम" यह उल्लेख कि संसारमें ईश्वरका होना आवश्यक है। उसी तरह १३वें अध्यायमें ये है; उसके बिनाजीवको मुक्ति कैसे मिलेगी? सांख्येन योगेन" कहकर प्रात्मानुभव. सांख्य-मतवादियों से पूर्ण विचार करने की रीति भी बतलाई है । अर्थात् यहाँ वाले ब्राह्मण अपने मतकी पुष्टिके लिए पुनः ज्ञानकी रीतिका वर्णन किया है। कहते हैं कि यदि जीवमें विषयोंके सम्बन्ध- केवल ज्ञानका प्रकार भिन्न है, अर्थात् से वैराग्य स्थिर हो जाय, तो देह त्यागके एकमें द्वैत-शान है, तो दूसरेमें अद्वैत है। अनन्तर उसे मुक्ति आप ही मिलेगी: बहुत प्राचीन कालसे सांख्योंका पाँचवाँ उसके लिए कोई दूसरा मार्ग नहीं है ।" मत त्रिगुण सम्बन्धी है। ये गुण प्रकृतिके इस प्रकार यहाँ पर दोनों पक्षोंका मत- हैं और पुरुष प्रकृतिमें रहकर प्रकृतिके भेद बताया है। अर्थात् महाभारत-कालमें इन गुणोंका उपभोग करता है। यह बात भी यह बात सिद्ध थी कि सांख्य निरी- गीताके तेरहवें अध्यायमें कही है। श्वरवादी हैं। विदित होता है कि कपिल- भगवद्गीताके समयका सांस्य-मत ने पुरुषके सिवा दूसरा ईश्वर नहीं : वर्तमान सांख्य मतसे साधारणतः यदि माना । भगवद्गीतामे विदित होता है कि : भिन्न न होगा तो भी उस समयकी आत्माका अमरत्व और निष्क्रियन्व विचार-प्रणाली या उस समयके सांख्य- कपिलके मतका तीसरा अङ्ग था। शास्त्र के विषय किसी और ही रीतिसे गीताके प्रारम्भमें ही कहा है- समझाये हुए होने चाहिएँ । "एषा ते विहिता सांख्ये" अर्थात भगवद्गीतामें यह व्याख्या की गई हैः- सांख्य मतकी तीसरी बात यह है कि कार्य कारण कन्वे प्रान्मा अमर और निष्क्रिय है । इसमें हेतुः प्रकृतिरुच्यते। सांख्यों और वेदान्तियोंका एक ही मन पुरुषः सुखदुःम्वानाम है; परन्तु उसे सांख्य मत कहनेका कारण भोक्तत्वे हेतुरुच्यते ॥ यह दिखाई देता है कि भगवद्गीतामें सांख्य परन्तु इस प्रकारकी व्याख्या इस और घेदान्तका प्रायः अधिकांशमें भेद ओरके सांख्य शास्त्रोंमें नहीं पाई जाती। नहीं माना गया है। गीतामें सांख्य-मत- इससे यह मानना पड़ता है कि पहले की चौथी बात ज्ञान है । जब पुरुषको सांख्य ग्रन्थ कुछ भिन्न होंगे। भगवद्गीता- यह शान हो जायगा कि पुरुष प्रकृति में सांख्योंका "सांख्ये कृतान्ते. से भिन्न है, सब क्रिया और सुख- प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम्। दुःख प्रकृतिमें हैं, तब वह मुक्त हो "यह एक और महत्वपूर्ण उल्लेख पाया है। जायगा। सांस्योका यह सिद्धान्त भगः इसमें सांख्यका बहुत वर्णन किया है, वद्गीतामें स्पष्ट बतलाया है। भगवद्गीतामें : क्योंकि यहाँ उसके लिए कृतान्त विशेषण सांख्योंका "ज्ञान योगेन सांख्यानां लगाया है । जिसमें सब बातोका निश्चय किया गया हो उसे कृतान्त कहते हैं। वति कारणं श्रेष्ठय योगाः सम्यङ्मनीषिणः। इससे यह विदित होता है कि सांस्य बदंति कारखं चेदं सांख्याः सम्यक द्विजातयः ॥४॥ विसायह गतीः सर्वाविरक्तो विषयेषुयः । शालके बहुत व्यापक होनेके कारण अर्ध्व स देहात्सुव्यक्तं विमुच्येदिति नान्यथा ॥५॥ उसके सिद्धान्त निश्चित और मान्य थे।