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महाभारतमीमांसा

®. महाभारतमीमांसा - पहले ब्रह्मकी व्याख्या अक्षर की है जो रस्मिन् लोके भवति ततः त्व उपनिषद्की ही है। "एतस्यैवारस्य भवति प्रतिपादित किया है। अर्थात् प्रयासने गार्गि सूर्याचन्द्रमसौ उपनिषदोंका मत है कि अन्तमें परमेश्वर- तिष्ठतः, आदि बृहदारण्यकमें जो का स्मरण होनेसे ही परमेश्वरकी गति याज्ञवल्क्यको उक्ति है सो हमारे सन्मुख | मिलती है। इसलिए "मसकृदावृत्ति उपस्थित होती है। केवल "स्वभावो करके 'अहं ब्रह्मास्मि' का भाव चित्त ध्यात्ममुच्यते' का उद्गम दशोपनि- पर पक्का जमाना चाहिए, क्योंकि उपनि- पद्में नहीं दिखाई देता तथा 'भूत- पदोंका मत है कि अन्तकालमें उसीका भावोद्भवको विसर्गः कर्मसंज्ञिता" स्मरण हो । वही सिद्धान्त इस अभ्यायमें बतलाया गया है। "यं यं वापि स्मरन्। का भी सम्बन्ध नहीं दिखाई देता । कदा- चित् छान्दोग्यमें बताये हुए "पंचम्या- भाव मावं त्यजन्त्यन्ते कलेवरं आदि माहुता वापः पुरुषवचसो भवन्ति" वचनोंले यही बतलाया गया है। परन्तु प्रादि प्रकरणोंसे कर्मकी व्याख्या की गई भगवद्गीताने इस पर थोड़ी सी अपनी होगी। "अधिभूतं चरी भावः, ' छाप रखी है । "कवि पुराणं, प्रणा- ठीक है। परन्तु पुरुषश्चाधिदैवतम, रणीयांसं, सर्वस्य धातारं, अचरं" का भी उद्गम वेदान्तमें अर्थात् उपनिषदों- प्रात कर लनका माग यह । प्राप्त कर लेनेका मार्ग यह है कि उपनि- में नहीं दिखाई देता । अध्यात्म तथा : १ षद्के अनुसार अन्तकालके समय मनुष्य अधिदैवत शब्द उपनिषदोंमें बारम्बार आकार शब्द ओंकार शब्दरूपी ब्रह्मका ध्यान करे । भाते हैं। पहला शव (प्रायेणान्तमोंकारमभिध्यायीतक- सम्बन्धमें और दूसरा अादित्यादि तमं वा वसतेन लोकं जयति- देवताओंके सम्बन्धमें आता है। ये प्रश्नोपनिषत् ) यह बताते हुए, 'ओं ग्याख्यायें सूत्रमय हैं और यह मानना इत्येकाचरं ब्रह्म व्याहरन्' कहकर चाहिए कि वे पहले गीतामें ही दी गई मामनस्मरन' भी कहा है। उपनिषद् है क्योंकि भगवद्गीता ही उपनिषदोंके अनन्तरकी है। हम पहले ही कह चुके और योगका मेल "प्रास्थितो योग- हैं कि सम्भावना है कि बीच में एकाध धारणाम" शब्दोंसे करके भगवानने सूत्र बना हो । परन्तु वह उपलब्ध अपने स्मरणका भी रहस्य बता दिया है। नहीं है। अभियज्ञ शब्द उपनिषदोंमें यह भी उपनिषदोंका मत है कि सब लोक नहीं है परन्तु यह उपनिषन्मान्य बात पुनरावर्ति हैं; परन्तु ब्रह्मका ध्यान करते है कि देहमें जो परमेश्वर है वही करते देहको छोड़नेवाला ब्रह्मबानी ब्रह्म- अभियज्ञ है। इसके अनन्तर यह उपनि. गतिको जाने पर पुनः लौटकर नहीं षद्-सिद्धान्त यहाँ बतलाया गया है कि आता । यह बात यहाँ विस्तारपूर्वक बताई अन्तकालके समय मेरा ही स्मरण करके गई है। भगवानने कहा है कि-"यं जो परब्रह्मकाध्यान करेगा वही परमगति प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं को पहुँचेगा। उपनिषद -"यथाक्रतु. मम" भव्यक अक्षर ही मेरा धाम है।