- मित्र मतोंका इतिहास। *
५५३ नहीं दिखाई देता। प्रारम्भमें ही हमने नहीं है । भगवनीता वासुदेव परमेश्वर व्यासका यह मत बतला दिया है कि के अर्थमें है और अवतार-कल्पना भी सब जगह प्रात्मा एक है और कपिल उसमें है; परन्तु पांचरात्र-मतमें वह सिग्न मतले भिन्न है । बहुधा इसी मतके रीतिसे बढ़ाई गई है। महाभारतमें अन्यत्र आधार पर पांचरात्र मत होगा, पर हम इस पांचरात्र-मतका जो उल्लेख पाया है. निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते । कहा गया। वह भी महाभारत-कालीन है। भीप्त- है कि "जीवकी उन्क्रान्ति, गति और पर्वके ६५ वें तथा १६वे प्राध्यायों में भीष्म- अगति भी किसीको नहीं मालूम होनी” ने दुर्योधनको यह समझाया है कि और "व्यवहारतः पृथक दिखाई देनेवाले । पाण्डवोंका पराजय नहीं होगा क्योंकि अनेक पुरुष एक ही स्थानको जाते हैं।” श्रीकृष्ण नारायणका. अवतार है। उसमें पनः चारों मतोंकी एकता करके कहा है पिळले नयाकी कथा दी गई है। ब्रह्मा कि-"जो जीव शान्त वृत्तिसे अनिरुद्ध, देवाधिदेवकी स्तुति करके अन्त में कहा प्रद्युम्न, संकर्षण और वासुदेवके अधिदैव-: है-"तेरे सम्बन्धका गुह्यसे गुहा शान चतुष्टयका अथवा विराट्, सूत्रात्मा, मैं जानता हूँ। हे कृष्ण, तूने पहले अपनेसे अन्तर्यामी और शुद्धब्रह्मके अध्यात्म- : संकर्षण देव उत्पन्न किया। तदनन्तर चतुष्टयका अथवा विश्व, तेजस, प्राज्ञ प्रद्यम्न और प्रद्युम्नसे अव्यय विष्णुरूपी और तुरीयके अवस्था चतुष्टयका क्रमशः ' अनिरुद्ध उत्पन्न किया। अनिरुद्धने मुझ स्थूलसे सूक्ष्ममें लय करता है, वह लोक-धारण-कर्ता ब्रह्माको उत्पन्न किया। कल्याण पुरुषको पहुँचता है। योगमार्गी अब तू अपने विभाग करके मनुष्यरूप उसे परमात्मा कहते हैं, सांख्यवाले उसे ले और मर्त्यलोकमें असुरोका वध कर" एकात्मा कहते हैं और ज्ञानमार्गी उसे इसमें और पूर्वोक्त मतमें थोड़ासा असर केवल प्रात्मा कहते हैं।" है जिसका विचार हम अागे करेंगे। एवं हि परमात्मानं केचिदिन्छंति पंडिताः। १६ वें अध्यायके अन्तमें कहा है कि, एकात्मानं तथात्मानमपरे ज्ञानचितकाः। द्वापरके अन्तमें और कलिके प्रारम्भमें स हि नारायणो शेयःमरापुरुषो हिसः॥ जिसका नारद-पांचरात्रके प्रागमकी (अ० ३५१) पद्धतिसे* संकर्षणने गायन किया है, यह “यही निर्गुण है । यही नारायण यही वासुदेव प्रति युगमें देवलोक और सर्वात्मा है। एक ही कर्मात्मा या जीव द्वारकापुरीका निर्माण करना है। इसमें कर्मके भेदसे अनेक पुरुष बनता है।" भी पांचरात्रका मुख्य ग्रन्थ नारदका ही नारायणीय आख्यानका सार हमने माना गया है। इसके प्रागेके दो अध्यायों- यहाँ जानबूझकर क्रमशः दिया है। यह में वासुदेव ही महद्भुत है। उसीने सारा महाभारतका अन्तिम भाग है और इसमें · जगत् बनाया है। सब भूतोके अग्रज नत्कालीन पांचरात्र-मतका उद्घाटन किया संकर्षणका भी इसीने निर्माण किया है। गया है। इससे पाठकोको मालूम हो । सब लोगोंकी उत्पत्तिका हेतुभूत कमल जायगा कि यह भाग अन्तिम यानी इसीकी नाभिसे उत्पन्न हुआ है। सब महाभारतके कालका है और भगवद्गीता . .- -- ---- इसके बहुत पूर्वकी है । भगवद्गीता पांच- * मूलमें ये शम है-- 'सात्वनं विधिमास्थाय गीताः रात्र-मतके मान्य प्रन्योंकी परम्परामें ' संकर्षणेन वै ।"