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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५७८

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महाभारतमीमांसा

• महाभारतमीमांसा बार ब्रह्माकी उत्पत्तिकी कल्पना नई ही राजको बतलाया। यह एकान्त धर्म मैंने है। वास्तवमें ब्रह्मकी एक ही उत्पत्ति तुझे बतलाया है।" होनी चाहिए। यदि ऐसा मान लिया देषं परमकं ब्रह्मश्वेतं चन्द्राभमच्युतम् । जाय कि कल्प ब्रह्माका एक दिन है और यत्र चैकान्तिनो यांति नारायणपरायणाः॥ इसी हिसाबसे ब्रह्माके सो वर्ष माने एकान्ती इस प्रकार श्वेतगतिको जाते जायँ तो अनेक ब्रह्मा हुए ! सारांश, हैं। यह धर्म गृहस्थ तथा यति दोनोंके ही अनादि कालमें अनेक या अनन्त ब्रह्मा लिए है। होते हैं । इसलिए यह ध्यानमें नहीं आता. श्वेतानां यतिनां चाह कि ब्रह्माके वर्तमान सातवें जन्मकी एकान्तगतिमव्ययाम् ॥५॥ कल्पना किस बात पर अधिष्ठित है। (अ० ३४८) ___ ब्रह्माके इस सातवे जन्ममें भगवान- एवमेकं सांख्ययोगं वेदारण्यकमेव च । के बतलाये हुए इस धर्मको परम्परा परस्परांगान्येतानि पांचरात्रं च कथ्यते॥ भगवद्गीतासे भिन्न है। "नारायणने यह इस श्लोकमें सांख्य,योग और वेदान्त धर्म ब्रह्माको दिया। ब्रह्माने युगके प्रारम्भ- तन्वज्ञानका और पांचरात्रका अभेद बत- में दक्षको दिया । दक्षने आदित्यको, लाया गया है, अर्थात् ये ज्ञान बहुत आदित्यने विवस्वानको, और विवस्वानने पुराने हैं और पांचरात्र इनके बादका है। त्रेताके प्रारम्भमें मनुको दिया। मनुने ३४६ वे अध्यायमें अपान्तरतमाके इक्ष्वाकुको दिया और इक्ष्वाकुने उसे पूर्व कालका वृत्तान्त बतलाया है । इसका लोगोंमें फैलाया। युगका क्षय होने पर नाम वैदिक साहित्यमें नहीं है। यह पूर्व वह फिर नारायणके पास वापस कल्पमें व्यासके स्थानका अधिकारी है। जायगा।" जैसे भगवद्गीतामें कहा है वैसे . कदाचित् इसका नाम पांचरात्र-मतमें यह इक्ष्वाकुके बाद नष्ट नहीं हुआ । यहाँ उत्पन्न हुश्रा होगा। इस अध्यायके अन्त- यह भी बतलाया है कि-"मैंने तुझे हरि- में सांख्य, योग, वेद, पांचरात्र तथा पाशु- गीतामें पहले यतिका धर्म बतलाया है।" पत इन पाँच तत्वज्ञानोंका वर्णन कर यहाँ वैशम्पायनने भगवद्गीताका स्पष्ट यह कहा है कि अपान्तरतमा वेद या उल्लेख किया है और कहा है कि उसमें वेदान्तका प्राचार्य है। सबका इसमें यतिका धर्म बतलाया है। अर्थात् महा- 'ऐसा समन्वय किया गया है कि पाँची भारत-कालमें भगवद्गीताका और ही कुछ मतोका अन्तिम ध्येय नारायण ही है। तात्पर्यार्थ लिया जाता होगा। इस पांच- कहा है कि पांचरात्र मतसे चलनेषाले रात्र-धर्मको नारद मुनिने भी नारायणसे निष्काम भक्तिके बलसे श्रीहरिको ही रहस्य और संग्रह सहित प्राप्त किया है। पहुँचते हैं। इसमें पांचरात्रको अलग इस अहिंसायक्त धर्मसे हरि सम्तष्ट ' कहा है। होता है। अन्नके ३५० वे तथा ३५१ व अध्याय एकव्यूहविभागोवा क्वचिद्विव्यूहसंशितः। भी महत्त्वके हैं। सांख्य और योग इस त्रिव्यूहश्चापि संख्यातचतुर्म्युहश्च दृश्यते ॥ बातको मानते हैं कि प्रति पुरुषमें प्रात्मा ___ "यह धर्म नारदने व्यासको बतलाया भिन्न है। इसके सम्बन्धमें पांचरात्र-मत- और व्यासने उसे ऋषियोंके सम्बिध का जो सिद्धान्त है वह इस अध्यायमें तथा श्रीकृष्ण और भीमके समक्ष धर्म- ' बतलाया गया है परन्तु वह निधयात्मक