पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५८९

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  • भगवद्गीता विचार । *

उदुधाटन सौतिने बार बार शान्ति-पर्वमें अनुमान किया जा सकता है कि वे भाग किया है, परन्तु उसमें इसका पता नहीं। भगवद्गीतामें मौलिक हैं और जिस वि और, वेदान्त-शानका जो विस्तृत वर्णन रूप-दर्शनके भागका सौतिने अनुकरण शान्ति-पर्वमें बार बार किया गया है, किया है वह भी उन्हींमें है। ऐसी दशा में उसमें भी कुछ उल्लेख नहीं है। पन्द्रहवें यही मानना पड़ता है कि ये सब भाग अध्यायका पुरुषोत्तम योग भी फिर सौतिके सामने थे, और उसने इन भागों. वर्णित नहीं है। दैवासुर संपद्विभाग भी' को गीतामें शामिल नहीं किया है। फिर कहीं देख नहीं पड़ता। सत्व, रज, भगवदीताका को एक है। तम आदि त्रिगुणोंका वर्णन बार बार . प्राया है, परन्तु इस दैवासुर संपविभाग-। हमाग मत* है कि भगवद्गीतामें का पुनः उल्लेख नहीं है। ये सब भाग : किसी प्रकारको विसदृश मिलावट नहीं (गीतामें) इतनी सुन्दर और अलौकिक है । भाषाको दृष्टिसे, कवित्वकी दृष्टि रीतिसे और भाषामें वर्णित हैं:-उदा- से, विषयोंक दिव्य प्रतिपादनकी दृष्टिले हरणार्थ ज्ञानका वर्णन, त्रिगुणोंका वर्णन, . - या “ईश्वरोहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान् . भगीनामे ७०० भोक है जिनमेसे तेरहवें अध्याय- सुखी" इत्यादि प्रासुर स्वभावका वर्णन , के प्रारम्भका एक भीक माना नहीं जाता। वह भोक इतना मनोहर है कि हम नहीं मान इम प्रकार है:-"प्रकृति पुरुष चव क्षेत्र क्षेत्रशमेव च । एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञान य च केशव ।।" गीताकी सब सकते कि वह सौतिके द्वारा किया गया प्रतियोमे यही सात मी नोक पाये जाते है। परन्तु यह होगा । श्रीयुत भगवतकी कल्पना तो एक बहा कठिन प्रश्न है कि महाभारतमें गीताके भनन्तर- बिलकुल गलत है । भागवदगीतामै कहीं के श्लोकाम जो मंख्या गिनाई गई है वह गलत क्योंकर विरोध नहीं है। इतना ही नहीं, वरन है। वे शोक इस प्रकार है:-"पट शतानि सर्विशानि विभूति-वर्णनका अध्याय भी अन्यन्त ' लोकानां प्राह केशवः । अज नः सप्तपंचाशत् सप्त षष्टि सुन्दर कल्पनाओं से एक भाग है और न मजयः। धृतराष्ट्र: श्लोकमेक गीताया मानमध्यते ॥ उसीका अनुकरण प्रत्येक आगामी भिन्न लोकको नदा मानन। यद्यपि दाक्षिणात्योंकी पोथियोंमें नीलकगटका यह कपन बहुत ठीक है कि गौड़ इन भिन्न गीताश्रोने किया है । पन्द्रहवा । 000 लोक की ही गोता है, तथापि आश्चर्यकी बात है अध्याय भी अतिशय मनोहर है और वही कि धृतराष्ट्र का एक लोक, अर्जनके ५७, मजयके ६७ और गीताके सब अध्यायोंमें श्रेष्ठ माना जाता श्रीकृधाके ६०० मब मिलाकर ७४' लोकोंकी संख्या बत- है। इन्हीं दो अध्यायोंमें श्रीयत भागवतने लानेवाला शोक कहाँसे पाया न केवल कुल लोकोंकी विरोधी वचन बतलाये थे। परन्तु हमारी। मग्या गलत है वरन् प्रत्येककी संख्यामें भी भूल है। गीताकी सब प्रतियोंमें भोकोकी गिनती इस प्रकार है:- आलोचनासे ज्ञात होगा कि यह कल्पना धृतराष्ट्रका श्लोक, सञ्जयके ४१, अर्जुनके ८५ और सम्भवनीय नहीं कि बीचके अध्यायोको श्रीकृष्णके ५७३ । इस प्रकार जान पडता है कि सब सौतिने पीछेसे मिला दिया होगा । गड़बड़का कारण यह प्रक्षिप्त श्लोक है जिसे किसी विक्षिप्तने उन अध्यायोंके सब विषय सौतिके समय- यहाँ शामिल कर दिया है। यदि यह श्लोक सौतिका ही के शानसे भिन्न हैं। उनकी भाषा और , हो, तो कहना पड़ता है कि उसके अत्यन्त गूढ संख्या विचार-शैली भी अत्यन्त रमणीय और . विषयक कर भोकों मेंसे यह भी एक है। वर्तमान ७०० दिव्य है। सारांश, उनकी रचना, विचार- पटती. इसलिए उक्त श्लोकको प्रक्षिप्त समझकर अलग .: श्लोकोंकी गीतामे कही भङ्ग या विसवृशता नहीं देख शस्वी और भाषा गीताके अन्य मागोके ही कर देना चाहिए। हमारा मत है कि इस श्लोकके असरश बिलकुल नहीं है। इससे यही आधार पर कुछ भी अनुमान करना उचित न होगा।