पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५९

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महाभारनके कर्ता मही है। अब इन्हीं चार बातोंके सम्बन्ध- | रहे कि ये दोनों चरित्र बहुत संक्षेपमें दिये में यहाँ क्रमशः विचार किया जायगा। गये हैं: अर्थात् प्रारम्भके आदि पर्व,सभा- . . हमारे महाकाव्यका प्रधान विषय पर्व और अन्तके आश्रमवासी आदि पर्व भारती-युद्ध है । हिन्दुस्थानके प्राचीन इति- छोटे छोटे हैं और बीचके उद्योगपर्वसे आगे हासमें भारती-युद्धसे बढ़कर अधिक युद्ध-सम्बन्धी जो पर्व हैं वे बहुत विस्तार- महत्त्वकी कोई दूसरी बात नहीं है। पूर्वक लिखे गये हैं। तात्पर्य यह है कि 'उस समय हिन्दुस्थानकी प्राचीन संस्कृति | भारती-युद्धको ही महाभारतका प्रधान शिखरतक पहुँच गई थी। उस समयके | विषय मानना चाहिये । यदि व्यासजीके बाद ही हिन्दुस्थानकी अवनतिका प्रारम्भ शब्दोंमें कहना हो कि उनके महाकाव्यको होता है । यह अवनति अबतक धीरे धीरे विषय क्या है, तो कहना चाहिये कि वह बढती ही चली जाती है। इसलिये हम नर-नारायणकी जय अर्थात श्रीकृष्ण और लोगोंमें भारती-युद्ध ठीक कलियुगका अर्जुनकी विजय ही है। यह बात नमनके प्रारम्भसमझा जाता है । सारांश,भारती- श्लोकसे भली भाँति व्यक्त हो जाती है । युद्धसे अधिक महत्त्वके किसी अन्य यद्यपि महाभारतकी कथाका स्वरूप प्रसङ्गकी कल्पना कर सकना असम्भव | इतना विस्तृत है, तथापि उसमें एकता है। भारती युद्धके प्रसङ्गसे बढ़कर अधिक | और पूर्णता है और असम्बद्धता बिल्कुल विस्तृत और अधिक उलझनके भी नहीं होने पाई है। उसमें इतने अधिक और किसी अन्य विषयका पाया जाना बहुत | भिन्न स्वभावके व्यक्ति हैं कि शेक्सपियर- कठिन है । इस प्रसङ्गके एक एक छोटेसे के अनेक नाटकोंमें वर्णित सब व्यक्ति भाग पर, संस्कृत भाषाके पञ्च महाकाव्यों अकेले महाभारत हीमें प्रथित कर दिये में से, दो महाकाव्योकी रचना की गई है। गये हैं। महाभारतकी कथा यद्यपि इतनी अर्जुनके पाशुपतास्त्र पानेकी कथा पर विस्तृत है, तो भी इसका विस्तार इससे भारवीके किरातार्जुनीयकी रचना हुई है और अधिक होने योग्य है। सच बात तो और माघकाव्य शिशुपाल-वधकी कथा यह है कि ग्रन्थकारने अपना ध्यान अपने पर रचा गया है । नैषध काव्य भी महा प्रधान विषय अर्थात् युद्धकी ओर ही भारतके अन्तर्गत नल-दमयन्ती-आख्यान | रखा था और इसी लिये प्रसङ्गानुसार पर रचा गया है। सारांश, भारती-युद्ध विषयान्तर करनेकी और उन्होंने अपने प्रसङ्ग इतना विस्तृत है कि इसकी एक ध्यानको अधिक आकर्षित नहीं होने एक शाखा पर एकएक संस्कृत महाकाव्य दिया । उदाहरणार्थ, दुर्योधनके विवाहका रचा जा सकता है। कुछ लोग कहेंगे कि, वर्णन महाभारतमें कहीं पाया नहीं जीता; महाभारतमें केवल भारती-युद्ध-कथा ही यहाँतक कि उसकी स्त्रीका नाम समूचे नहीं किन्तु पांडवोका पूरा चरित्र भी है। महाभारतमें कहीं नहीं है। ऐसी दशा- परन्तु, यद्यपि महाभारतका प्रधान विषय में उसके सम्बन्धमें अधिक उल्लेख या भारती-युद्ध ही है, तथापि यह आकांक्षा उसके भाषण और कार्यका पता कैसे सहज ही उत्पन्न होती है कि उसमें इस युद्ध- लग सकता है ? यह देखकर पाठकोंको के कारणों और परिणामोंका भी वर्णन हो। कुछ अचरज होगा। आधुनिक कवियोंने इसी लिये उसमें पांडवोका पूर्व-चरित्र दुर्योधनकी स्त्रीका नाम 'भानुमती' रखा और उत्सर-चरित्र दिया गया है। स्मरण है और उसके सम्बन्धमें मूर्खताले भरी