पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५९९

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  • भगवद्गीता-विचार ।

- नाभक्ताय कदाचन। न चाशुश्रूषवे वाच्यं तत्वज्ञानोंकी उत्पत्ति कब हुई। अनेक नच मा योभ्यसूयति ॥" उपनिषदोंके विषयमें तो यह भी कहा अर्थात्, यह ग्रन्थ किस उद्देशसे जा सकता है कि वे ग्रन्थ महाभारतके और किस प्रसंगसे तैयार किया गया है, | भी बादके हैं। इस दृष्टिसे हमें कोई इत्यादि बातोका यहाँतक दिग्दर्शन हो निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। चुका । अब हमें इस प्रश्नकी ओर ध्यान कह सकते हैं कि भारतीय युद्ध के पश्चात् देना चाहिए कि भगवद्गीता-ग्रन्थ किस भगवद्गीता तैयार हुई: परन्तु भारतीय समयका है। अन्तः प्रमाणोसे ज्ञात हो युद्धका काल भी तो ठीक निश्चित नहीं चुका है कि यह ग्रन्थ सौतिका नहीं है। है। हमारी रायमें वह काल ईसवी सन- तथापि, यही निश्चय अन्य अन्तः प्रमाणो- के पूर्व तीन हजार एक सौ एक (३१०१) से होता है या नहीं, और इस प्रन्थका वर्ष है, पर और लोगोंकी रायमें वह ईसवी निश्चित काल हम जान सकते हैं या नहीं, | सन्के पूर्व १४०० या १२०० वर्षके लग- इत्यादि बातोंका पता लगाना महत्वका भग है। अर्थात्, यह निश्चयपूर्वक कहा जा और मनोरञ्जक काम है । स्पष्ट है कि सकता है कि भगवद्गीता ईसवी सनके यह विषय केवल अन्तःप्रमाणोंसे ही सिद्ध पूर्व १००० से ३०० वर्षके बीचके किसी होने योग्य है; क्योंकि इसके सम्बन्धमे समयकी है । परन्तु इससे पूर्व मर्यादाके बाह्य प्रमाणोंका मिलनाप्रायः असम्भव है। सम्बन्धमै समाधान नहीं हो सकता। | इससे भी अधिक निश्चित प्रमाण हूँढ़ना भगवद्गीता दशोपनिषदोंके अन.. चाहिए। हम समझते हैं कि इस बातका न्तर और वेदांगके पूर्वकी है। सूक्ष्म रीतिसे विचार करने पर हमें यह यह बात निर्विवाद है कि भगवद्- अनुमान करनेके लिए कुछ प्रमाण मिलते गीता-प्रन्थ महाभारतके अन्तिम संस्क- हैं कि भगवद्गीता वेदाङ्गोंके पूर्वकी है। रणके पहलेका है। हाकिन आदि पाश्चात्य अब उन्हीं प्रमाणोंका यहाँ विचार करेंगे। विद्वानोंकी भी यही धारणा है कि वह पहली बात यह है कि- महाभारतका सबसे पुराना भाग है। सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यब्रह्मणो विदुः । तब यह स्पष्ट है कि यदि वह ग्रन्थ महा- | रात्रियुगसहस्रांन्ताम् तेऽहोरात्रविदोजनाः भारतके समयका ही मान लिया जाय, यह श्लोक भगवद्गीतामें है। यह तो भी उसका काल ईसवी सनके पूर्व कल्पना आगे भारतीय ज्योतिषमें सर्वत्र तीन सौ वर्षके इस ओर नहीं आ सकता। फैली हुई है। यदि यह देखा जाय कि यह उसके इस ओरके समयकी मर्यादा यह कहाँ कहाँ पाई जाती है तो अन्य है। अब, पूर्व मर्यादाको सोचनेसे एक ग्रन्थोंके देखनेसे ज्ञात होता है कि यह बात निश्चित दिखाई देती है। भगवद्- कल्पना यास्कके निरुक्तमें है और ऐसा गीता अन्य दशोपनिषदोंके पश्चात् हुआ देख पड़ता है कि यह श्लोक वहाँ दुसरे. है और सांख्य तथा योग दोनों तत्वज्ञानों-का अवतरण मानकर रख लिया गया के अनम्तरका है। क्योंकि इन तीनों तत्व है। इससे यह अनुमान निकल सकता शानोंका उल्लेख प्रधान रीतिसं भगवद्- है कि यह कल्पना यास्कके निरुक्तमें गीतामें किया गया है। यह प्रश्न अत्यन्त भगवद्गीतासे ली गई होगी। भगवद्- मनिश्चित है कि सांल्य, योग और वेदान्त गीतामें यह श्लोक स्वतन्त्र रीतिसे आया