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महाभारतमीमांसा

8. महाभारतमीमांसा इस प्रकार भगवद्गीताका काल ई. विषयक उल्लेख है। इसलिए यह कहनेकी सन्से २००० वर्ष और १५०० वर्ष पूर्वके आवश्यकता नहीं कि भगवद्रीता पाणिनि- बीचका निश्चित होता है। यह कदाचित् के अनन्तरकी है । पाणिनि कुछ प्राय किसीको असम्भव प्रतीत होगा, पर ऐसा व्याकरण-कर्ता नहीं था। यथार्थमें व्या- समझनेका कोई कारण नहीं है। यदि करणका अभ्यास तो वेद-कालसे ही शतपथ-ब्राह्मणका काल ई० सन्से ३००० जारी था। छान्दोग्य-उपनिषदें स्वरों के वर्ष और भारती-युद्धका काल ई. सन्से | | भेद बतलाये हैं और यह बतलाया है कि ३१०१ वर्ष पूर्वका है, तो इसमें कोई | उच्चारण कैसे करना चाहिए । “सर्वे आश्चर्य नहीं कि भगवद्गीताका वही | स्वरा इन्दस्यात्मानः सर्वे ऊष्माणः प्रजा- काल निश्चित है जो ऊपर दिखाया गया। पतरात्मानः सर्वे स्पर्शा मृत्योरात्मानः" है। यदि यह मान लें कि भारती-युद्धके श्रादि वर्णन छान्दोग्य प्रपा० २ ख० २२ में बाट ही व्यासने अपने भारत ग्रन्थकी है। अर्थात व्याकरणका अभ्यास और रचना की और यह भी मान लें कि भग- नाम बहुत पुराने हैं । तब इसमें कुछ भी वद्गीता मूल भारत ग्रन्धमें थी, तोभी आश्चर्य नहीं कि भगवद्गीतामें व्याकरणके उसका काल बहुत प्राचीन होना चाहिए । पारिभाषिक कुछ शब्द जैसे प्रकार, द्वन्द्र अब हम यह देखेंगे कि इस निश्चित काल- और सामासिक पाये जाते हैं । यह मान्य में अन्य वचनोंसे कौनसी बाधा होती है कि भगवद्गीता छान्दोग्य, बृहदारण्यक है। भगवद्गीतामें कुछ व्याकरण-विषयक श्रादि उपनिषदोंके बादकी है। पर यदि वचन है, जैसे "अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः इन उपनिषदों और उनके ब्राह्मणोंका सामासिकस्य च" इस वाक्यमें व्याकरण- काल बहुत पीछे ठहरता है, तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं कि ऊपर कहे अनुसार + यहाँ कुछ और स्पष्ट करनेकी आवश्यकता है। ही भगवद्गीताका काल निश्चित होता है। ऐतिहासिक प्रमाणोका विचार करने भालो-युद्धका काल इसवी सन् ३० वर्ष पूर्व निश्चित हाना है। 'मामाना पहले हम कह चुके हैं कि वैदिक कालकी मार्गर्पोऽह ऋतूना कुसुमाकर' वाक्यमे भगवद्गीता ईमासे मयोदाको ही बहुत पीछे हटना चाहिए। २००० वर्ष पूर्वके समयसे लेकर ईसासे १४०० वर्ष ! उसको पीछे न ले जाकर इस ओर पूर्वके मध्यकालकी निश्चित होता है । यहाँ प्रश्न यह उठता खींचनेकी जो प्रवृत्ति पाश्चात्य लोगोंकी हैयह कैसे कहा जा सकता है कि भगवद्गीता भारता है, वह सर्वथा भ्रमपूर्ण है। यदि वेदाङ्ग- यद्ध-कालके व्यासकी ही है ? इसी लिए हम भगवहीताको ज्योतिष और शतपथका काल सुनिश्चित व्यासको अथवा वैशम्पायनको कहते है। हमारी रायमै ज्योतिर्विषयक उल्लेखों और प्रमाणोसे ही भारती-युद्धका काल बदला नही जा सकता । भारती-युद्ध- से और ऋग्वेद रचना या व्यवस्थासे व्यासको अलग भी ई० सन्से १४००और ३००० वर्ष पर्य नही कर सकते। तब तो यही मानना चाहिए कि वैशम्पा- बीच निश्चित होता है, तो यह स्पष्ट है यन व्यासका प्रत्यक्ष शिष्य नहीं था, किन्तु व्यासके कि उसी प्रकार भगवद्गीताका काल भी कई शतकोंके बाद हुआ होगा। सौति कहता है कि मैने पीछे मानना चाहिए । अस्तु; यदि भिन्न वैशम्पायनको महाभारत पठन करते सुना; परन्तु हम यह भित्र प्रन्योंका काल वादग्रस्त भी मान देख चुके हैं कि सौति वैशम्पायनके कई शतकोंके बाद हुआ है। इसी न्यायसे यह मानना पड़ेगा कि वैशम्पा. लिया जाय, तो भी नीचे बतलाई हुई यन भी ब्यासके कई शतकोंके पश्चात् हुआ होगा । यहाँ | ग्रन्थोंकी परम्परामें,न तो हमें ही रसीभर यह कहना भी ठीक है कि हमें व्यासका भारत या उनके कोई संशय है और जहाँतक हम समझते प्रत्यक्ष शब्द वैशम्पायनके मुग्यमे ही सुनाई देने हैं। वहाँतक दूसरे किसीको भी संशय न