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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६४

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

भी नहीं चाहती। सत्य, पति और पुत्रसे गड़बड़ी नहीं देख पड़ती: शब्द सरल और मी अधिक मूल्यवान है।" जोरदार होते हैं, तथा दृश्योंके वर्णन, . कर्णपर्वमें शल्य और कर्णका जो और स्त्री-पुरुषोंके स्वरूप, स्वभाव एवं पह- सम्भाषण है वह भी इसी प्रकार तेज़ और नावेके वर्णन हबहू और मनोहर होते हैं। ज़ोरदार है। इसीमें हंसकाकीय नामक । प्रत्यक्ष युद्धका जो वर्णम व्यासजीने किया । एक कथा है जो बहुत ही चित्ताकर्षक है। है वह तो बहुत ही सरस है, यहाँतक कि नीतिके तत्वोंको हृदयङ्गम करा देनेके लिये वह अद्वित्तीय भी कहा जा सकता है। हाँ, बतलाई हुई पशु-पक्षियोंकी कथाओका यह बात सच है कि कहीं कहीं किसी एक यह सबसे प्राचीन और सुन्दर उदाहरण : ही प्रसङ्गके बार बार श्रा जानेसे पाठकोंका है। अर्थात् यह नहीं समझना चाहिये कि मन ऊब जाता है; परन्तु स्मरण रहे कि इस पद्धतिको ईसापने ही जारी किया है। ये प्रसङ्ग सौतिके जोड़े हुए हैं। इसके किन्तु यह ईसापसे भी अधिक प्राचीन है सिवा एक और बात है। जिस समय और ध्यासजीके काव्यमें इस प्रकारकी जो लड़ाईके प्रधान शस्त्र धनुष-बाण हीथे और दो तीन कथाये हैं वे उदाहरण-स्वरूप मानी जिस समय रथियोंमें प्रायः द्वन्द्व युद्ध जा सकती हैं। व्यासजीने अपने काव्यमें हुश्रा करते थे, उस समयके युद्ध-प्रसङ्ग- जो अनेक सम्भाषण दिये हैं उनसे की कल्पना हम लोगोंको अब इस समय पाठकोंके मन पर नीति-तत्वका उपदेश अपने मनमें करनी चाहिये । इधर सैकड़ों भाली भाँति प्रतिबिम्बित हो जाता है. और वर्षोंसे रथ-यद्ध और गज-यद्धका अस्तित्व सत्यवादित्व, ऋजुता, स्वकार्य-दक्षता, नष्ट हो गया है, इसलिये आज हम लोग आत्मनिग्रह, उचित अभिमान, औदार्य, इस बातकी ठीक ठोक कल्पना नहीं कर इत्यादि सद्गुणोंका पोषण होता है।महा- सकते कि उन युद्धोंमें कैसी निपुणता और भारतमें आत्मगत भाषण नहीं है । पश्चिमी । शूरता आवश्यक थी । परिणाम यह होता प्रन्थों में आत्मगत भाषण एक महत्त्वका है कि व्यास-कृत युद्ध-वर्णन कभी कभी भाग होता है और उसे वक्तृत्त्वपूर्ण बनान- काल्पनिक मालूम होता है। ऐसे युद्धों में के लिये उन ग्रन्थकारोंका प्रयत्न भी हुश्रा भी जो सैंकड़ों भिन्न भिन्न प्रसङ्ग उपस्थित करता है। हमारे यहाँके ग्रन्थों में प्रायः ऐसे : हुआ करते हैं, उन सबका वर्णन सूक्ष्मता- भाषण नहीं होते । कमसे कम महाभारत- से और वक्तृत्वके साथ किया गया है। में तो ऐसे भाषण नहीं हैं । यदि वास्तविक महाभारतके युद्ध-प्रसङ्गोंकी कथाओंको स्थितिका विचार किया जाय तो मानना सुनकर वीररस उत्पन्न हुए बिना नहीं पड़ेगा कि श्रात्मगत भाषण कभी कोई नहीं रहता। यह बात प्रसिद्ध है कि महाभारत- करता, सिर्फ चिन्तन किया करता है और के श्रवणसे ही शिवाजीके समान पीरोंके इस चिन्तनमें शब्दों अथवा अन्य बातोंका हृदयमें शूरताकी स्फूर्ति हुई थी। विशेष विचार नहीं किया जाता। प्रस्तुः सृष्टि-सौन्दर्यके वर्णन महाभारतमें यह प्रश्नही निराला है। बहुत नहीं हैं; और जो हैं वे भी रामायण- ___ महाभारतकी वर्णन-शैली ऊँचे दर्जेकी के वर्णनके समान सरस नहीं हैं। इतना है। उसमें दिये हुए वर्णन होमर अथवा होने पर भी महाभारतका दर्जा अन्य मिल्टनले किसी प्रकार शक्तिमै कम नहीं काव्योंसे श्रेष्ठ ही है क्योंकि इसमें दिये हुए हैं वर्णन करते समय किसी प्रकारको वर्णन प्रत्यक्ष देखनेवालों के हैं। बनपर्क