पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- ॐ महाभारतके कर्ता, वे मनुष्योंके व्यवहारोंमें योही हस्तक्षेप पात्र उत्तम रीतिसे व्यक्त हो जाते हैं। ऐसे नहीं करते; और जब हस्तक्षेप करनेकी भाषणों के कुछ उदाहरण ये हैं:-मादि आवश्यकता होती है, तो वे देवताओं- पर्वमें रङ्गके समय दुर्योधन, कर्ष, अर्जुन केही समान बर्ताव करते हैं। एक उदा- और भीमके सम्भाषण: वन पर्वके भारत हरण लीजिये । कर्णके सहजकवचको में शिशुपाल और भीष्मके सम्भाषण; बन. अर्जुनके लिये प्राप्त कर लेनेकी इच्छासे पर्वके श्रारम्भमें युधिष्ठिर, भीम और इन्द्रने एक उपाय रचा। इन्द्रको कर्णका दौपटीके सम्भाषण. और टोण पर्वमें , यह व्रत मालूम था कि यदि कोई ब्राह्मण द्युम्नने द्रोणको जब मारा उस समय, उससे कुछ माँगे तो वह कभी नाँहीं नहीं धृष्टद्युम्न, सात्यकी, अर्जुन और युधिष्ठिरके करता था। इसलिये इन्द्रने ब्राह्मणका सम्भाषण । कौरव-सभामें श्रीकृष्लका जो रूप धारण किया और कर्णके पास जा- सम्भाषण हुआ वह तो सबमें शिरोमणि कर उसके कवच-कुण्डल माँगे। दानशूर है। कर्ण पर्वमें कर्णके रथ पर हमला करने कर्णने तुरन्त ही अपने कवच-कुण्डल के समय अर्जुनके साथ श्रीकृष्णमे जो उसे दे दिये। परन्तु इन्द्र किसी साधा- उत्साहजनक भाषण किया है वह भी ऐसा रण मनुष्यको नाई कवच-कुण्डलोको ही है । ये तथा अन्य भाषण भारतकारके बग़लमें दबाकर चुपचाप वहाँसे चला उत्तम कवित्वके साक्षी हैं। भारतमें वर्णित नहीं गया; उसने देव-स्वभावके अनुसार व्यक्तियोंके भाषणमें विशेषता यह है कि वे बर्ताव किया । सन्तुष्ट होकर उसने कर्ण- जोरदार और निर्भय हैं। उदाहरणार्थ, से कहा,-"तू अपनी इच्छाके अनुसार दुर्योधनको उपदेश देते समय विदुर उसकी वर माँग ।” कर्णने उससे अमोघशक्ति तीखी निर्भर्त्सना करने में कुछ भी आगा- माँगी । यद्यपि इन्द्र जानता था कि कर्ण पीछा नहीं करता । कहा जा सकता है कि उस अमोघशक्तिका प्रयोग अर्जुन पर भी विदुरके लिये उसके जेठेपनकी स्थिति अनु- करेगा, तो भी उसने कर्णको वह शक्ति | कूल थी। परन्तु शकुन्तलाको तो यह भी दे दी। सारांश, महाभारतमें वर्णित देव- आधार न था । इतना होने पर भी उसका चरित्र देवताओंके ही समान उदात्त है। दुष्यन्तसे राजसभामें भाषण निर्भय है और इलियडकी अपेक्षा महाभारतमें यह विशेष एक सदाचार-सम्पन्न, सद्गुणी, आश्रम- गुण है। वासी कन्याके लिये शोभादायक है। कालि- अब इस बातका विचार किया जायगा दासकी शकुन्तलामें और व्यासकी शकु- कि कविने अपने पात्रोके स्वभावका वर्णन न्तलामें जमीन आसमानका अन्तर है। और अपनी कथाकी रचना कैसे की है। जब दुष्यन्तने शकुन्तलाकोभरीराजसभा- स्वभावका उद्घाटन भिन्न भिन्न वर्णनोंसे में यह कहा कि-"मैंने तो तुझे पहले कभी और विशेषतः सम्भाषणोंसे हुआ करता | देखा ही नहीं; फिर तेरे साथ विवाह है । इस सम्बन्धमें भी महाभारतका करनेकी बात कैसे हो सकती है?" दर्जा सबसे श्रेष्ठ है । महाभारतकी रम- उस समय कालिदासकी शकुन्तलाके पोयता उसके सम्भाषणों में ही है। उसमें समान वह मूञ्छित नहीं होती, किन्तु दिये हुए सम्भाषणोंके समान प्रभावशाली यह कहती हुई सभास्थलसे बाहर जाने भाषल अन्य स्थानों में बहुत ही कम देख लगती है कि- "जबकि तुम सत्वकाही पड़े। उन भाषणोके द्वारा भिन्न मिनावर नहीं करते, तब मैं तुम्हारा सहवास