पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/७५

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, महाभारत ग्रन्थका काल * इस ओरकी मर्यादा ईसवी सन्के पहले का समय ग्रीक लोगोंके पहलेका है ? सौ वर्षकी मानी जा सकेगी। अतएव यहाँ इस प्रश्नका कुछ विचार यह विषय अत्यन्त महत्त्वका है । वह होना चाहिये। राशियोंका प्रारम्भ मेषसे सब साधारण पढ़नेवालोंकी समझमें | होता है और नक्षत्रोंके साथ उनका जो भली भाँतिमा आय, इसलिये कुछ अधिक मेल मिलाया गया है वह अश्विनीसे है। विस्तारपूर्वक लिखना आवश्यक है। इसलिये यह अनुमान होता है कि जब हमारा कथन है कि जिन ग्रन्थों में राशियों- वसन्त-सम्पात मेषके प्रारम्भमें अश्विनी- का उल्लेख नहीं है, अर्थात् ऐसे उल्लेखकी नक्षत्रमें था तब यह मेल हिन्दुस्थानमें आवश्यकता होने पर भी जिनमें केवल मिलाया गया होगा। वसन्त-सम्पातकी मक्षत्रोंका ही उल्लेख है, वे ग्रन्थ ईसवी गति पीछेकी ओर होती है। अर्थात् पहले सन्के लगभग दो सौ वर्ष पूर्वके उस पार- जब मेष, वृषभ इत्यादिराशियोंका प्रारम्भ के होंगे। कारण यह है कि प्रारम्भमें किसी एक बिन्दुले माना गया था, तो मेषादि राशियोका प्रचार हमारे यहाँ न अब वह बिन्दु अश्विनी-नक्षत्रसे पीछेकी था और इनका स्वीकार लगभग इसी ओर हटता चला आया है। इस समय समय (ईसवी सन्के पहले २०० वर्ष) मेषारम्भका यह बिन्दु रेवती नक्षत्रसे भी ग्रीक लोगोंसे हमने किया। इस विषयमें पीछे चला गया है। यह गति लगभग शङ्कर बालकृष्ण दीक्षितका और हमारा ७२ वर्षों में एक अंशके परिमाणसे होती कुछ मतभेद है। उनका कथन है कि हम है। इसके अनुसार वर्तमान स्थितिके लोगोने यूनानियोंसे राशियोंका स्वीकार आधार पर इस बातका निश्चय किया जा नहीं किया, किन्तु ईसवी सन्के लगभग सकता है कि अश्विनी नक्षत्रसे मेषारम्भ ४४६ वर्ष पहले हम लोगोंने इन राशियों- कब था। इस प्रकार हिसाब करके की कल्पना स्वतन्त्र रीतिसे की है। इस दीक्षितने ईसवी सनके पहले ४४६याँ वर्ष बातको वे भी मानते हैं कि इस समयके निश्चित किया है। पर अब हमें यहाँ पहिले हम लोगोंमें राशियोंका प्रचार न नक्षत्रोंके सम्बन्धमें कुछ अधिक विचार था। अब इस बात पर ध्यान देना चाहिये करना चाहिये। कि मेष, वृषभ इत्यादि राशियों के नाम वेदोंमें नक्षत्रोंकी गणना कृत्तिकासे और ग्रीक लोगोंमें प्रचलित राशियोंके की गई है। जहाँ कहीं नक्षत्रोंका नाम नाम समान हैं; और उनकी प्राकृतियाँ आया है वहाँ कृत्तिका, रोहिणी, मृग भी समान काल्पनिक हैं । ऐसी दशामें, श्रादि नक्षत्र-गणना पाई जाती है । इसके एकही समान प्राकृतियोंकी कल्पनाका अनन्तर किसी समय, जान पड़ता है कि दो भिन्न भिन्न स्थानोंमें उत्पन्न होना अस- भरणी, कृत्तिका आदि गणना प्रचलित म्भव जान पड़ता है। इससे तो यही हुई होगी। ये दोनों गणनाएँ महाभारतमें विशेष सम्भवनीय देख पड़ता है कि बतलाई गई हैं। अनुशासन पर्वके ६४ हमारे यहाँ राशियाँ ग्रीक लोगोंसे ली गई और वे अध्याओमें कृत्तिकादि सब हैं। यदि यह मान लिया जाय कि हम नक्षत्र बतलाये गये हैं। परन्तु एक और लोगोंने यूनानियोंसे राशियाँ ली हैं, तो स्थानमें कहा गया है कि श्रवण सब नक्ष- यहाँ प्रश्न उठता है कि दीक्षितने गणितसे के प्रारम्भमें है। अश्वमेध पर्वके ४४ कैसे सिद्ध कर दिया कि गशियोंके प्रचार- अध्यायमें 'श्रयणादीनि ऋक्षाणि' कहा है।