पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • महाभारत ग्रन्थका काल है

सही, परन्तु राशियोंका उल्लेख होना सौतिकी बतलाई हुई संख्यासे कम है। अत्यन्त आवश्यक थाः श्रतएव इस प्रमाण- इस सिद्धान्तसे निश्चय होता है, कि यदि का यहाँ विचार भी किया गया है। महाभारतके किसी श्लोकके आधार पर कोई सारांश, सन् ४४५ ईसवीसे सन् ५० ईसवी अनुमान किया जाय, तो वह अनुमान पूरे तक, और फिर ईसवी सन्के पहिले २०० ग्रन्थके सम्बन्धमें लगाया जा सकता है। तक, इस ओरकी अर्थात् समीपसे समीप हम यह नहीं मानते कि वह अनुमान सिर्फ की काल मर्यादाको, हम संकुचित करते उसी श्लोकके सम्बन्धमें है। हम यह भी चले आये हैं । अब हम उस पोरकी अर्थात् ' नहीं मानते कि सिर्फ वही श्लोक पीछेसे दूरसे दृरकी काल-मर्यादाका 'विचार शामिल किया गया अथवा प्रक्षिप्त है। करेंगे। महाभारतमें ग्रीक लोगोंकी शूरता किसो श्लोकको प्रक्षिप्त समझकर कुछ लोग और बुद्धिमत्ताकी प्रशंसा स्पष्ट रीतिसे बाधक वाक्योंसे छुटकारा पानेका यत्न की गई है। ऐसी प्रशंसा सिकन्दरकी किया करते हैं । हम सहसा ऐसा नहीं चढ़ाईके बाद ही की जा सकती है। सिक- करते*। महाभारतमें कुछ भाग प्राचीन न्दरकी चढ़ाई ईसवी सनके पहले ३२५ में हैं और कुछ मौतिके समयके हैं। अर्थात् हुई थी। अतएवमहाभारत उसके अनन्तर- ईसवी मन् के पहले २०० वर्षसे भी बहुत का होना चाहिये। (इस विचारको पूरा प्राचीन कुछ भाग महाभारतमें हैं परन्तु करनेके पहले जो और भी अन्तस्थ तथा हमारा यह कथन है कि उसके इधरके बाह्य साधक प्रमाण हैं उनका उल्लेख भागे ----- ----------- किया जायगा। ) इन सब बातोका निचोड़ • सौतिक महाभारतकं अनन्तर उसमें कुछ अधिक यह है कि ईसवी सनके पहले ३२० से प्रक्षेप नही हुआ है इसलिये हम सहसा यह नहीं कहेंगे कि अमुक वाक्य प्रक्षिप्त है। यहाँ सहसा शब्दके अर्थ- २०० तकके समयमें वर्तमान महाभारतका को कुछ खोल देना चाहिये। सौतिने हरिवंशकी संख्या निर्माण हुआ है । लोकमान्य तिलकने भी १२००० बतलाई है, किन्तु वर्तमान हरिवंशकी संख्या अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ "गीता रहस्य" मे १५४८५ है । अर्थात्, इसमें ३४८५ नोक बढ गये है। इसी सिद्धान्तका स्वीकार किया है । यह ऐसी दशामें यदि हरिबंशका कोई श्लोक आगे प्रमाणमें निर्णाय अन्य कई ग्रन्थकारोंको भी मान्य लिया जाय तो उसके मम्बन्धसे शक्का हो सकती है। यही है। परन्तु कुछ नामांकित पश्चिमी ग्रन्थ- बात वन पर्व और द्रोण पर्वके सम्बन्धमें भी किसी अंशमे कार इस सिद्धान्तका विरोध करते है। कही जा सकती है। वन पर्वमें सौतिने ११६६४ प्रोक बतलाये है, परन्तु इस समय उनकी संख्या ११८५४ है, अतएव यहा उनक मतका छविचार अर्थात् लगभग २०० श्लोक अधिक है; द्रोण पर्व में सौतिने अतएव यहाँ उनके मतका कुछ विचार आवश्यक है। ८००० श्रीक बतलाये हैं किन्तु इस समय उनकी संख्या अबतक हमने जो प्रतिपादन किया ५:३ है । मारांश, सबसे अधिक श्लोक-संख्या द्रोण पर्वमें है उसकी एक विशेषता हम अपने पाठ- बढी है । ऐमी दशामें यदि द्रोण पर्वका कोई वाक्य भागे कोको बतला देना चाहते हैं । हमारा यह प्रमाणमें लिया जाय तो प्रमाणमें लिया जाय तो उसके सम्बन्धमें शङ्का करने सिद्धान्त है कि सौतिके कालके अनन्तर लिये स्थान हो सकता है। के आधार पर किया हुआ महाभारतमें कुछ भी वद्धि भी यह अनुमान विचार करने योग्य है। यहाँ यह कह.देना चाहिये कि सभा पर्व और विराट पर्वमें भी कुछ भोक समवकिलाखमें दस-पाँच श्लोक पीछ-अधिक पाये जाते है। भारम्भमै तीसरे पृष्ठ पर दिया हुमा से भी शामिल कर दिये मये हो । हमने नक्शा देखिये । इतना होने पर भी हम सहसा यह कहना अपने सिद्धान्तकी रचना इस बात पर को नहीं चाहते कि महाभारतमें अमुक श्लोक प्रक्षिप्त है। यहीं है कि महाभारतकी वर्तमान श्लोक-संख्या हमारा सिद्धान्त है और यही सच भी है। Tr