पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/८३

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  • महाभारत ग्रन्थका काल *

- सकता है; परन्तु द्वैपायन-व्यासको अथवा ही एक हो सकता है। जैसे भगवहलीता- भगवदगीताको कोई उस समयतका में वैसे ही महाभारतमें भी सांख्य, और घसीटकर नहीं ला सकता। यह कथन बोगका खण्डन नहीं है, किन्तु स्वीकार है। भी युक्ति-सङ्गत नहीं होसकता कि गीता स्थान स्थानमें उन दोनोंकी प्रशंसा है. और का "ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव" सिर्फ यही श्लोक बार बार उनके मतोंका विस्तार सहित पीछेके समयका अथवा वेदान्त-सूत्रोंके विचार किया गया है। उसमें सांख्य- समयका है। संक्षेपमें यही कहना चाहिये प्रवर्तक कपिलको विष्णुका अवतार कहा कि ब्रह्म-सूत्रपदसे वेदान्ल-सूत्रका निर्देश है । वेदान्तसूत्रके भाष्यकी नाई सले नहीं होता। वेदान्त सूत्रकार बादरायण- विष्णुके अवतारसे भिन्न नहीं माना है। व्याल और मूल भारतकर्ता द्वैपायन-व्यास योगका भी प्रवर्तक, हिरण्यगर्भ अथवा भिन्न भिन्न व्यक्ति हैं और उन दोनोंमें विष्णुका पुत्र ब्रह्मदेव माना गया है। हजारों वर्षका अन्तर है। यदि वर्तमान | इससे प्रकट होता है कि महाभारत और समयमें कुछ लोगोंने उन दोनोंको एक भगवद्गीताके समय दोनों मत मान्य थे। व्यक्ति मान लिया हो, तो कहा जा सकता वेदान्तसूत्रोंका समय इसके अमन्तरका है कि बादरायण-व्यास पूर्व समयके देख पड़ता है। वेदान्तसूत्रोंके समय ये व्यासके अवतार हैं । परन्तु ऐतिहासिक दोनों मत त्याज्य माने गये थे। तात्पर्य दृष्टि से यह निर्विवाद सिद्ध है कि ये दोनों यह है कि भगवद्गीता और वेदान्तसूत्र व्यक्ति भिन्न हैं। एक ही कर्ताके अथवा एक ही समयके भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र अथवा नहीं है। यह बात सांख्य और योगके वेदान्तसूत्रके कर्ता एक नहीं हो सकते। सम्बन्धमें उन दोनों में किये हुए विवेचन- इसका एक और बहुत बड़ा कारण यह है से स्पष्ट देख पड़ती है। इसके सिवा कि वेदान्त-सूत्रकारने सांख्य और योग भगवद्गीता और वेदान्तसूत्रोंके वेदान्त- दोनोंका खण्डन किया है। यहाँतक कि विषयक मतोंमें भी अन्तर है, परन्तु इस वेदान्त-सूत्रकारका प्रधान शत्रु सांख्य ही विषयका विवेचन आगे चलकर किया है जिसका खण्डन उसने बहुत मार्मिक जायगा। रोतिसे और विस्तार सहित किया है। महाभारतमें और किसी दूसरे सूत्रका सांख्य मतके खण्डनको शङ्कराचार्यने नामनिर्देश नहीं है । हापकिन्सका कथन 'प्रधान-मल्ल-निबर्हण' कहा है और इसी है कि उसमें आश्वलायन-गृह्यसूत्रके एक के साथ "एतेन योगः प्रत्युक्तः" इस प्रकार दो वचन है; परन्तु उसका कथन हमें ठीक योगका भी खण्डन वेदान्तसूत्र में है। भग- नहीं अँचता । कारण यह है कि प्राश्वला- बद्गीतामें यह बात नहीं है। उसमें सांख्य | यन गृह्यसूत्रमें भारत और महाभारत दोनों और योगका स्वीकार किया गया है। नाम पाये जाते हैं: अर्थात् आश्वलायन यहाँतक कि सांख्यको प्रथम सम्मान सूत्र महाभारतके पादका है। हापकिन्स- दिया गया है। सारांश, भगवदगीतानन जो प्रमाण दिया है (भा० श्रादि०प्र० सांख्य और योगको अपनाया है, परन्तु ७५) उसमें प्राश्वलायन सूत्रका नाम नहीं वेदान्तसूत्रन इन दोनोंको लथेड़ा है। है। "वेदप्वपि वदन्तीमं” सिर्फ इतना ही इससे सिद्ध होता है कि दोनोंके कर्ता कहा है । हापकिन्सने स्वीकार किया एक नहीं हो सकते और न दोनोका समय है कि-