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महाभारतमीमांसा
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सूत्रोंके कर्ता बादरायणको 'श्राचार्य | सूत्र शब्दसे किसी एक विवक्षित विषय कहते हैं, न कि 'ऋषि'। जिस प्रकार पर प्रतिपादित ग्रन्थ' का ही बोध हुआ यहाँ किसी कर्ताका भेद निष्पन्न नहीं करता था । बौद्ध और जैन लोगोने सूत्र होता, उसी प्रकार यहाँ अन्धका भी कोई शब्दका उपयोग इसी अर्थमें किया है। भेद निष्पन्न नहीं होता। यहाँ वेद और उनके सूत्र अथवा सुत्त पाणिनिके सूत्रों के 'स्मृति नामक किसी दो ग्रन्थोंका उल्लेख समान न होकर उपनिषद-भागके समान नहीं है। 'छन्दोभिः' शब्दसे समस्त वेदका ही गद्यग्रन्थमय हैं। उनका स्वरूप यही है अर्थ नहीं किया जा सकता। 'छन्दोभिः' कि उनमें 'हेतुमद्भिः विनिश्चितैः' अर्थात् शब्दसे कविता-बद्ध वेद-मन्त्र अर्थात् वेद- निश्चित रूपसे कहे हुए हेतु अथवा उप- संहिताका बोध होता है और 'ब्रह्मसूत्र- पत्ति सहित सिद्धान्त बतलाये गये हैं। पदः' शब्दसे वेदोंके गद्य भागका अर्थात् | इस बानका कोई नियम न था कि उनमें केवल ब्राह्मणोंका ही बोध होता है। छोटे छोटे वाक्य ही हो । सारांश, भगवदू- सारांश, यहाँ प्रन्थ-भेद कुछ भी नहीं है। गीता पाणिनिसे भी पहले की है। उसमें 'ग्रन्थ केवल एक है, और वह घेद हो है। जो सूत्र शब्द है वह उपनिषद्के उस गद्य- इस दृषिसे श्लोकका सरल अर्थ यही भागका ही द्योतक है जो ब्रह्मजाल-सुत्त होता है कि वेदके छन्दोबद्ध मन्त्र-भागमें श्रादि बौद्ध सूत्रोंके समान है। यह कल्पना 'विविधैः पृथक' अर्थात् भिन्न भिन्न स्थानों भी ठीक नहीं है कि महाभारत और में बिखरे हुए जो वचन हैं, उनमें और वेदान्त सूत्रोका कर्ता एक ही है । वेदान्त घेदके ब्राह्मण-भागमें 'विनिश्चितः हेतु- सूत्रोंके बनानेवाले व्यास बादरायण-व्यास मद्भिः' यानी निश्चितार्थसे हेतु अथवा है और महाभारतके कर्ता छैपायन-व्यास कारणोपपादन सहित समर्थन किये हुए है । महाभारतमें बादरायणका नाम कहीं ब्रह्मप्रतिपादक जो वचन हैं, उनमें ऋषि- नहीं पाया जाता। जैसे द्वैपायन-व्यास योने ब्रह्मका वर्णन किया है । इस अर्थसे वेदोंके भी संग्रह-कर्ता और व्यवस्था यही निश्चय होता है कि यहाँ ब्रह्मसूत्रपद- करनेवाले हो गये हैं, वैसे बादरायण- मे बादगपणाचार्यके वेदान्त सूत्रका उल्लेख । व्यास नहीं हैं। इसके सिवा यह भी नहीं किया गया है। निश्चित हो गया है कि बादरायणके ' सूत्र शब्दसे पाणिनि के सूत्रोंके समान वेदान्त-सूत्र ईसवी सन्के पहले १५० से ऐसे ग्रन्थोंका बोध होता है, जिनकी रचना १०० वर्षातकके हैं: कमसे कम वे बौद्ध बात छोटे छोटे और निश्चयार्थक वाक्योंमें | और जैन मतोके अनन्तरके हैं। परन्तु यह की गई हो । इसलिये पाठकोंके मनमें यह Ans. टियो नयट कभी नहीं कहा जा सकता किभारत संदेह हो सकता है कि उक्त श्लोकमें सुत्र श्रादि कर्ता और वेदोंकी व्यवस्था करने- शब्दसे वेदान्त सूत्रोका ही अर्थ क्यों न वाले भारती-युद्धकालीन व्यास (द्वैपायन) लिया जाय । अर्थात् यह कहा जा सकता | बौद्धके अनन्तर हुए हैं। ये व्यास, बौद्ध है कि सूत्र शब्दका उपयोग गद्य-उपनिषद्- और जैन-धर्मोके न जाने कितने वर्ष पहले भागके लिये नहीं किया जा सकता। हो गये हैं। भगवद्गीता, महाभारतका परन्तु स्मरण रहे कि सूत्र शब्दका यह अर्थ ही एक अत्यन्त प्राचीन भाग है। यदि आधुनिक है। यह बात निश्चित रूपसे कोई चाहे तो सौति-कृत महाभारतको मतलाई जा सकती है कि प्राचीन समयमें वेदान्त-सूत्रोंके समयतक घसीट कर ला