पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/९१

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  • महाभारत ब्रन्थका काल है

- समय ईसवी सनके पहले १०० माना महत्त्वका है कि महाभारत इनके समक्के जाय तो महाभारत उसके पहलेका है। पहलेका है । पूर्वमीमांसाके सूत्रकर्ता पतञ्जलिके योगसूत्रका समय भी इसीके जैमिनि और न्याय-सत्रकर्ता गौतमके नाम लगभग है। पतञ्जलिने अपने महाभाष्यमें, महाभारतमें पाये जाते हैं । परन्तु ये नाम पुष्पमित्रके अश्वमेधका और साकेत सूत्रकर्ताकी हैसियतसे नहीं, किन्तु साधा. (अयोध्या) पर यवन-राजा मिनंडर रण ऋषियोंके तौर पर दिये गये हैं। (मिलिन्द) की चढ़ाईका उल्लेख किया तात्पर्य यह है कि गौतमके सूत्र और है। और यह उल्लेख इस प्रकार किया जैमिनिके सूत्र महाभारतके अनन्तरक हैं। गया है कि मानों ये दोनों बातें पतञ्जलिके जान पड़ता है कि न्याय और मीमांसा समयमें हुई हो। इससे पतञ्जलिका समय शास्त्र महाभारतके पहलेके है; क्योंकि ईसवी सन्के पहले १५० से १०० के बीच- यद्यपि न्याय शब्दका प्रत्यक्ष उपयोग नहीं में प्रायः निश्चित हो जाता है : अर्थात् यह किया गया है, तथापि उस विषयका सिद्ध हो जाता है कि वर्तमान महाभारत : उल्लेख हेतुवाद शब्दसे किया गया है। इसवी सन्के १५० वर्षके पहलेका है। नैयायिकोंको 'हैतुक' कहा गया है (अनु- यदि कोई कहे कि महाभारतमें पतञ्जलिके शासन अ० ३७, १२-१४)। नैयायिकोंने उल्लेखका न होना विशेष महत्त्वका वेदोंके प्रमाणको नहीं माना है, इसलिये प्रमाण नहीं है, तो ऐसा नहीं कहा जा यह मत वेदबाहा समझा गया है। महा- सकता । पतञ्जलिके नामका उल्लेख भारतमें वैशेषिक और कणादका नाम अवश्य होना चाहिये था: क्योंकि योग- नहीं है । उनका नाम सिर्फ एक बार हरि- शास्त्र अथवा योग मतका उल्लेख महा-वंशमें दिया गया है। वैशेषिक शब्दका भारतमें हजारों स्थानों में पाया जाता उपयोग सिर्फ एक बार 'गुणोका विशेषण है: और एक स्थानमें तो स्पष्ट कहा। अर्थात् उत्तम' इस अर्थमें किया गया है। गया है कि योगज्ञानका प्रवर्तक हिरण्य- पूर्वमीमांसाका नाम शान्ति पर्वके १८३ गर्भ (ब्रह्मा) है। यदि उस समय पतञ्जलि- अध्यायमें दिया गया है । इसमें उन के योगसूत्रोंकी रचना हुई होती, तो उनका लोगोंकी प्रशंसा की गई है जो पाखण्डी उल्लेख अवश्य किया गया होता । बाद- पण्डितोंके विरुद्ध थे, जिन्हें पूर्वशालकी रायणके सूत्रोंका भी यही हाल है । वर्त- अच्छी जानकारी थी और जो कौंका मान समयमें बादरायणके सूत्र सर्वमान्य प्राचरण किया करते थे। इससे मालूम और वेदतुल्य समझे जाते हैं । यदि वे होता है कि महाभारत-कालमें पूर्वशाल महाभारतके समय होते तो उनका उल्लेख ही कर्मशास्त्र माना गया होगा और स्वभा. अवश्य किया जाता। ऐसा उल्लेख न वतः उत्तरशास्त्र वेदान्तका शाल माना करके यह कहा गया है कि वेदान्तका गया होगा। परन्तु इस विषयमें सन्देहके प्रवर्तक अपान्तरतमा अथवा प्राचीनगर्भ लिये बहुत स्थान है। सांख्यशालके प्रव- है। सारांश, महाभारतका समय योग तक कपिलका नाम बार बार पाया जाता और वेदान्तके सूत्रकर्ताओके पहलका है है और उनके शिष्य भी अनेक बतलाये और इन दोनोंकी स्थिति समान है: अर्थात् गये हैं । उन शिष्यों में प्रासुरी और पश्च- दोनों का मिन्न बतलाये गये हैं। इनका शिखके नाम आये हैं। असितदेवलका मी समय निश्चित है: और यह प्रमाण विशेष नाम आया है। यह बात प्रमिस है कि