पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/९२

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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा कपिलके वर्तमान सूत्र बहुत अर्वाचीन है। अगुत्रा चार्वाकका नाम महाभारतमें कहीं कपिलका और कोई प्राचीन ग्रन्थ इस समय | देख नहीं पड़ता। परन्तु युद्धके अनन्तर प्रसिद्ध नहीं है। महाभारतमें कपिलको युधिष्ठिरने जब हस्तिनापुरमें प्रवेश किया, अग्नि, शिव, विष्णु और प्रजापतिका श्रव- उस समयके वर्णनमें, प्रकट रूपसे उसका तार माना गया है। इससे अनुमान होता धिक्कार करनेवाले चार्वाक नामक एक है कि वह बहुत प्राचीन समयमें हुआ | ब्राह्मण परिवाटका नाम पाया जाता है होगा और उसके कालके सम्बन्धमें कुछ | जो दुर्योधनका मित्र था। इससे जान भी निश्चय नहीं किया जा सकता। वेदों- पडता है कि चार्वाक नाम बहत निन्ध के निन्दकके तौर पर एक स्थान (शान्ति था। बृहस्पति नास्तिक मतका प्रवर्तक पर्व, अ० २६६.६) में कपिलका वर्णन माना गया है। आश्चर्यकी बात है कि पाया जाता है। यह भी मालूम होता है। बृहस्पति आसुर मतका प्रवर्तक समझा कि कपिल अहिंसावादी था और यक्षके जाय; परन्तु उपनिषदोंमें यह कथा पाई विरुद्ध था । यदि कपिलका समय बौद्ध- जाती है कि असुरोंको कुमार्गमें प्रवृत्त कालके कुछ पूर्वका माना जाय, तो इस करानेके लिय बृहस्पतिनं एक मिथ्या कपिलको अर्वाचीन कहना पड़ेगा । पञ्च- शास्त्रकी रचना की थी। यद्यपि यह कथा शिखका समय निश्चय-पूर्वक नहीं बत- महाभारतमें नहीं है, तथापि यह नहीं लाया जा सकता। परन्तु बौद्धमतवादियों- कहा जा सकता कि इसकी रचना पीछेस मैं पञ्चशिखका नाम पाया जाता है। हुई होगी । लोकायतका नाम आदि पर्षक इसका काल बुद्ध के समयके लगभग माना । ७०वे अध्यायमें पाया जाता है, यथा- जा सकता है। इससे यह बात पाई जाती "लोकायतिक मुल्यैश्च समन्तादनुनादि- है कि बुद्ध और पञ्चशिखके अनन्तर तम्।" ४६। यहाँ कहा गया है कि कण्वकं महाभारत हुआ है। इससे महाभारतके आश्रममें लोकायत अथवा नास्तिक पन्थ- समयका निर्णय करनेमें अच्छी सहायता के मुखियोंके वादविवादकी आवाज़ गूंज मिलती है। रही थी। इससे प्रकट है कि लोकायत अब हम नास्तिक मतोंके सम्बन्धमे कुछ अथवा चार्वाक मत बहुत प्राचीन है। विचार करेंगे । न्याय और सांख्य वेदोंको अब देखना चाहिये कि बौद्धोका उल्लेख नहीं मानते.अतएव ये दोनों नास्तिकमत है। महाभारतमें है या नहीं। यद्यपि इनका परन्तु उनके बहुतसे सिद्धान्तोंका स्वीकार उल्लेख नामसं न किया गया हो, तथापि इन दोनों मतोंमें सनातन धर्मसे किया इनके मतोंका उल्लेख कहीं कहीं पाया गया है इसलिये ये षड्दर्शनों में शामिल जाता है। श्राश्वमेधिक पर्षके ४वें अध्याय किये गये हैं। सच्चे नास्तिक सिर्फ लोका- (अनुगीता) में अनेक मत बतलाये गये यत, बौद्ध और जैन ही हैं। देखना चाहिये हैं। वहाँ सबसे पहले चार्वाक मतका कि महाभारतमें इनका कितना उल्लंख उल्लेख इस प्रकार किया गया है-“कोई किया गया है। आश्चर्य है कि नामसे कोई कहते हैं कि देहका नाश हो जाने पर इनका उल्लेख कहीं नहीं है । सम्भव श्रात्माका भी नाश हो जाता है ।" इसके है कि इन मतोंके नास्तिक होनेके कारण बाद कहा गया है कि कुछ लोग इस इनके नामका उल्लेख किया जाना उचित अगसको क्षणिक मानते हैं। इस वर्णनमें न समझा गया हो । लोकायत मतके बौद्ध मतका उल्लेख देख पड़ता है।